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विधानसभा चुनाव नतीजे: UP जीत कर अमित शाह मोदी के बाद बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता बने

शाह ने उत्तर प्रदेश में दोतरफा रणनीति पर काम किया। पहला काम संगठन को खड़ा करने और दूसरी रणनीति के तहत उन्होंने पीएम मोदी को यूपी चुनाव का स्टार प्रचारक बनाकर पेश किया।

Updated on: 11 Mar 2017, 12:23 PM

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह बीजेपी के चाणक्य बन कर उभरे हैं। बीजेपी की 403 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव की तैयारियों से पहले पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती संगठन को मजबूत करने की थी, जिसे शाह ने प्राथमिकता पर रखा।

शाह के सामने सबसे बड़ी चुनौती टिकटों के बंटवारे को लेकर थी। पार्टी ने किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं देकर ध्रुवीकरण को हवा दी और यह रणनीति बीजेपी के लिए गेमचेंजर साबित हुआ।

इसके अलावा शाह ने जाति आधारित सभाओं में ब्राह्मण और दलितों को प्रमुखता दी गई। शाह की रणनीति गैर मुस्लिम जातियों को एकजुट करने की थी, और वह इसमें कामयाब रहे। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के बाद शाह की रणनीति के मुताबिक ध्रुवीकरण के मसले को उछाला गया।

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इसके साथ ही अमित शाह ने प्रदेश में मौजूद संघ परिवार के संगठनों से बेहतर तालमेल बिठाते हुए रणनीति तैयार की, जिससे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाकों में पार्टी को बढ़त बनाने में मदद मिली।

विधानसभा चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है अमित शाह न केवल राजनीतिक प्रबंधन के मास्टर साबित हुए हैं, बल्कि वह बिहार विधानसभा में हुई हार से मिली सबक को जीत के कारणों में तब्दील करने में सफल रहे।

शाह ने उत्तर प्रदेश में दोतरफा रणनीति पर काम किया। पहला काम संगठन को खड़ा करने और दूसरी रणनीति के तहत उन्होंने पीएम मोदी को यूपी चुनाव का स्टार प्रचारक बनाकर पेश किया, जिससे पार्टी राज्य में आंतरिक गुटबाजी से बच गई।

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शाह ने धुंआधार दौरा कर प्रदेश के संगठन का जायजा लिया और उसे दुरुस्त करने का काम शुरू किया। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को लोकसभा की 80 में से 71 सीटों पर जीत मिली थी, जिसे 2017 के विधानसभा चुनाव में भी कायम रखने की चुनौती थी।

लोकसभा में बीजेपी अधिकांश विधानसभा सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। हालांकि पार्टी यह बात समझती थी कि लोकसभा चुनाव के समीकरण विधानसभा चुनाव से बिलकुल अलग होते हैं और इसी बात को ध्यान में रखते हुए शाह ने इसके लिए सबसे जरूरी संगठन को मजबूत करने का काम शुरू किया।

शाह ने प्रदेश के जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए संगठन में लोगों को जिम्मेदारियां दी और इसी रणनीति के तहत केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश पार्टी प्रेसिडेंट बनाया गया तो अन्य प्रमुख चेहरों में राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र को पार्टी के प्रचार की जिम्मेदारी दी गई।

इसके बाद पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती गुटबाजी को रोकने की थी। इसी रणनीति के तहत पार्टी ने प्रदेश में किसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए बिना ही चुनाव में जाने का फैसला लिया।

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पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को चुनाव प्रचार का मुख्य चेहरा बनाया, और इसी रणनीति के तहत मोदी ने प्रदेश के लगभग सभी क्षेत्रों में धुंआधार प्रचार किया। तो वहीं शाह ने भी करीब 200 से अधिक रैलियां कर पार्टी के प्रचार कमान को धार दी।

बिहार और दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद शाह के राजनीतिक प्रबंधन पर सवाल उठने लगे थे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव शाह के राजनीतिक प्रबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती था, जिसे उन्होंने पूरा कर अपनी क्षमता को फिर से साबित किया है। इतना ही नहीं शाह अब बीजेपी संगठन में पहले से ज्यादा कद्दावर होकर उभरे हैं।

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