Sri Krishna Janmashtami 2018: जानें बिना शिखर वाला गोविंद देव जी मंदिर का इतिहास
मान्यता है कि गोविंद देव जी की मूर्ति को वृंदावन से जयपुर लाया गया था।
नई दिल्ली:
भगवान श्रीकृष्ण की 5245वीं जयंती को लेकर मंदिरों को सजाने की तैयारी शुरू हो गई है। मथुरा समेत देश भर में फैले कृष्ण मंदिरों को सजाया-संवारा जा रहा है। हर साल भगवान कृष्ण के भक्त जन्माष्टमी का बहुत बेसब्री से इंतजार करते हैं। पूरी रात भगवान कृष्ण के जन्मदिन का जश्न धूमधाम से मनाया जाता हैं। मथुरा के साथ ही राजस्थान के कृष्ण मंदिरों में भी भक्तों का तांता लगा हुआ है। वहीं भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित गोविंद देव जी के मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर इसकी छटा देखते ही बनती है। यहां ठाकुरजी की अलौकिक छवि भक्तों के दिलों में भक्ति का संचार करती है।
राजस्थान के जयपुर में स्थित गोविंद देव जी यहां के आराध्य देव हैं कहलाते है। कहा जाता है कि गोविंद देव जी की मूर्ति को वृंदावन से जयपुर लाया गया था। इससे पहले गोविंद देव जी आमेर की घाटी में करीब एक साल तक विराजे थे। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित गोविंद देव जी मंदिर जयपुर का सबसे मशहूर बिना शिखर वाला मंदिर है।
जयपुर के कनक वृंदावन बाग में बसा ये है श्री गोविंद देव जी का मंदिर, जहां कृष्ण के तीन विग्रहों में से एक श्री गोविंद देव जी विराजमान हैं।
श्री गोविंद देव जी मंदिर का इतिहास
कनक वृंदावन बाग कनक घाटी में नाहरगढ़ पहाड़ी की तलहटी में मौजूद है। जयपुर के कछवाहा राजपूत महाराजा सवाई जयसिंह ने इस बगीचे और मंदिर का निर्माण करवाया था। जिसे कनक वृंदावन के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि कनक नाम महाराजा की एक रानी कनकदे के नाम से आया जबकि गोविंददेव जी की मूर्ति यहां वृंदावन से लाई गई थी इस वजह से इसमें वृंदावन नाम जोड़ा गया।
कनक वृंदावन बाग बहुत बड़े इलाके में फैला है। यहां बने मंदिरों में बेज पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है। जिसमें संगमरमर के कॉलम और बारीक जालीदार खिड़कियां हैं। खूबसूरत लैंडस्केप, खूबसूरत लॉन, सुंदर फव्वारों, और चमचमाती झीलों के साथ जयपुर का ये सबसे लोकप्रिय स्थल है और कृष्ण भक्तों की आस्था का बेहद पवित्र दर है।
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