आमचो बस्तर ढाबा : बस्तरिया फूड और लाल चींटी की चटनी बना कमाई का जरिया
आदिवासियों के बीच चापड़ा की लोकप्रियता को देखते हुए छत्तीसगढ़ के एक युवक ने इसे रोजगार का हिस्सा बना लिया.
highlights
- आमचो बस्तर ढाबे में मिलती है विश्व प्रसिद्ध लाल चींटी की चटनी
- ढाबे से औसतन 2 से ढाई लाख रुपये प्रतिमाह का व्यवसाय होता है
- तिरतुम में “आमचो बस्तर” ढाबा के मालिक हैं राजेश यालम
बस्तर:
चापड़ा यानि लाल चींटी की चटनी की मांग छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में काफी है.आदिवासियों का मानना है कि लाल चींटी की चटनी खाने से मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां नहीं होती हैं. छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में लाल चींटी के औषधीय गुण के कारण इसकी बहुत मांग हैं. चापड़ा उन्हीं चींटियों से बनाया जाता है जो मीठे फलों के पेड़ पर अपना आशियाना बनाती हैं. आदिवासियों का कहना है कि चापड़ा को खाने की सीख उन्हें अपनी विरासत से मिली है. यदि किसी को बुखार आ जाए तो उस व्यक्ति को उस स्थान पर बैठाया जाता है जहां लाल चींटियां होती हैं. चींटियां जब पीड़ित व्यक्ति को काटती हैं तो उसका बुखार उतर जाता है. बस्तर में लगने वाले साप्ताहिक बाजार में चापड़ा के शौकीन इसे खूब खरीदते हैं.
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आदिवासियों के बीच चापड़ा की लोकप्रियता को देखते हुए छत्तीसगढ़ के एक युवक ने इसे रोजगार का हिस्सा बना लिया. आदिवासी युवक राजेश यालम बस्तरिया फूड का ढाबा चलाते हैं और चींटी की चटना से उन्हें अच्छी कमाई हो रही है. राजेश का ढाबा बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर से बीजापुर की नेशनल हाईवे-63 के किनारे तिरतुम में है. जगदलपुर से 55 किलोमीटर दूर तिरतुम में “आमचो बस्तर” ढाबा के मालिक राजेश यालम की उम्र महज 23 साल है. इतनी कम उम्र में ही राजेश ने अपनी अलग पहचान न सिर्फ बस्तर, छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश में बना ली है. राजेश का आमचो बस्तर ढाबा संभवत: पूरे देश में एक मात्र ढाबा है, जिसके मेन्यू कार्ड में लाल चींटी की चटनी भी शामिल है.
बस्तरिया फूड को बनाया लोकप्रिय
राजेश कहते हैं- मैं बस्तर के पारंपरिक व्यंजनों के प्रचार-प्रसार के लिए देश भर में घूमता हूं. जहां भी आदिवासी मेला, पारंपरिक व्यंजनों का एक्जीबिशन आयोजित होता है, वहां मैं स्टॉल लगाता हूं. बस्तरिया फूड लोग पसंद करते हैं, लेकिन ये आसानी से लोगों को उपलब्ध नहीं हो पाता है. खुद बस्तर में ही तमाम होटल और ढाबों के मेन्यू कार्ड में रेगुलर आइटम के अलावा चाइनिज व्यंजनों की भरमार होती है. बस्तरिया फूड कहीं नहीं मिलता. इसलिए ही मैंने ऐसा ढाबा संचालित करने का निर्णय लिया, जहां बस्तरिया फूड लोगों को खिलाया जा सके. इस ढाबे से औसतन 2 से ढाई लाख रुपये प्रतिमाह का व्यवसाय हो जाता है.
राजेश बताते हैं आमचो बस्तर ढाबे में बस्तर की विश्व प्रसिद्ध लाल चींटी की चटनी (चांपड़ा), बांबू चिकेन, सुक्सी, भेंडा झोर, अंडा पुड़गा, टिकुर की मिठाई, महुआ लड्डू, माड़िया पेच, लांडा (चावल से बनी शराब), मौसम के अनुसार बोड़ा और पुटू, महुआ चाय समेत अन्य बस्तरिया व्यंजन का लुत्फ यहां लिया जा सकता है.
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