अजीत पवार की बगावत का कारण कहीं शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले तो नहीं?
कुछ राजनीतिक जानकार अब भी इसे बगावत नहीं मान रहे हैं. उनका कहना है कि यह सब पर्दे के पीछे की राजनीति का हिस्सा है, लेकिन जो सामने आ रहा है, उससे यही लग रहा है कि अजीत पवार की बगावत का पार्टी प्रमुख शरद पवार को अंदाजा तक नहीं था.
नई दिल्ली:
शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस (Shiv Sena-NCP-Congress) जब सरकार बनाने को लेकर राजी हो गए थे और राज्यपाल से मिलने जाने वाले थे, उसी दिन सुबह बीजेपी (BJP) नेता देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. एनसीपी (NCP) के विधायक दल के नेता अजीत पवार (Ajit Pawar) ने पार्टी और अपने चाचा शरद पवार (Sharad Pawar) से बगावत कर डिप्टी सीएम (Deputy CM) की कुर्सी अपने नाम कर लिया. सवाल उठता है कि आखिरकार शरद पवार के साये की तरह रहने वाले अजीत पवार ने उनसे बगावत क्यों की. हालांकि कुछ राजनीतिक जानकार अब भी इसे बगावत नहीं मान रहे हैं. उनका कहना है कि यह सब पर्दे के पीछे की राजनीति का हिस्सा है, लेकिन जो सामने आ रहा है, उससे यही लग रहा है कि अजीत पवार की बगावत का पार्टी प्रमुख शरद पवार को अंदाजा तक नहीं था. शायद इसी कारण वे साम-दाम-दंड-भेद का डर दिखाकर विधायकों को अपने पाले में लाने में कामयाब रहे हैं. अब बात करते हैं कि आखिर अजीत पवार ने बगावत क्यों की?
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2004 के महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम के बाद से अजित पवार की महत्वाकांक्षाएं हिलोरें लेने लगीं और इसके बाद के 2009 लोकसभा चुनाव से पवार के कुनबे से सुप्रिया सुले का उदय हुआ. 2004 में एनसीपी को कांग्रेस से दो सीटें अधिक मिलने के बावजूद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर कांग्रेस के विलासराव देशमुख की ताजपोशी हुई थी. 71 एमएलए होने के बावजूद अजित पवार का तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने का सपना टूटा था. तब शरद पवार केंद्र में कांग्रेस नीत सरकार पर दबाव नहीं डाल पाए और कांग्रेस की ओर से विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने थे. बड़ी पार्टी होने के बाद भी एनसीपी को डिप्टी सीएम पद से संतोष करना पड़ा था.
जानकारों के मुताबिक, 2009 के लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले का राजनीति में प्रवेश के साथ अजित पवार हाशिये पर जाने लगे. यहां तक कि शरद पवार ने अपने परिवार के रोहित पवार के रूप में तीसरी पीढ़ी के सिर पर हाथ रख दिया, बजाय अजित पवार के बेटे पार्थ के. ऐसे में शरद पवार के साये से निकलना अजित पवार के लिए जरूरी हो गया था.
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अब अगर सीनियर पवार अजित को पार्टी से निष्कासित करते हैं, तो कुनबे के साथ-साथ पार्टी में भी दो फाड़ हो जाएंगे. इसका असर मराठा राजनीति में पवार के कुल प्रभाव पर पड़ेगा. शायद यही कारण है कि शरद पवार अजीत के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले मनाने में लगे हुए हैं.
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