logo-image

दशहरा 2017: घर में रावण के पुतले की राख लाने से आती सुख-समृद्धि, जानें और अनकही बातें

पृथ्वी पर अकेले सर्वश्रेष्ठ विद्वान रावण में त्रिकाल दर्शन की क्षमता थी। रावण के ज्ञान और विद्वता की प्रशंसा श्रीराम ने भी की।

Updated on: 30 Sep 2017, 12:19 PM

नई दिल्ली:

आज देशभर में विजयदशमी मनाने को लेकर लोगों में खासा उत्सुकता है। इस दिन ​को असत्य पर सत्य की जीत के लिए मनाया जाता है। वहीं धर्मग्रंथों में अश्विन मास की शुक्लपक्ष की दशमी को दोे अलग-अलग घटनाओं के लिए भी मनाया जाता है। पहला महिषासुर के वध के लिए और दूसरा रावण पर राम की विजय के लिए।

कहा जाता है इस दिन श्रीराम ने दशानन का वध किया था, इस तरह अधर्म पर धर्म की जीत हुई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस कहानी के अलावा दशहरे से जुड़ी कुछ और भी बातें हैं, जिसे ज्यादा लोग नहीं जानते।

दशहरे से कई रीति-रिवाज भी जुड़े हैं, जिसे पिछले कई साल से लोग मानते आ रहे हैं। आज हम आपसे इस दशहरे पर कुछ ऐसी ही बातें साझा करने जा रहे हैं, जो शायद ही आपको पता हों।

और पढ़ें: दशहरा स्पेशल: रावण की मृत्यु का राज बताकर की थी राम की मदद

स्वर्णलंका की राख तिजोरियों में रखने से आता है धन

रावण के वध और लंका विजय के प्रमाण स्वरूप श्रीराम सेना लंका की राख अपने साथ ले आई थी, इसी के चलते रावण के पुतले की अस्थियों को घर ले जाने का चलन शुरू हुआ।

इसके अलावा मान्यता यह भी है कि धनपति कुबेर के द्वारा बनाई गई स्वर्णलंका की राख तिजोरियों में रखने से घर में स्वयं कुबेर का वास होता है और घर में सुख समृधि बनी रहती है।

यही कारण है कि आज भी रावण के पुतले के जलने के बाद उसके अस्थि-अवशेष को घर लाना शुभ माना जाता है और इससे नकारात्मक शक्तियां घर में प्रवेश नहीं करती हैं।

रावण के दहन से पहले उसके पूजन की परंपरा

कुंवार माह में शुक्लपक्ष की दशमी को तारों के उदयकाल में मृत्यु पर भी विजयफल दिलाने वाला काल माना जाता है। सनातन संस्कृति में दशहरा विजय और अत्यंत शुभता का प्रतीक है, बुराई पर अच्छाई और सत्य पर असत्य की विजय का पर्व, इसीलिए इस पर्व को विजयादशमी भी कहा गया है। दक्षिण भारत के द्रविड़ ब्राह्मणों में रावण के पुतले के दहन से पहले उसका पूजन करने की परंपरा है।

और पढ़ें: 31 दिसंबर तक बेचे जा सकते हैं जीएसटी लागू होने से पहले के सामान

द्रविड़ ब्राह्मणों में रावण पूजन की परंपरा

पृथ्वी पर अकेले सर्वश्रेष्ठ विद्वान रावण में त्रिकाल दर्शन की क्षमता थी। रावण के ज्ञान और विद्वता की प्रशंसा श्रीराम ने भी की। यही वजह है कि द्रविड़ ब्राह्मणों में रावण पूजन की परंपरा को उत्तम माना गया है, कई जगह पर रावण दहन के दिन उपवास रखने की भी प्रथा है।

दशहरे के पर्व पर मनुष्य अपनी दस प्रकार की बुराइयों को छोड़ सकता है। इनमें मत्सर, अहंकार, आलस्य, काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, हिंसा और चोरी जैसी शामिल हैं। अगर आपके पास इनमें से कोई भी बुराई है, तो इस दशहरे में उस बुराइ को रावण के पुतले के साथ ही भस्म कर दीजिए।

नीलकंठ दर्शन को भी माना जाता है शुभ

दशहरे के सर्वसिद्धि मुहूर्त में अपने पूरे वर्ष को खुशहाल बनाने के लिए लोग सदियों से उपाय करते रहे हैं। इन उपायों में शमी वृक्ष की पूजा, घर में शमी का पेड़ लगाकर नियमित दीपदान करना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि दशहरे के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्रा देते हुए शमी की पत्तियों को सोने का बना दिया था। तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है। दशहरे के दिन नीलकंठ दर्शन को भी शुभ माना जाता है।

और पढ़ें: भारत में लॉन्च हुआ आईफोन-8, जानिए क्या है कीमत और ऑफर्स


(आईएएनएस इनपुट)