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झारखंड में इन चार करवटों पर बैठ सकता है सत्ता का ऊंट, उभरे नए समीकरण

रूझान भी बीजेपी या कांग्रेस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं दे रहे हैं. ऐसे में पांच दलों में भावी मुख्यमंत्री को लेकर भावी गठबंधन के समीकरणों पर भी चर्चा शुरू हो गई है.

Updated on: 23 Dec 2019, 10:57 AM

highlights

  • पूर्ण बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में उभर रहे चार समीकरण.
  • आजसू झारखंड में सरकार गठन की चाबी बनकर उभर रहा है.
  • बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनने की ओर.

नई दिल्ली:

झारखंड विधानसभा चुनाव की सोमवार को शुरू हुई मतगणना के शुरुआती रुझान बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी बता रहे हैं. उसकी सहयोगी रही आजसू भी इतनी सीटों पर आगे है कि अगर कुल परिणाम आने के बाद गठबंधन की उम्मीद बने तो आसानी से सरकार बना ली जाए. हालांकि एक्जिट पोल ने राज्य में त्रिशंकू सरकार की भविष्यवाणी की है. रूझान भी बीजेपी या कांग्रेस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं दे रहे हैं. ऐसे में पांच दलों में भावी मुख्यमंत्री को लेकर भावी गठबंधन के समीकरणों पर भी चर्चा शुरू हो गई है. आइए जानते हैं कि ऐसी स्थिति सामने आने पर झारखंड में सत्ता का ऊंट किस करवट बैठ सकता है. ऐसे संकेत भी हैं कि बीजेपी ने सुदेश महतो और बाबूलाल मरांडी से रुझान साफ होते ही संपर्क साधने में देर नहीं लगाई है.

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बीजेपी संग आएगी आजसू
भले ही बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन फिलहाल उभर रही हो, लेकिन वह पूर्ण बहुमत की सरकार बनने की स्थिति नहीं दिख रही है. ऐसे में उसे गठबंधन सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा. ऐसे में बीजेपी के साथ सबसे नजदीकी सत्ता साझीदार रहे आजसू समीकरण सबसे पहले सामने आता है. यहां यह कतई नहीं भूलना नहीं चाहिए कि गठबंधन टूटने के बावजूद बीजेपी ने चुनाव बाद की संभावनाओं को ध्यान में रखते ही आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के खिलाफ सिल्ली से उम्मीदवार नहीं उतारा. आजसू ने भी रघुवर दास के खिलाफ उम्मीदवार नहीं दिया. आजसू के अलावा बीजेपी दूसरी संभावना झाविमो में टटोल सकती है. हालांकि, झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी किसी सूरत में बीजेपी के साथ आने की संभावना से लगातार इंकार करते आए हैं. हालांकि ऐसे संकेत हैं कि बीजेपी ने सोमवार को आजसू के सुदेश महतो और झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी से संपर्क साधा है.

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कांग्रेस-झामुमो गठबंधन संग आ सकते हैं झाविमो-वामदल
जल-जंगल-जमीन के परंपरागत मुद्दे के बगैर लड़ा गया इस बार झारखंड विधानसभा चुनाव दो लिहाज से खास है. एक तो इस बार मोदी लहर देखने में नहीं आई है और दूसरे बीजेपी एंटी इनकम्बेंसी सरकार के खिलाफ आक्रोश भी है. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अंतिम चुनाव परिणाम में इसका रंग दिख सकता है. एग्जिट पोल के परिणाम भी इसकी गवाही दे चुके हैं. ऐसी स्थिति में झामुमो, कांग्रेस और राजद मिलकर सरकार बनाएंगे. इन तीनों के बीच चुनाव पूर्व से ही गठबंधन है. कांग्रेस ने पहले ही हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया था. इस कारण पर्याप्त सीट मिल जाने के बाद चुनावी गठबंधन को सत्ताधारी गठबंधन बनने में भी मुश्किल नहीं आएगी. बहुमत से कम संख्या होने की स्थिति में महागठबंधन को झाविमो और वामदलों का साथ मिल सकता है.

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गैर बीजेपी-गैर झामुमो सरकार
एक पहलू यह भी है कि बीजेपी और झामुमो दोनों को ही बहुमत नहीं मिलने पर गैर भाजपा और गैर झामुमो दलों के नेतृत्व में सरकार बने. बीजेपी झामुमो और कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए ऐसा दांव खेल सकती है, तो झामुमो और कांग्रेस भी बीजेपी को सरकार से बाहर रखने के लिए ऐसा कदम उठा सकते हैं. ऐसे में कांग्रेस, आजसू, झाविमो और राजद के नेताओं की चांदी हो सकती हैं. दूसरे दल इनकी सरकार को बाहर से समर्थन दे सकते हैं. ऐसे में भाजपा आजसू के अलावा झाविमो पर भी दांव खेल सकती है. झामुमो भी कांग्रेस को नेतृत्व सौंप सकती है अथवा झाविमो या आजसू के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन दे सकता है.

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भाजपा-झामुमो भी कह सकते हैं हम साथ-साथ हैं
बीजेपी और झामुमो दोनों को 25 से कम सीटें आने और कांग्रेस-राजद को अपेक्षा से अधिक सीटें आने पर सत्ता के लिए गठबंधन का समीकरण साधना मुश्किल होगा. ऐसे में राज्य को स्थिर सरकार देने के नाम पर बीजेपी और झामुमो पास आ सकते हैं. हालांकि इसकी संभावना फिलहाल नहीं दिखाई दे रही है. इससे पहले भी दो बार इस तरह की सरकार बन चुकी है. 2009 में झामुमो-बीजेपी की सरकार में शिबू सोरेन मुख्यमंत्री और रघुवर दास उप मुख्यमंत्री बने थे. बीच में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ. फिर 2011 में भाजपा-झामुमो की सरकार बनी. उस सरकार में अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री और हेमंत सोरेन उपमुख्यमंत्री बने थे.