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सबसे छोटी आणविक मशीन की डिजाइन के लिए 3 वैज्ञानिकों को केमिस्ट्री का नोबेल प्राइज

फ्रेंच, ब्रिटिश और डच के वैज्ञानिकों की तिकड़ी ने रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीता है। उन्हें दुनिया की सबसे छोटी आणविक मशीनों के विकास के लिए दिया गया है।

Updated on: 05 Oct 2016, 07:43 PM

नई दिल्ली:

फ्रेंच, ब्रिटिश और डच के वैज्ञानिकों की तिकड़ी ने रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीता है। उन्हें दुनिया की सबसे छोटी आणविक मशीनों के विकास के लिए पुरस्कार दिया गया है।

ज्यूरी ने कहा ‘‘फ्रांस के जीन पियरे, ब्रिटेन के जम्मू फ्रेजर स्टोर्ड और नीदरलैंड के बर्नार्ड फेरिंगा ने  नियंत्रणीय गति के साथ अणुओं का विकास किया जो ऊर्जा के संचार होने पर किसी लक्ष्य को पूरा कर सकती हैं।’’

उसने कहा, ‘‘आणविक मोटर उसी स्तर का है जो 1830 के दशक में इलेक्ट्रॉनिक मोटर का था जब वैज्ञानिकों ने कई घूमते क्रैंक और पहियों को पेश किया था, हालांकि वे इस बात से अवगत नहीं थे कि वे इलेक्ट्रॉनिक ट्रेन, वाशिंग मशीन, पंखों और फूड प्रोसेसर की बुनियाद रख रहे हैं।’’
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आणविक मशीनों का"सबसे अधिक इस्तेमाल नई सामग्री, सेंसर और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों, के विकास के लिए किया जाएगा।

तीन विजेताओं को आठ लाख स्वीडिश क्रोनर (अमरीकी डालर के आसपास 933000) का पुरस्कार मिलेगा।

फेरिंगा 65 साल के हैं और एक विश्वविद्यालय में शिक्षक हैं।उन्होंने कहा "मैं राइट भाइयों की तरह महसूस कर रहा हूं जिन्होंने पहली बार 100 साल पहले उड़ान भरी थी और लोग सवाल कर रहे थे कि उड़ान मशीनों की जरूरत क्या है पर अब हमारे पास बोइंग 747 और एयरबेस है।'

आणविक मशीन बनाने की दिशा में पहला कदम 1983 में लिया गय था। जब वो अंगूठी के आकार के अणुओं की एक श्रृंखला को जोड़ने में कामयाब हुए थे।

नोबेल जूरी ने कहा "मशीन को काम करने के लिए जरूरी है कि उसके पार्टस एक दूसरे के सापेक्ष स्थानांतरित कर सके और इंटरलोक्ड छल्ले इस आवश्यकता को पूरा करते हैं। "

पियरे ने कहा 'मैं पुरस्कार मिलने से अचरज में हूं और बहुत खुश भी'

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गौरतलब है कि कल इस साल फिजिक्स का नोबेल प्राइज ब्रिटेन के तीन साइंटिस्ट्स को मिला था । जिनके नाम है डेविड थूल्स, डंकन हाल्डेन और माइकल कोसरलत्ज हैं।