1 दिसंबर विश्व एड्स दिवस विशेष: बीमारी है, श्राप नहीं
1 दिसंबर को विश्वभर में एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस विश्व एड्स दिवस पर दुनियाभर का नारा 'बचाव ही इलाज' है।
highlights
- 1 दिसंबर को मनाया जाता है विश्व एड्स दिवस
- इस बार का नारा हैं ' बचाव ही इलाज'
- जागरूकता की कमी नें इस बीमारी को बनाया महामारी
- एड्स के मामलों में भारत तीसरे स्थान पर
ऩई दिल्ली:
1 दिसंबर को विश्वभर में एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस विश्व एड्स दिवस पर दुनियाभर का नारा 'बचाव ही इलाज' है। एड्स पहली ऐसी बीमारी थी जिसके लिए सन 1988 में पूरी दुनिया ने एक साथ होने के लिए 1 दिसंबर को चुना।इस बीमारी के इलाज के अभाव व कम जानकारी की वजह से लोग इसे श्राप मानते है। एड्स पीडित मरीजों को अछूत माना जाता है। कई लोगों में ये गलतफहमी है कि एड्स छूआछूत से फैलता है।
इस जानलेवा बीमारी से विश्वभर में करीब 37 मिलियन लोग जूझ रहें है। जिसमें से 2.1 मिलियन लोग केवल भारत है। WHO के अनुसार सहारा अफ्रीका में HIV के सबसे ज्यादा मरीज यानी 24.7 मिलियन मरीज हैं और यह आकंडा पूरी दुनिया में पाए जाने वाले मरीजों का 71 प्रतिशत है। इसे काबू में करने के प्रयास जारी हैं और 2001 से अब तक नए HIV इंफेक्शन में 35 प्रतिशत की कमी आई है।
इसे भी पढ़े:जानिए क्या होते है एड्स के कारण और बचाव
एड्स पीड़ित मरीजों को अछूत माना जाता है। कई लोगों में ये गलतफहमी है कि एड्स छूआछूत से फैलता है। एड्स का इलाज दवाओं से ज्यादा जागरूकता और सजगता से संभव है। और एड्स से बचाव के लिए सावधानी का बरता जाना। इस बीमारी के इलाज के अभाव व कम जानकारी की वजह से लोग इसे श्राप मानते है।
जागरूकता फैलाए
एड्स के प्रति लोगों में भरी भ्रामक बातों को दूर करने से ही इस बीमारी से लड़ा जा सकता है। एक एनजीओ के सर्वे के मुताबिक भारत के करीब 67 फीसदी एड्स के मरीजो को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। लोग इसे श्राप समझ कर ना तो इलाज कराने जाते है ना ही इस बारे में दूसरों से बताते है। कई घटनाए ऐसी है जहां समाज के दबाव में एड्स मरीजों को अपना घर, नौकरी, स्कूल आदि को छोड़ देना पड़ा।
इस, विचारधारा को बदल कर हमें लोगों को इस बारे में खुल कर बताना चाहिए। जिससे वे इस बीमारी के चपेट में आने से बच सके। यहीं इस बीमारी का इलाज है। एड्स जैसी महामारी को दूर करने के लिए समाज के सभी तबकों को जागरूक करना बहुत जरूरी होता है।
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