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अंटार्टिका का 1 खरब टन वाला हिमखंड टूटा, भारत के लिए भी है ख़तरनाक

अंटार्टिका का 1 खरब टन वाला हिमखंड टूट गया है, भारत के लिए भी यह बात चिंताजनक है। टूटा हिमखंड दिल्ली से 4 गुना और न्यूयॉर्क सिटी से 7 गुना बढ़ा है।

Updated on: 13 Jul 2017, 03:01 PM

नई दिल्ली:

अंटार्कटिका से एक खरब टन वाला हिमशैल टूटकर अलग हो गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह अब तक का सबसे बड़ा हिमशैल है, इसके बाद यह अब दक्षिणी ध्रुव के आसपास जहाजों के लिये गंभीर खतरा बन साबित हो सकता है।

कई महीनों के पूर्वानुमान के बाद आखिरकार यह हिमशैल टूटकर अलग हो गया है। वैज्ञानिकों की मानें तो इसके टूटने से अंटार्कटिक प्रायद्वीप का परिदृश्य अब हमेशा के लिये बदल गया है।

यह हिमशैल देश की राजधानी दिल्ली से 4 गुना बड़ा है जबकि अमेरिका के न्यूयॉर्क सिटी से 7 गुना बड़ा है। लार्सन सी बर्फ की चट्टान से टूटकर अलग हुए इस हिमखंड का आकार 5 हजार 800 वर्ग किलोमीटर बताया जा रहा है। 

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क्या होगा असर? 

1. दरअसल अंटार्कटिका से हमेशा हिमशैल अलग होते रहते ही हैं लेकिन यह अब तक का सबसे बड़ा हिमशैल है जो टूटकर अलग हुआ है।

2. वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसे में महासागर जाने के इसके रास्ते पर निगरानी की जरूरत है, क्योंकि अब यह समुद्री यातायात के लिये मुश्किलें पैदा कर सकता है।

3. वैज्ञानिकों के मुताबिक इस हिमखंड के अलग होने के बाद वैश्विक समुद्री स्तर में 10 सेंटीमीटर की वृद्धि हो जाएगी।

4. कई सालों से वैज्ञानिक पश्चिमी अंटार्कटिक हिम चट्टान में बढ़ती दरार को देख रहे थे। रिसर्चर्स के मुताबिक यह घटना 10 जुलाई से लेकर 13 जुलाई के बीच हुई है। 

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ख़ास बातें -

1. संभव है वैज्ञानिक इस हिमशैल को ए68 नाम दें।

2. यह एक खरब टन से ज्यादा वजन वाला है।

3. इससे पहले लार्सेन ए और बी हिमखंड 1995 और 2002 में ही ढह चुके हैं

4. वैज्ञानिकों के मुताबिक समुद्र स्तर पर हिमखंड के अलग होने से तुरंत असर नहीं होगा, लेकिन यह लार्सेन सी हिमचट्टान के फैलाव को 12 प्रतिशत तक कम कर देगा।

5. वैज्ञानिकों ने इसकी वजह कार्बन उत्सर्जन को बताया है।

6. वैज्ञानिकों के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है जिससे ग्लेशियर जल्दी पिघलते जा रहे हैं।

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क्या होगा असर?

ऐसा माना जा रहा है कि समुद्री स्तर में बढ़ोतरी होने से अंडमान और निकोबार के कई टापू और बंगाल की खाड़ी में सुंदरबन के हिस्से डूब सकते हैं। अरब सागर में इसका असर अभी नहीं लेकिन बाद में दिखाई देगा। भारत की 7 हजार 500 किलोमीट लंबी तटीय रेखा को इससे खतरा है।

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