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रमजान: जानिए, क्यों रखते है रोजे और रमादान से जुड़ी मान्यताएं

इस्लाम धर्म में रमजान को सबसे पवित्र महीना माना जाता है। रमजान को अरबी भाषा में रमादान कहते हैं।

Updated on: 28 May 2017, 08:37 PM

नई दिल्ली:

इस्लाम धर्म में रमजान को सबसे पवित्र महीना माना जाता है। रमजान को अरबी भाषा में 'रमादान' कहते हैं। रमजान के महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं। इस बार पहला रोजा 15 घंटे लंबा होगा। रमजान के महीने में सूरज छिपने तक रोजा बिना कुछ खाये-पिए रखा जाता है। इस साल रमजान 28 मई से शुरू हो रहा है और 27 जून को खत्म होगा। चांद दिखाई देने पर रोजे शुरु होते हैं और जिस शाम को चांद दिखाई देता है उसकी अगली सुबह से रोजे शुरू हो जाते हैं।

जो रोजे रखते हैं वे सवेरे जल्दी उठ कर सुबह से पहले ही खा लेते हैं जिसे सहरी कहा जाता है। शाम को इफ्तार के साथ रोजा खोला जाता है। रमजान के पूरे महीने विशेष नमाज अदा की जाती है। पहली बार कुरान के उतरने की याद में मुसलमान पूरे महीने रोजे रखते हैं

मुस्लिम धर्म में रमजान सबसे पवित्र महीना माना जाता है और यह एक तरह का पर्व होता है जो इस्लामी कैलेन्डर के नौवें महीने में मनाया जाता है। पूरी दुनिया में मुस्लिम समाज इसे पैगम्बर हजरत मोहम्मद पर पवित्र कुरान के अवतरण के उपलक्ष्य में उपवास और पूरी श्रद्धा से साथ मनाता है। इस माह को कुरान शरीफ के नाजिल का महीना भी माना जाता है।

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रोजा रखते वक्त कुछ बातों का ख्याल रखना भी जरूरी है। रोजे के दौरान कुछ खाया-पिया नहीं जाता है। रोजे सुबह सहरी के साथ रखा जाता है और इफ्तार के साथ खत्म कर दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पाक रमजान माह में फर्ज नमाजों का शबाब 70 गुणा बढ़ जाता है।

रमजान का महीना सबाब का महीना होता है। इस्लाम के पांच अन्य स्तंभों में धर्म पर सच्ची श्रद्धा रखना, नमाज पढ़ना, दान देना और हज करना शामिल है। रमजान के महीने में गरीबों और जरूरतमंदो को दान दिया जाता हैं। इस महीने में अल्लाह से अपने सभी बुरे कर्मों के लिए माफी मांगी जाती है और तौबा के साथ इबादतें की जाती हैं।

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