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Joshimath Sinking 50 साल पहले दे दी गई थी चेतावनी, जानें जोशीमठ क्यों डूब रहा...

जोशीमठ शहर वास्तव में प्राचीन कालखंड में हुए भूस्खलन के मलबे पर स्थित है. 50 साल पुरानी एक रिपोर्ट में इसीलिए यहां भारी निर्माण पर कड़ाई से प्रतिबंध लगाने की सलाह दी गई थी. इस रिपोर्ट में ही निवासियों से कह दिया था कि जोशीमठ डूब जाएगा.

Updated on: 07 Jan 2023, 01:05 PM

highlights

  • जोशीमठ प्राचीन कालखंड में हुए भूस्खलन के मलबे पर है स्थित
  • 1976 में ही एक सर्वेक्षण दल ने इसके डूबने की दे दी थी चेतावनी
  • हर तरह के निर्माण कार्यों पर कड़ाई से प्रतिबध लगाने को कहा था

नई दिल्ली:

आठवीं शताब्दी में धर्म सुधारक आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) ने उत्तराखंड (Uttarakhand) के प्राचीन कस्बे जोशीमठ में ही ज्ञान प्राप्त किया था. आज हिंदू संस्कृति और धर्म का अभिन्न हिस्सा बन चुका जोशीमठ गंभीर चिंता का विषय बन चुका है. एशिया के सबसे लंबे रोपवे समेत दो होटलों को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है. लोग सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि सैकड़ों परिवारों को उनके ही घरों से निकाल सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है. जोशीमठ (Joshimath) के निवासियों ने 'जोशीमठ चट्टान' से फिर पानी निकलने के बीच बद्रीनाथ (Badrinath) राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया. लोग इसके पहले से अपने घरों, सड़कों और कृषि क्षेत्रों में दिखाई देने वाली अशुभ छेदों और दरारों से जूझ रहे थे. सोमवार आधी रात को उन्होंने जमीन की सतह के नीचे से फिर आवाजें सुनीं. डर के मारे कई परिवारों को अगले दिनों में सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया. तमाम परिवार सुरक्षित स्थानों पर ले जाए जाने का इंतजार कर रहे हैं. उनके डर को और बढ़ाने का काम किया मारवाड़ी में जेपी आवासीय कॉलोनी के पास के इलाके में पानी युक्त एक बलुआ चट्टान के फट जाने ने. सभी तरह के निर्माण कार्यों पर रोक लगाने के लिए सरकार से लगातार गुहार लगा रहे स्थानीय लोग अपने डूबते शहर को बचाने के लिए अपने हाथों में टॉर्च की रोशनी में सड़कों पर उतर आए. सभी को एक डर सता रहा है कि जिस पहाड़ी पर शहर स्थित है वह ढहने वाली है, क्योंकि यह एक प्राचीन कालखंड में हुए भूस्खलन के मलबे पर स्थित है, जो शहर की नींव कमजोर बना रहा है

दो बड़े निर्माण कार्यों पर रोक
उत्तराखंड सरकार ने लोगों के डर को शांत करने की कोशिश करते हुए गुरुवार को वैज्ञानिकों की एक टीम का गठन किया, जो जमीन धंसने और घरों में दरार के कारणों का पता लगा रही है. टीम मौके पर जाकर कारणों की जांच करेगी. हालांकि शाम को ही चमोली के जिला मजिस्ट्रेट ने तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना और हेलोंग बाईपास के लिए चल रहे निर्माण कार्य को तत्काल प्रभाव से रोकने का आदेश दे दिया. पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों की मानें तो ये परियोजनाएं ही जमीन धंसने के मुख्य कारणों में से एक मानी जाती हैं. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक 561 घरों में कथित तौर पर दरारें आई हैं. अब तो सिंहधर और मारवाड़ी में दरारें चौड़ी होने का सिलसिला शुरू हो गया है. सिंहधर जैन मोहल्ले के पास बद्रीनाथ एनएच और मारवाड़ी में वन विभाग की चेक पोस्ट के पास जेपी कंपनी गेट में लगातार दरारें पड़ रही हैं. जोशीमठ नगरपालिका अध्यक्ष शैलेंद्र पवार के मुताबिक हर घंटे बढ़ रही दरारें  चिंताजनक हैं.

