कैलाश मानसरोवर यात्रा: सुषमा स्वराज ने पहले जत्थे को किया रवाना, जानिये 5 खास बातें
भारत से नेपाल के रास्ते कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले पहले जत्थे को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दिल्ली से हरी झंडी दिखाकर रवाना कर दिया है।
नई दिल्ली:
भारत से नेपाल के रास्ते कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले पहले जत्थे को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दिल्ली से हरी झंडी दिखाकर रवाना कर दिया है। 12 जून से शुरू होकर 8 सितंबर तक चलने वाली इस यात्रा में करीब 4000 लोगों ने आवेदन किया है। इनमें से पहले जत्थे के लिए लॉटरी के जरिए 60 लोगों का चयन किया गया है।
सुषमा स्वराज ने यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों से रास्ते को दूषित नहीं किये जाने की अपील की है।
#Delhi External Affairs Minister Sushma Swaraj at the flag off event of first batch of the Kailash Mansarovar Yatra. pic.twitter.com/EsN2tgrI4A
— ANI (@ANI_news) June 11, 2017
आइये जानते हैं कि भारत के लिए क्यूं खास है कैलाश मानसरोवर यात्रा:
* कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊंचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। कैलाश मानसरोवर बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दूओं का आध्यात्मिक केन्द्र माना जाता है।
* हिंदु धर्म की मान्यता के अनुसार कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान है। कैलाश पर्वत को शक्तिपीठ भी कहते है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार यहां देवी सती के शरीर का दांया हाथ गिरा था।
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* कैलाश पर स्थित बुद्ध भगवान के अलौकिक रूप 'डेमचौक' बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पूजनीय है। जैनियों की मान्यता है कि आदिनाथ ऋषभदेव का यह निर्वाण स्थल 'अष्टपद' है। कहते हैं ऋषभदेव ने आठ पग में कैलाश की यात्रा की थी।
* मानसरोवर की यात्रा के लिए तीर्थयात्री दो अलग-अलग मार्गों से जा सकते है। एक मार्ग उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रा होकर जाता है। वहीं दूसरा मार्ग नेपाल की राजधानी काठमांडू से होकर जाता है।
* जानकारी के अनुसार उत्तराखंड से जाने वाला मार्ग बहुत मुश्किल है क्योंकि यहां ज़्यादातर पैदल चलकर ही यात्रा पूरी हो पाती है। मौसम के बदलाव के कारण यह खतरनाक भी ज्यादा होता है।
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