Field Marshal KM Cariappa आजाद भारत के पहले सैन्य प्रमुख के लिए पंडित नेहरू की नहीं थे पहली पसंद
आजाद भारत के पहले कमांडर इन चीफ केएम करियप्पा से जुड़े तमाम दिलचस्प तथ्य हैं, जिनमें निहित अविश्वसनीय देशभक्ति और साहस आज भी भारतीय सशस्त्र बलों पर गहरा प्रभाव रखते हैं.
highlights
- 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक में जन्में थे केएम करियप्पा
- 1942 में लेफ्टिनेंट कर्नल का पद संभालने वाले पहले भारतीय
- करियप्पा से पहले फील्ड मार्शल पदवी सैम मानेकशॉ को दी गई थी
नई दिल्ली:
हर साल 15 जनवरी को सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब आजाद भारत के तत्कालीन जनरल केएम करियप्पा (KM Cariappa) ने 1949 में अंतिम ब्रिटिश कमांडर जनरल सर एफआरआर बुचर से भारतीय सेना (Indian Army) की कमान संभाली थी. 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक (Karnataka) में जन्में केएम करियप्पा स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय कमांडर-इन-चीफ बने. माडिकेरी सेंट्रल हाई स्कूल से शुरुआती शिक्षा करने के बाद 1917 में उन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई खत्म करते-करते ही करियप्पा का चयन इंदौर स्थित आर्मी ट्रेनिंग स्कूल में हो गया. यहां से प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 1919 में उन्हें सेना में कमीशन मिला और वह भारतीय सेना में सेकेंड लेफ्टिनेंट बन गए. 1942 में करियप्पा लेफ्टिनेंट कर्नल का पद पाने वाले पहले भारतीय अफसर बने. यही नहीं, वह स्टाफ कॉलेज क्वेटा में भाग लेने वाले पहले भारतीय सैन्य अधिकारी थे. साथ ही एक बटालियन की कमान संभालने वाले पहले भारतीय सैन्य अधिकारी भी. फील्डज मार्शल (Field Marshal)कमांडर इन चीफ केएम करियप्पा से जुड़े तमाम दिलचस्प तथ्य हैं, जिनमें निहित अविश्वसनीय देशभक्ति और साहस आज भी भारतीय सशस्त्र बलों पर गहरा प्रभाव रखते हैं. करियप्पा की जयंती पर एक नजर डालते हैं उनके शानदार सैन्य कैरियर पर.
- करियप्पा यूके के केंबरली स्थित इंपीरियल डिफेंस कॉलेज में प्रशिक्षण के लिए चुने गए पहले दो भारतीयों में से एक थे.
- करियप्पा को उनके नजदीकी दोस्त उपनाम 'किपर' से पुकारते थे. करियप्पा 1919 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए थे.
- उन्हें टैंपरेरी सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में बॉम्बे (अब मुंबई) में कर्नाटक इन्फैंट्री में नियुक्त किया गया था.
- 1942 में करियप्पा लेफ्टिनेंट कर्नल का पद संभालने वाले पहले भारतीय बने. इससे पहले इस पद पर सिर्फ अंग्रेजों की ही तैनाती होती थी.
- 1944 में केएम करियप्पा को ब्रिगेडियर बनाया गया.
- 30 से अधिक वर्षों के अपने शानदार करियर में करियप्पा ने 1941 से 1942 तक इराक, सीरिया और ईरान में और फिर 1943-1944 में बर्मा में सेवा की. उन्होंने अपने कई सैनिक वर्ष वजीरिस्तान अब पाकिस्तान में बिताए.
- 1947 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान उन्हें पश्चिमी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ के रूप में तैनात किया गया था. उन्होंने आक्रमणकारियों द्वारा जब्त किए गए क्षेत्रों पर फिर से कब्जा करने का निर्देश मिला था, जिसे उन्होंने बाखूबी अंजाम दिया.
- आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू किसी अंग्रेज सैन्य अधिकारी को स्वतंत्र भारत का पहला सेना प्रमुख बनाना चाहते थे. इसको लेकर 1948 में उन्होंने बैठक बुलाई, जिसमें तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर ने करिय्पा का नाम सुझाया था. इसके लिए राठौर ने तर्क दिया था, 'हमारे पास तो देश को नेतृत्व देने का भी अनुभव नहीं है, तो क्यों न किसी अंग्रेज को ही स्वतंत्र भारत का पहला प्रधानमंत्री बना दिया जाए.'
- 1983 में भारत सरकार ने जनरल करियप्पा को फील्ड मार्शल की पांच सितारा रैंक से सम्मानित किया.
- इसके पहले उन्हें जनरल सर्विस मेडल, इंडियन इंडिपेंडेंस मेडल, ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर, 1939-1945 स्टार, बर्मा स्टार, वॉर मेडल 1939-1945, इंडियन सर्विस मेडल और लीजन ऑफ मेरिट से भी सम्मानित किया जा चुका था.
- आज भी करियप्पा केवल दूसरे आर्मी जनरल हैं जिन्हें भारत सरकार द्वारा फील्ड मार्शल के सम्मान से सम्मानित किया गया. उनके अलावा 1973 में फील्ड मार्शल पदवी से नवाजे गए पहले सैन्य अधिकारी सैम मानेकशॉ थे.
- अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन ने करियप्पा को ऑर्डर ऑफ द चीफ कमांडर ऑफ द लीजन ऑफ मेरिट पदवी से भी सम्मानित किया था.
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