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बीजेपी-शिवसेना गठबंधन (BJP-ShivSena Alliance) को बहुमत के बाद भी महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में पावर सेंटर बनी एनसीपी

Maharashtra Political Drama : महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन (BJP-Shivsena Alliance) को बहुमत मिलने के बाद भी सरकार बनाने में गतिरोध पैदा हो गया है. शिवसेना (Shiv Sena) ने बीजेपी (BJP) के सामने शर्त ही ऐसी रख दी है कि बीजेपी के लिए हालात असहज हो गए हैं.

Updated on: 28 Oct 2019, 03:24 PM

नई दिल्‍ली:

महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन (BJP-Shivsena Alliance) को बहुमत मिलने के बाद भी सरकार बनाने में गतिरोध पैदा हो गया है. शिवसेना (Shiv Sena) ने बीजेपी (BJP) के सामने शर्त ही ऐसी रख दी है कि बीजेपी के लिए हालात असहज हो गए हैं. शिवसेना (Shiv Sena) ने ढाई-ढाई साल के लिए मुख्‍यमंत्री (CM) बनाने की शर्त रखी है, वहीं वित्‍त (Finance) और गृह (Home) जैसे विभाग भी हासिल करने का संकेत दिया है. बीजेपी के लिए ये शर्तें मानना मुश्‍किल भरा ही नहीं, नामुमकिन होगा. ऐसे में दोनों दलों की ओर से निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में करने के लिए खींचतान चल रही है. दूसरी ओर, दोनों दलों की आस अब एनसीपी पर टिक गई है. शिवसेना भी चाहती है कि अगर बीजेपी उसके फॉर्मूले को न माने तो एनसीपी उसे समर्थन कर दे. दूसरी ओर, बीजेपी भी इस जुगत में है कि शिवसेना अगर नहीं मानी तो एनसीपी उसे समर्थन दे दे. ऐसे में एनसीपी अब महाराष्‍ट्र की राजनीति में पावर सेंटर के रूप में उभरी है.

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2014 के चुनाव में भी शिवसेना और बीजेपी के बीच ऐसे ही खींचतान चली थी. उस समय भी दोनों दलों ने एनसीपी को अपने पाले में लाने की बात कही थी. एनसीपी ने तो अंदरखाने बीजेपी को समर्थन देने की हामी भी भर दी थी, लेकिन खेल बिगड़ता देख ऐन मौके पर शिवसेना ने बीजेपी को समर्थन दे दिया और एनसीपी बीजेपी के साथ आते-आते रह गई. वहीं हालात एक बार फिर महाराष्‍ट्र की राजनीति में पैदा हो गए हैं.

इन सब दांवपेंच के बीच कांग्रेस के लिए अपने विधायकों को बचाने की चुनौती बढ़ गई है. पिछले कुछ माह में देखा गया है कि कांग्रेस नेता लगातार दलबदल कर दूसरी पार्टियों का दामन थाम रहे हैं. अगर एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस में बात नहीं बनी तो कांग्रेस विधायकों में सेंधमारी की कोशिशें हो सकती है, जिससे कांग्रेस को सावधान रहने की जरूरत है. महाराष्‍ट्र की राजनीति में कांग्रेस पहले से ही बागियों से परेशान है. संजय निरूपम और मिलिंद देवड़ा पहले से नाराज हैं. ऐसे में कांग्रेस को विधायकों को एकजुट रखने में खासी मुश्‍किलें आएंगी.

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शिवसेना की ओर से लंबे समय तक कोई नेता मुख्‍यमंत्री नहीं बना है. 90 के दशक में पहले मनोहर जोशी और बाद में नारायण राणे मुख्‍यमंत्री बने थे. उसके बाद कांग्रेस की सरकार आ गई, जो लंबे समय तक चली. उसके बाद 2014 में बीजेपी की सरकार बन गई और देवेंद्र फडनवीस मुख्‍यमंत्री बने. दरअसल शिवसेना ठाकरे परिवार से किसी को मुख्‍यमंत्री के रूप में देखना चाहती है और इसके लिए वह इतनी उतावली है कि उसे बहुमत का इंतजार भी बेमानी लग रहा है. इसलिए वह बीजेपी से मोलभाव कर रही है. शायद उसे यह भी भान हो कि अकेले दम पर बहुमत पाना महाराष्‍ट्र में उसके लिए नामुमकिन है.

जहां तक एनसीपी की बात है तो चुनाव से पहले ईडी के नोटिस के बाद से बीजेपी और शरद पवार के रिश्‍तों में कटुता आई है. पीएम नरेंद्र मोदी ने भी चुनावी रैलियों में शरद पवार पर सीधे हमला किया था और पाकिस्‍तान परस्‍त बयान देने का आरोप लगाया था. हालांकि वो चुनावी रैली थी, जिसमें दोनों ओर से वार-पलटवार का दौर चल रहा था. अब सभी दल हकीकत से वाकिफ हो गए हैं.

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इससे पहले चुनावी परिणाम आते ही शरद पवार ने एक बयान दिया था, जिसमें उन्‍होंने शिवसेना के साथ जाने से मना कर दिया और विपक्ष में बैठने की वकालत की थी. इन सब बयानों, अटकलों के बीच यह देखना दिलचस्‍प होगा कि महाराष्‍ट्र की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा.