शाहीन बाग ध्रुवीकरण बीजेपी के काम आया, लड़ाई से बाहर लग रही बीजेपी बनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के बाद शाहीन बाग (Shaheen Bagh) हिंसा ने राजनीतिक बिसात पर बीजेपी को वह 'ईंधन' उपलब्ध करा दिया, जो उसे दिल्ली चुनाव में आगे ला सकता था. हुआ भी यही.
highlights
- शाहीन बाग से हुआ ध्रुवीकरण अंततः आ ही गया बीजेपी के काम.
- संघर्ष से बाहर मानी जा रही बीजेपी आ गई मुख्य टक्कर में.
- डेढ़ दर्जन से अधिक सीटों पर शुरुआती रुझानों में आप से आगे.
नई दिल्ली:
इससे शायद ही कोई इंकार करे कि दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election 2020) की घोषणा से पहले ही जमीनी स्तर पर समझ आ गया था कि अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की आम आदमी पार्टी (AAP) तीसरी बार वापसी करेगी. खासतौर पर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए कार्यों के बाद तो आम आदमी आप पार्टी से कहीं अधिक संतुष्ट था. इस बात को संभवतः भारतीय जनता पार्टी (BJP) भी बेहतर तरीके से समझती और जानती थी. ऐसे में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के बाद शाहीन बाग (Shaheen Bagh) हिंसा ने राजनीतिक बिसात पर बीजेपी को वह 'ईंधन' उपलब्ध करा दिया, जो उसे दिल्ली चुनाव में आगे ला सकता था. हुआ भी यही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने जो धुंआधार प्रचार किया, उससे आप के लिए एकतरफा लग रही बाजी कांटे की टक्कर में बदल गई. सुबह 11 बजे तक के रुझान बता रहे हैं कि आप को बीजेपी तगड़ी टक्कर दे रही है. लगभग दो दर्जन सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी आप से आगे चल रही थी.
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शाहीन बाग बना मुंह मांगी मुराद
लगभग दो महीने से चल रहे शाहीन बाग धरना-प्रदर्शन ने आसपास के रहने वाले स्थानीय लोगों की जिंदगी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया. रास्ता जाम होने से जो समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई, उसे बीजेपी ने अपने प्रचार में जमकर भुनाया. कांग्रेस को सीएए पर भ्रम फैलाने और धरना-प्रदर्शन को हवा देने के आरोप की आड़ में बीजेपी ने शाहीन बाग को बाहरी ताकतों से प्रायोजित आयोजन करार दिया. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते गए बीजेपी का शाहीन बाग को लेकर आक्रमण और तीखा होता गया. गृहमंत्री अमित शाह ने तो अपनी सभा में बगैर लाग-लपेट कर कह दिया कि दिल्ली वाले खुद तय करे कि उन्हें कैसी सरकार चाहिए-दंगा कराने वाली. शाहीन बाग समेत सीएए पर देश भर से आ रहे उत्तेजक बयानों ने बीजेपी के लिए रही सही कसर पूरी कर दी. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमान संभाल ली. एक ही दिन में दो रैलियां कर उन्होंने हिंदू-मुस्लिम का नारा उछाला. देश को शाहीन बाग नहीं बनने देने की मांग मानो आप के लिए आखिरी दांव था.
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जबरदस्त ध्रुवीकरण
इस लिहाज से देखें तो भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण की आक्रामक पिच तैयार की. शाहीन बाग का प्रदर्शन मानो उसके लिए मुंह मागी मुराद जैसा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ही नहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित अन्य छोटे से लेकर बड़े नेता हर रैली और सभाओं में शाहीन बाग-शाहीन बाग का मुद्दा उछालते रहे. सभाओं में जनता के बीच सवाल उछालते रहे- आप शाहीन बाग के साथ हैं या खिलाफ? शरजील इमाम के असम वाले बयान, जेएनयू, जामिया हिंसा को भी भाजपा ने मुद्दा बनाकर बहुसंख्यक वोटर्स को साधा. छोटे से केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के लिए भाजपा ने जितनी ताकत झोंक दी, उतनी बड़े-बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी मेहनत नहीं की. कोई मुहल्ला नहीं बचा, जहां बड़े नेताओं ने नुक्कड़ सभाएं नहीं कीं. इससे भाजपा ने ध्रुवीकरण कर अपने पक्ष में जबरदस्त माहौल बनाने में सफलता हासिल कर ली. इसी का परिणाम मतगणना के शुरुआती रुझानों से मिल रहा है.
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