Eid-ul-Adha: जानिए क्यों मनाई जाती है बकरीद और क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी
Eid-ul-Adha: सऊदी अरब समेत दुनिया के कई देशों में आज बकरीद मनाई जा रही है. लेकिन भारत में कल बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा. हर त्योहार के मनाने के पीछे एक इतिहास होता है. बकरीद के पीछे भी एक कहानी है.
New Delhi:
Eid-ul-Adha: भारत में कल यानी गुरुवार को ईद अल-अजा यानी बकरीद मनाई जाएगी. बकरीद के मौके पर हाजी मक्का में कुर्बानी देते हैं तो वहीं बरकीद के मौके पर लोग अपने घरों में बकरों की कर्बानी कर त्योहार मनाते हैं. जैसे हर त्योहार को मनाने के पीछे कोई न कोई वजह और उसका इतिहास होता है. वैसे ही बकरीद मनाने के पीछे भी कई वजह छिपी हुई हैं. आज हम आपको बकरीद के मौके पर उसके मनाने के कारण और इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं. मुस्लिम धर्म की पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, बकरीद का त्याग और बलिदान का संदेश देने वाला पर्व है. बकरीद के दिन ईदगाहों और मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है. उसके बाद खुदा की इबादत के रुप में बकरे की कुर्बानी दी जाती है.
क्यों मनाई जाती है बकरीद
बकरीद को बड़ी ईद के नाम से भी जाना जाता है. ईद-उल-अज़हा यानी बकरीद का मतलब कुर्बानी की है. यह इस्लाम धर्म का विशेष त्योहार है. बकरीद के दिन मस्जिदों और ईदगाहों में बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोग इकट्ठे होते हैं नमाज अदा करने के बाद ऊंट, बकरे, भैंस, भेड़ जैसे जानवर की कुर्बानी दी जाती है. इस्लामिक धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, इसी दिन हजरत इब्राहिम अपने पुत्र हजरत इस्माइल को खुदा के हुक्म पर खुदा कि राह में कुर्बान करने वाले थे. ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर अपने बेटे की गर्दन पर वार किया. वैसे ही उनके बेटे की जगह एक भेड़ के चिल्लाने की आवाज आई.
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जब हजरत इब्राहिम ने आंखों से पट्टी हटाई तो वहां कटी हुई भेड़ पड़ी थी.और हजरत इस्माइल दूर खड़े थे. दरअसल, अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी थी. हजरत इब्राहिम अपने बेटे से सबसे ज्यादा मोहब्बत करते थे. इसलिए उन्होंने अपने बेटे की कर्बानी देने का फैसला लिया. लेकिन अल्लाह ने उनसे खुश होकर उनके बेटे की जान बख्स दी. इसीलिए बकरीद के दिन बकरे की कर्बानी दी जाती है और ये त्योहार हजरत इब्राहिम की कुर्बानी के रूप में मनाया जाता है.
बकरीद का इतिहास
कहा जाता है कि जब हजरत इब्राहिम के कोई संतान नहीं हुई तो वह बेहद दुखी थे. लेकिन उनकी इबादतों से खुश होकर अल्लाह ने उन्हें पुत्र के रूप में एक बेटा दिया. उन्होंने अपने इस बेटे का नाम इस्माइल रखा. हजरत इब्राहिम अपनी इस इकलौती सन्तान से बहुत प्यार करते थे. एक दिन अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांग ली. हजरत इब्राहिम को सबसे अधिक लगाव अपने बेटे से ही था. उन्होंने निश्चय किया कि वह अल्लाह के लिए अपने बेटे की कुर्बानी देंगे. जब हजरत इब्राहिम अपने पुत्र की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए. जब वह बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में एक शैतान मिला जिसने उन्हें रोकने की कोशिश की.
लेकिन हजरत इब्राहिम उस शैतान का सामना करते हुए आगे बढ़ गए. कुर्बानी का समय आया तो उन्होंने अपनी आंखों में पट्टी बांध ली. जिससे वह पुत्र की मृत्यु को अपनी आंखों से ना देख सके. तो जैसे ही हजरत इब्राहिम चाकू चलाने लगे और उन्होंने अल्लाह का नाम लिया, इसी बीच चाकू चलाने के दौरान एक फरिश्ते ने आकर चाकू के सामने इस्माइल के स्थान पर भेड़ की गर्दन लगा दिया. जिससे भेड़ का सर धड़ से अलग हो गया और इस तरह इस्माइल की जान बच गई. कहा जाता है कि अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए ऐसा किया था. इस परीक्षा में हजरत इब्राहिम सफल हो गए. तभी से कुर्बानी के लिए चौपाया जानवरों की कुर्बानी दी जाने लगी.
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