सरकार बनाने के बाद उद्धव ठाकरे के सामने ये रहेंगी 5 चुनौतियां
महाराष्ट्र में महाअघाड़ी गठबंधन की सरकार बनने जा रही है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे आज मुंबई के शिवाजी मैदान पर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. ठाकरे परिवार से मुख्यमंत्री बनने वाले वह पहले व्यक्ति हैं.
highlights
- शिवसेना की छवि कट्टर हिंदुत्व की रही है तो वहीं कांग्रेस-एनसीपी सेकुलर राजनीति का प्रतिनिधित्व करती रही हैं.
- तीनों पार्टियों को सरकार चलाने के साथ ही पार्टी के असंतुष्टों से निपटना भी बड़ी चुनौती होगा.
- इस गठबंधन में तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी हैं. कांग्रेस से पृथ्वीराज चौहान और अशोक चह्वान और एनसीपी से शरद पवार मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
मुम्बई:
महाराष्ट्र में महाअघाड़ी गठबंधन की सरकार बनने जा रही है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे आज मुंबई के शिवाजी मैदान पर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. ठाकरे परिवार से मुख्यमंत्री बनने वाले वह पहले व्यक्ति हैं. उद्धव ठाकरे एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार बना रहे हैं. क्या सरकार आने वाले चुनौतियों से उसी तरह निबटने में सफल होगी, जैसा पिछले कुछ दिनों के दौरान साथ रहकर दिखाया? गुरुवार को जब इन तीनों दलों की महाअघाडी सरकार शपथ लेकर राज्य की राजनीति में गेम चेंजर प्रयोग की शुरुआत करेगी तो यही सवाल सामने होंगे.
1. घर बचाने की चिंता
सरकार बनाने के साथ ही तीनों पार्टियों के सामने बड़ी चुनौती अपने घर को एकजुट रखने में होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि कर्नाटक में कुमारस्वामी और कांग्रेस ने सरकार तो बना ली, लेकिन पार्टी को सहेज नहीं पाए. कुमारस्वामी मुख्यमंत्री रहते हुए भी कई बार कह चुके थे कि कांग्रेस के साथ इस हालात में सरकार चलाना उनके लिए संभव नहीं है. बाद में कर्नाटक का हश्र सभी के सामने है. कर्नाटक के अलावा भी कई राज्यों में टूट-फूट हो चुकी है. कांग्रेस और शिवसेना का एक बड़ा धड़ा एक दूसरे के साथ सरकार बनाने को लेकर सहमत नहीं था. वहीं एनसीपी में अजित पवार की बगावत अब जगजाहिर हो चुकी है. ऐसे में तीनों ही पार्टियों को सरकार चलाने के साथ ही पार्टी के असंतुष्टों से निपटना भी बड़ी चुनौती होगा.
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2. नरम और गरम हिंदुत्व के बीच बनाना होगा संतुलन
शिवसेना की छवि कट्टर हिंदुत्व की रही है तो वहीं कांग्रेस-एनसीपी सेकुलर राजनीति का प्रतिनिधित्व करती रही हैं. हाल में उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के आग्रह पर 24 नवंबर को होने वाले अयोध्या दौरे को भी टाल दिया. ऐसे में तीनों ही दलों के सामने अपनी छवि को बनाए रखने की चुनौती होगी. ऐसे कई मुद्दे है जिन पर शिवसेना और कांग्रेस की सोच अलग रही है. वहीं दूसरी ओर बीजेपी अब राज्य में मजबूत विपक्ष के रूप में रहेगी. ऐसे में केंद्र सरकार के साथ रिश्ते बनाए रखना भी सरकार के सामने चुनौती होगा.
3. चुनाव में कैसे जाएंगे साथ
क्या यह गठबंधन सिर्फ इसी सरकार के लिए बना है या इसके दूरगामी परिणा सामने आएंगे, यह सवाल बना हुआ है. अगर तीनों पार्टियां चुनाव में गठबंधन के रूप में जाती हैं तो यह किस तरह साथ लड़ेंगे, यह सबसे पेचीदा मामला होगा. इसके लिए तीनों दलों को अपने राजनीतिक स्पेस का त्याग को करना ही पड़ेगा साथ ही कुछ मुद्दों पर मौन भी धारण करना होगा. यह तीनों ही दलों के लिए आसान नहीं होगा.
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4. सरकार चलाने में किसी रहेगी मुख्य भूमिका
सरकार चलाने के लिए आपसी समन्वय भी बड़ी चुनौती रहेगी. सरकार बनाने से पहले तीनों दलों ने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया है. लेकिन असल चुनौती इसे अमल करने को लेकर ही होगी. वहीं इस सरकार को बनाने के लिए तीनों दलों के नेताओं की अहम भूमिका रही है. ऐसे में सरकार के अंदर होने वाले बड़े फैसलों में किसकी कितनी चलेगी इसे लेकर असमंजस हो सकती है. इसके साथ ही महाआघाडी ने जो बड़े-बड़े वादे किए हैं, उनको पूरा करना इस मिली-जुली सरकार के लिए आसान नहीं होगा.
5. अहं का भी होगा टकराव
इस गठबंधन में तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी हैं. कांग्रेस से पृथ्वीराज चौहान और अशोक चह्वान और एनसीपी से शरद पवार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इन तीनों की ही राज्य में अच्छी पकड़ रही है. गवर्नेंस में इन नेताओं के अहं को नियंत्रण में रखना भी गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती होगा.
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