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सिंधु जल विवाद पर भारत-पाकिस्तान हल की ओर, बांध परियोजना के निरीक्षण की दी अनुमति

पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार पिछले हफ्ते लाहौर में संपन्न हुई स्थाई सिंधु आयोग की बैठक में यह फैसला लिया गया है।

Updated on: 04 Sep 2018, 11:17 PM

नई दिल्ली:

सिंधु जल मामले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच आधिकारिक मुलाकात के बाद दोनों देश इस विवाद के हल की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। पाकिस्तान भारत को सिंधु नदी के निचले तट के कोटरी बांध परियोजना के निरीक्षण की अनुमति देने को तैयार हो गया है। वहीं भारत ने भी झेलम नदी बेसिन और किशनगंगा प्रॉजेक्ट के निरीक्षण की पाकिस्तान की मांग को स्वीकार कर लिया है।

पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार पिछले हफ्ते लाहौर में संपन्न हुई स्थाई सिंधु आयोग की बैठक में यह फैसला लिया गया है। इस बैठक को इमरान खान के पाकिस्तान का पीएम बनने के बाद भारत और पाक के बीच पहली आधिकारिक बातचीत माना जा रहा है।

'द डॉन' न्यूजपेपर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने निरीक्षण को लेकर सहमति जताई है। यह प्रक्रिया 2014 से ही लंबित थी। 

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गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान के बीच लाहौर में 29 और 30 अगस्त को स्थाई सिंधु आयोग की बैठक हुई थी। जिसके बाद भारत और पाकिस्तान, दोनों ने ही सिंधु बेसिन के कई हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रॉजेक्ट्स के निरीक्षण की अनुमति दे दी है।

आपको बता दें कि भारत और पाकिस्तान ने 9 साल की बातचीत के बाद 1960 में सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर किया था।

इस समझौते में वर्ल्ड बैंक ने मध्यस्थ की भूमिका अदा की थी। इस समझौते के तहत 6 नदियों के पानी का बंटवारा तय हुआ, जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं।

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आखिर क्या है पीआईसी?
पर्मानेंट इंडस कमीशन (पीआईसी) में दोनों देशों के अधिकारी शामिल हैं जो कि हर साल मुलाकात करते हैं। हर साल दोनों देशों के बीच होने वाली यह बैठक 1960 के सिंधु जल समझौते का हिस्सा है। समझौते में सिंधु समेत सतलुज, ब्यास, रावी, झेलम और चेनाब नदी का जिक्र है। इसके तहत भारत को सिंधु, झेलम और चेनाब नदी का पानी पाकिस्तान को देना होता है।

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3 पूर्वी नदियों (रावी, व्यास और सतलज) के पानी पर भारत का पूरा हक दिया गया। बाकी 3 पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब, सिंधु) के पानी के बहाव को बिना बाधा पाकिस्तान को देना था।

संधि में तय मानकों के मुताबिक भारत में पश्चिमी नदियों के पानी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इनका करीब 20 फीसदी हिस्सा भारत के लिए है।