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होलिका दहन 2017: 12 मार्च को है होलिका दहन, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

इस पूजा को करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। पूजा करने के लिये निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए।

Updated on: 10 Mar 2017, 01:24 PM

नई दिल्ली:

रंगों का त्यौहार होली हमारे जीवन में काफी महत्व रखता है।फाल्गुन पूर्णिमा 12 मार्च के प्रदोष काल में होलिका दहन करने का विधान रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी माना जाता है। हिंदू धर्म में अनगिनत मान्यताएं, परंपराएं एवं रीतियां विद्यमान हैं। समय परिवर्तन के साथ-साथ लोगों के विचार व धारणाएं बदली हैं। उनके सोचने-समझने का तरीका बदला, परंतु संस्कृति का आधार अपनी जगह आज भी कायम है।

12 मार्च को भद्रा पूंछ- 04:21 से 05:33 और भद्रा मुख- 05:33 से 07:30 का समय रहेगा। होलिका दहन का सही समय शाम को 18:27 से 20:25 की शुभ बेला में किया जा सकता है। अत: शास्त्रोक्त मतानुसार 12 मार्च को ही होलिका दहन करना काफी बेहतर होगा।

होलिका में आहुति देने वाली सामग्रियां

होलिका दहन होने के बाद होलिका में आहुति देने वाली सामग्री में कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है। सप्त धान्य है, गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर।

होलिका दहन की पूजा विधि

होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती हैं। इस पूजा को करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। पूजा करने के लिये निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए।

एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है। इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है।

होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए। गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है। इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है।

कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है। फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है। रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है। गंध पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है। पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है।

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सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका में अग्नि प्रज्जवलित कर दी जाती है। इसमें अग्नि प्रज्जवलित होते ही डंडे को बाहर निकाल लिया जाता है। सार्वजनिक होली से अग्नि लाकर घर में बनाई गई होली में अग्नि प्रज्जवलित की जाती है। अंत में सभी पुरुष रोली का टीका लगाते है, तथा महिलाएं गीत गाती हैं। तथा बडों का आशिर्वाद लिया जाता हैं।

सेंक कर लाये गये धानों को खाने से निरोगी रहते हैं। इसका साथ ही हिंदू मान्यता के अनुसार, यह माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है। तथा इस राख का शरीर पर लेपन भी किया जाता है।

निम्न मंत्र का जाप करें

वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।
अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥

होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌

इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रुप में करना चाहिए

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