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2021 में मिला जोशीमठ के डूबने का पहला संकेत 
घरों में दिखाई देने वाली दरारें पहली बार 2021 में राष्ट्रीय सुर्खियां तब बनी जब चमोली में आए विनाशकारी भूस्खलन की प्रतिक्रियास्वरूप कई और भूस्खलन हुए. यहां रह रहे लोगों ने अपने घरों को सहारा देने के लिए उनके नीचे लकड़ी के खंभों को लगाना शुरू कर दिया. इसके अगले साल भी अक्सर भूकंप के झटके महसूस किए गए. 2022 में भी उत्तराखंड सरकार ने एक विशेषज्ञ दल का गठन किया था. इस दल ने पाया कि मानव निर्मित और प्राकृतिक कारकों से जोशीमठ के कई इलाके डूब रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार पैनल ने पाया कि सतही भू-धसांव की वजह उसके नीचे की सतह या मिट्टी के हटने से हो रहा है. इसकी वजह से जोशीमठ के लगभग सभी वार्डों की इमारतों में ढांचागत दोष और नुकसान हुआ है. पिछले साल जोशीमठ नगरपालिका के एक सर्वेक्षण में पता चला था कि एक साल में शहर के 500 से अधिक घरों में दरारें आई हैं, जिसकी वजह से अब वे रहने योग्य नहीं रह गए हैं. इस विशेषज्ञ दल में नगर पालिका अध्यक्ष शैलेंद्र पंवार, एसडीएम कुमकुम जोशी, भूवैज्ञानिक दीपक हटवाल, कार्यपालक अभियंता (सिंचाई) अनूप कुमार डिमरी और जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी एन के जोशी शामिल थे. 24 दिसंबर को जोशीमठ के धीरे-धीरे डूबने से प्रभावित लोगों ने प्रशासन पर कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाने का आरोप लगाते हुए शहर में एक विरोध मार्च निकाला. दिसंबर में गांधीनगर की पूर्व वार्ड सदस्य ललिता देवी ने कहा था कि जोशीमठ के गांधीनगर, रविग्राम और सुनील इलाकों में 40 से अधिक परिवार ऐसी जोखिम भरी परिस्थितियों में रह रहे हैं, जबकि 10 परिवार घरों को मजबूती देने के लिए लगाए गए लकड़ी के खंभे वाले घरों में रह रहे हैं. स्थानीय लोगों का आरोप है कि कस्बे के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के बावजूद अब तक प्रभावित परिवारों को कोई मदद नहीं दी गई है. विशेष रूप से चमोली जिले के जोशीमठ में, जो न केवल भारत-तिब्बत सीमा के बेहद पास होने के कारण सामरिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह बद्रीनाथ, फूलों की घाटी और हेमकुंड को जाते रास्तों पर बसा अंतिम प्रमुख शहर भी है.

लगातार हो रहे कई भूस्खलनों की आखिर वजह क्या है
इस क्षेत्र में अत्यधिक निर्माण से बड़े पैमाने पर कई भूस्खलन हुए हैं. सीएसआईआर के शीर्ष वैज्ञानिक डीपी कानूनगो के मुताबिक 2009 से 2012 के बीच चमोली-जोशीमठ क्षेत्र में 128 भूस्खलन दर्ज किए गए. ऑल वेदर चार धाम रोड परियोजना पर हाई पावर कमेटी (एचपीसी) के पूर्व अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने कहा कि जोशीमठ के धंसने के विभिन्न कारणों में शीर्ष दो कारण सुरंग खोदना और ढलान काटना है.  1976 में मिश्रा समिति द्वारा बताई गई सावधानियों का कालांतर में कभी भी पालन नहीं करने से स्थिति और बिगड़ी है. शहर के तेजी से विकास के अलावा हमने एक सुरंग खोदकर जमीन परअतिरिक्त बोझ लादा है. इसने एक बड़ी बलुआ चट्टान में और दरारें और छेद बना दिए हैं.

