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मां कूष्मांडा के मंत्रजाप से मिलेगी कष्टों से मुक्ति

आज नवरात्र में मां दुर्गा के चतुर्थ रूप कूष्मांडा देवी की पूजा की जा रही है। अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग,शोक नष्ट हो जाते हैं और उनके घर में सुख-शांति आती है।

Updated on: 05 Oct 2016, 03:40 PM

नई दिल्ली:

आज नवरात्र में मां दुर्गा के चतुर्थ रूप कूष्मांडा देवी की पूजा की जा रही है। अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग,शोक नष्ट हो जाते हैं और उनके घर में सुख-शांति आती है।

मां कूष्मांडा के पूजन से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इनकी भक्ति से व्यक्ति की आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।


दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को मां की भक्ति में लगाकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कूष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं, जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है।

कुष्मांडा मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

कुष्मांडा मंत्र ध्यान

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

स्तोत्र पाठ

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