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स्कूल की किताब में 'सेक्स' कंटेंट, नाइजीरिया में आया भूचाल

कॉम्प्रिहेन्सिव सेक्स एजुकेशन (CSE) करिकुलम को स्कूल में शुरू करने पर नाइजीरिया में बवाल मचा हुआ है।

Updated on: 23 Aug 2017, 12:20 PM

नई दिल्ली:

स्कूलों में सेक्स एजुकेशन के मामले में सिर्फ भारत का ही नहीं बल्कि और भी देशों में भी इसे जरूरी मुद्दा नहीं माना जाता। स्कूलों में यौन शिक्षा पर विरोध और आलोचनाएं सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि इस मुद्दे पर नाइजीरिया भी दो हिस्सों में बंट गया है।

कॉम्प्रिहेन्सिव सेक्स एजुकेशन (CSE) करिकुलम को स्कूल में शुरू करने पर नाइजीरिया में बवाल मचा हुआ है। पश्चिम अफ्रीका विश्व के सबसे धार्मिक देशों में से एक माना जाता है।

186 मिलियन लोगों के इस देश में ईसाई और मुस्लिम बहुलता है और 300 से अधिक जनजातियों वाले इस देश को रूढ़िवादी समझा जाता है लेकिन दुनिया के कुछ विकासशील देशों के बीच बेसिक स्कूलों में कॉम्प्रिहेन्सिव सेक्स एजुकेशन (CSE) को शुरू करने के लिए UNESCO ने नाइजीरिया को सराहा भी था।

नाइजीरिया के CSE पाठ्यक्रम में एचआईवी एजुकेशन और टीनएज प्रेग्नेंसी और यौन हिंसा शामिल है। इसका उद्देश्य बच्चों को उनके शरीर और उसकी क्रियाओं के बारे में जानकारी देना है।

सरकारी और प्राइवेट प्राइमरी और सैकेंडरी स्कूलों में बच्चों की पाठ्य पुस्तकों में सैक्स एजुकेशन से संबंधित विषय शामिल हैं। इन कक्षाओं में बच्चों की उम्र 8 से 15 साल है।

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क्या है पूरा मामला

अफ्रीका न्यूज नाम की एक वेबसाइट के अनुसार, जूनियर सेकंड्री स्कूल (JSS 1) की सोशल स्टडीज टेक्स्टबुक्स के पेज नंबर 50 में लिखे कॉन्टेंट की कड़ी निंदा हो रही है।

किताब में 'सेक्शुअल प्लेज़र पाने और देने और सेक्शुअल इंटरकोर्स के बिना क्लोजनेस डिवेलप करने' जैसे शीर्षकों पर कॉन्टेंट लिखा गया है। 'चुंबन, गले लगाना और म्युचुअल मास्टरबेशन' जैसे विषयों पर भी टेक्स्टबुक में लिखा गया है। इन्हीं कारणों से नाइजीरिया में विवाद छिड़ गया है।

एक बच्चे के पिता ने फेसबुक पर टेक्स्टबुक पर लिखे इस कॉन्टेंट पर चिंता जताई और दूसरे पैरंट्स से भी अपने बच्चों को प्रोटेक्ट करने के लिए आगे आने को कहा।

उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि 'हमारे बच्चों को स्कूल में क्या पढ़ाया जा रहा है, इस पर हमें कड़ी नजर रखनी होगी और उन्हें शास्त्रों के हिसाब से पढ़ाना होगा। दूसरे पैरंट्स को भी अलर्ट करें और अपने बच्चों को प्रोटेक्ट करें।'

इस शख्स को जनता का सहयोग मिला और लोगों ने देश के एजुकेशनल बोर्ड की निंदा की। यहां तक कि टेक्स्ट बुक को रद्द करने की याचिका भी दायर कर दी गई। जुलाई 2017 में कुछ प्राइवेट स्कूलों ने एनजीओ के साथ मिलकर एक कैंपेन शुरू किया।

नाइजीरिया की एक न्यूज एजेंसी (NAN) ने सोमवार को इस मामले में एजुकेशन स्टेकहोल्डर्स की राय पर एक रिपोर्ट पब्लिश की। हालांकि इस मामले में सबकी अलग-अलग राय हैं।

कुछ ने कहा कि बच्चों से मां-बाप को उनके ही शरीर के बारे में सच्चाई नहीं छिपानी चाहिए और कुछ ने इसे शास्त्रों के खिलाफ माना। यह मामला अब पूरा तरह से सरकार के हाथ में है कि वह CSE रिव्यू करेगी या इसे ऐसे ही चलते रहने देगी।

एडल्‍ट एजुकेशन की महत्‍ता को समझते हुए हो सकता है सरकार पैरेंट्स के लिए कोई जागरूकता अभियान चलाना भी शुरू कर दे ।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने निर्देश दिया है कि 12 वर्ष और उससे अधिक आयु वाले बच्चों को स्कूल में सेक्स एजुकेशन दी जानी चाहिए, ताकि किशोरावस्था में गर्भधारण और यौन संक्रमण से फैलने वाली बीमारियों पर लगाम लगाई जा सके।

सेक्स एजुकेशन किशोरावस्था में कितनी सहायक साबित हो सकती है, इसके पक्ष में भी कई तर्क मौजूद हैं। जानकारों का कहना है कि वे बच्चे जिन्हें स्कूल में ही सेक्स से जुड़े विभिन्न पहलू समझा दिए जाते हैं वह किसी भी प्रकार के बहकावे में नहीं आते।

न तो इंटरनेट पर मौजूद सामग्रियां उन्हें गलत तरीके से उत्साहित कर पाती हैं और न ही दोस्तों के दबाव में आकर वे कोई गलत कदम उठाते हैं।

भारत में महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से बाल यौन उत्पीडऩ पर कराए गए 2007 के अध्ययन के मुताबिक, 53.2 प्रतिशत बच्चे यौन हिंसा का शिकार होते हैं।

इसलिए जरूरी हो जाता है की और देशों की तरह भारत में भी जल्द स्कूली पाठ्यक्रम में सेक्स एजुकेशन को तरजीह दी जाए जिससे बच्चें भी इस मामले पर खुलकर बात कर सकें क्योंकि सेक्स को टैबू बनाने का ही नतीजा है आज बच्चे यौन हिंसक का शिकार हो रहे है और इंटनेट पर भी सेक्सजाल में आसानी से फंसकर गलत जानकारी हासिल का बैठते है। समय की मांग है कि सेक्स पर भी बात की जाए।

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