झारखंड में जीत की खुशी से झूमते हेमंत सोरेन ने किया ये पहला काम, बनेंगे सीएम
झारखंड में जीत की खुशी से लबरेज हेमंत सोरेन को रांची स्थित अपने घर में हंसते-खिलखिलाते साइकिल चलाते हुए देखा गया है. फिलहाल झामुमो बीजेपी से ज्यादा सीटें जीतता नजर आ रहा है.
highlights
- कांग्रेस-झामुमो गठबंधन बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़े से कहीं आगे चल रहा है.
- फिलहाल झामुमो बीजेपी से ज्यादा सीटें जीतता नजर आ रहा है.
- हेमंत सोरेन को रांची स्थित घर में साइकिल चलाते हुए देखा गया है.
नई दिल्ली:
अब तक के रुझानों से यह साफ हो गया है कि झारखंड में बीजेपी के हाथ से सत्ता फिसल गई है. इसके साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन का सूबे का मुख्यमंत्री बनने का रास्ता भी साफ हो गया है. हाल-फिलहाल कांग्रेस-झामुमो गठबंधन बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़े से कहीं अधिक सीटों पर आगे चल रहा है. इस खुशी में हेमंत सोरेन को रांची स्थित अपने घर में हंसते-खिलखिलाते साइकिल चलाते हुए देखा गया है. फिलहाल झामुमो बीजेपी से ज्यादा सीटें जीतता नजर आ रहा है.
#WATCH: Jharkhand Mukti Morcha's (JMM) Hemant Soren rides a cycle at his residence in Ranchi. JMM is currently leading on 28 seats while the Congress-JMM-RJD alliance is leading on 46 seats. pic.twitter.com/e9HYcb26Y2
— ANI (@ANI) December 23, 2019
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झारखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे हेमंत
हेमंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. वह अपने पिता शिबू सोरेन की तरह राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. 2013 में हेमंत सोरेन आरजेडी, कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों की मदद से झारखंड के 5वें मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे और दिसंबर 2014 तक पद पर रहे. 1975 में जन्मे हेमंत सोरेन कम उम्र में ही अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दे चुके थे. शिबू सोरेन की विरासत को संभालना उनके लिए किसी जोखिम से कम नहीं था, लेकिन हेमंत सोरेन ने समय-समय पर अपनी काबिलियत का परिचय देकर यह साबित कर दिया कि राजनीति के टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर चलने की क्षमता उनमें है.
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शराबबंदी के पक्षधर हैं हेमंत
स्वभाव से बेहद सरल हेमंत पिता की तरह ही लोगों से सीधा संवाद रखने में विश्वास करते हैं. हेमंत राज्य में शराब बिक्री पर पांबदी लगाने के पक्षधर हैं. उनका मानना है कि झारखंड के गांवों में खासतौर पर शराब की दुकानें नहीं खुलनी चाहिए क्योंकि राज्य के भोले-भाले आदिवासी शराब के नशे में चूर होकर जिंदगी में पिछड़ते चले जाएंगे. उनका मानना है कि राज्य की महिलाओं को आगे बढ़कर शराब बिक्री का विरोध करना होगा. तभी राज्य सरकार गांवों में शराब का लाइसेंस बांटने का निर्णय वापस ले सकेगी.