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50 साल पहले जारी हुई थी जोशीमठ के डूबने की चेतावनी
एक अंग्रेजी अखबार ने पिछले साल 1976 की मिश्रा समिति की रिपोर्ट के आधार पर खुलासा किया था कि लगभग 50 साल पहले ही ऐसी घटना की चेतावनी दे दी गई थी. इसमें कहा गया था कि सड़कों की मरम्मत और अन्य निर्माण कार्यों के क्रम में यह सलाह दी जाती है कि पहाड़ी के पास पत्थरों को खोदकर या विस्फोट कर न हटाया जाए. इसके साथ ही पेड़ों को बच्चों की तरह पाला जाए. रिपोर्ट के अनुसार कभी मिश्रा पैनल के सदस्यों को उनकी पूर्व चेतावनी के लिए फटकार लगाने वाले कस्बे के पुराने लोग ही अब उलाहना दे रहे हैं कि बाद की सरकारें मिश्रा पैनल के निष्कर्षों पर ध्यान देने में विफल रहीं. जोशीमठ की 66 वर्षीय निवासिनी ने 1976 के सर्वेक्षण दल के सदस्यों के साथ हुई बातचीत को याद करते हुए बताया, 'हम सिंहधार में किराए के मकान में रहती थी और मेरे पति आईटीबीपी में कार्यरत थे. विशेषज्ञ दल ने तपोवन से सुनील तक के इलाके का सर्वेक्षण किया और हमारे कच्चे घरों तक पहुंचने पर उन्होंने कहा कि आपका शहर डूब जाएगा, क्योंकि इसका जीवन सिर्फ 100 साल का है.' एक और निवासी शांति चौहान के मुताबिक, 'उनकी चेतावनी पर हम सभी आग बबूला हो गए और उन्हें हमारे शहर को अपशब्द कहने और गाली देने के लिए डांटा, लेकिन आज हमें पता चल रहा है कि वे सही थे. हमारे घर के चार कमरों में दरारें आ गई हैं.' रिपोर्ट के अनुसार मिश्रा समिति का नाम अविभाजित उत्तर प्रदेश में तत्कालीन गढ़वाल आयुक्त एमसी मिश्रा के नाम पर रखा गया था. इसमें 18 सदस्य शामिल थे.मिश्रा ने 1976 में टीम को 10 से 15 मई के बीच ग्राउंड सर्वे करने का निर्देश दिया था. इस विशेषज्ञ दल में सेना, आईटीबीपी, बीआरओ, श्री केदारनाथ-बद्रीनाथ मंदिर समिति और स्थानीय प्रशासन के सदस्य थे. समिति को भूस्खलन और डूबने के कारणों का पता लगाने के साथ-साथ लघु और दीर्घकालिक उपचार के तहत आर्थिक प्रभाव का आकलन भी करना था. उस समय की रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ प्राचीन कालखंड में हुए भूस्खलन के मलबे पर स्थित है. इसके साथ ही विशेषज्ञ दल ने किसी भी भारी निर्माण कार्य पर सख्त रोक लगाने की भी अनुशंसा की थी.

जून 2022 में एक और चेतावनी
पिछले साल एक और रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि रैनी से एक घंटे की ड्राइव पर स्थित जोशीमठ डूब जाएगा, यदि विभिन्न विकास कार्यों के लिए हो रही खुदाई तुरंत बंद नहीं की जाती. उन्होंने कहा कि ऑल वेदर चार धाम सड़क के हेलोंग और मारवाड़ी के बीच 20 किमी-खंड का चौड़ीकरण केवल अत्याधुनिक ढलान तकनीक के बाद ही किया जाना चाहिए. गौरतलब है कि रैनी में 2021 में आई भीषण बाढ़ की चपेट में आकर 200 लोग मारे गए थे. मीडियी रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में इस वैज्ञानिक दल का गठन स्थानीय रहवासियों की मांग पर किया गया था. स्थानीय लोगों को जमीन धंसने और ढलान पर तेजी से हो रहे मिट्टी के क्षरण ने गहरी चिंता में डाल दिया था. इस क्षरण और जमीन धंसने की शुरुआत 2021 नवंबर से हो गई थी. विशेषज्ञ दल ने कई आधोभूत संरचना से जुड़े निर्माण कार्यों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था. साथ ही रैनी की फ्लश फ्लड को भी जिम्मेदार कारण माना था.

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अब वैज्ञानिकों की क्या है सलाह 
साइट की स्थिरता की जांच के बाद ही क्षेत्र में आगे का निर्माण किया जाना चाहिए. इसके साथ ही ढलानों पर उत्खनन पर कड़ाई से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.
खुदाई या विस्फोट से कोई पत्थर नहीं हटाया जाना चाहिए और भूस्खलन के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में कोई पेड़ नहीं काटा जाना चाहिए.
चार धाम सड़क के चौड़ीकरण के संबंध में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि तुषार धारा और चुनुंगी धार से पहले एक छोटे से खंड को छोड़कर, जहां कठोर क्रिस्टलीय चट्टानों के माध्यम से सड़क की खुदाई की जा रही है, हेलोंग और मारवाड़ी के बीच 20 किलोमीटर की सड़क का अधिकांश भाग पुराने भूस्खलन के जमा मलबे से होकर गुजरता है. ऐसे में हमें जमीन धंसने या भूस्खलन के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की जमीन और मिट्टी को स्थिरता प्रदान करने के तरीके खोजने चाहिए.