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100 साल बाद दिखा पूर्ण सूर्यग्रहण, ऐसा था नजारा (Video)

2017 के दूसरा और सबसे लंबे सूर्य ग्रहण की चर्चा दुनिया भर में हो रही है। हालाांकि इसका असर भारत में नहीं पड़ेगा।

Updated on: 22 Aug 2017, 05:55 AM

नई दिल्ली:

2017 के दूसरे और सबसे लंबे सूर्य ग्रहण की चर्चा दुनिया भर में हो रही है। यह सूर्यग्रहण अमेरिकी समय के अनुसार सुबह 10:15 बजे से ऑरेगन के तट से दिखा। चांद की छाया ने धीरे-धीरे सूर्य को ढक दिया। 

यह ग्रहण यूरोप, उत्तर/पूर्व एशिया, उत्तर/पश्चिम अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका में पश्चिम, दक्षिण अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक, आर्कटिक की ज्यादातर हिस्सों में दिखेगा। हालांकि भारत में सूर्यग्रहण नहीं दिखाई पड़ेगा।

दरअसल भारतीय समयनुसार यह ग्रहण रात में 9.15 मिनट से शुरु होकर रात में 2.34 मिनट पर खत्म हो गया।

हालांकि सूर्यग्रहण को अंतरिक्ष एजेंसी नासा लाइव टेलीकास्ट किया। नासा की वेबसाइट के मुताबिक, 'करीब 100 मिनट सूर्यग्रहण के दौरान अमेरिका के 14 राज्य, दिन के मध्य में 2 मिनट के लिए अंधेरे का अनुभव करेंगे।'

वेसाइट से मिली जानकारी के अनुसार एजेंसी 11 जगहों से सूर्य ग्रहण की कवरेज करेगी। नासा 3 रिसर्च प्लेन, 50 से ज्यादा हाई-ऑल्ट्यूटड वाले गुब्बारे और सैटेलाइट के जरिए कवरेज करेगा।

ऐसे में आप घर बैठ कर आप इसको देख सकते है। नासा सूर्य ग्रहण का सीधा प्रसारण अमेरिकी समय के मुताबिक दोपहर में 12 बजे शुरू करेगा।

इससे पहले साल का पहला सूर्यग्रहण 26 फरवरी को लगा था और दो हफ्ते पहले यानि 7 अगस्त को रक्षाबंधन वाले दिन खंडग्रास चंद्रग्रहण था।

कब पड़ता है सूर्य ग्रहण
सूर्य ग्रहण तब लगता है जब पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा आ जाता है। सूर्य ग्रहण तीन प्रकार का होता है। पहला पूर्ण सूर्य ग्रहण, दूसरा आंशिक सूर्य ग्रहण और तीसरा वलयकार सूर्य ग्रहण। इस बार यह सूर्य ग्रहण आंशिक बताया जा रहा है।

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क्या कहते हैं वैज्ञानिक

सूर्यग्रहण के दौरान पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव प्रभावित होते हैं। सूर्य से अल्ट्रावॉयलेट किरणें निकलती हैं जो एंजाइम सिस्टम को प्रभावित करती हैं, इसलिए सूर्यग्रहण के दौरान सावधानी बरतने की जरूरत है। वैज्ञानिको के अनुसार सूर्यग्रहण को कभी भी नंगी आंखों से नहीं देखना चाहिए।

इसको देखने के लिए वैज्ञानिक प्रमाणित टेलिस्‍टकोप का ही इस्‍तेमाल करना चाहिए। सूर्य ग्रहण को देखने के लिए खास चश्‍में का भी इस्‍तेमाल किया जा सकता है, जिनमें अल्‍ट्रावॉयलेट किरणों को रोकने की क्षमता हो।

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