Chaitra Navratri 2018: नवरात्रि के दूसरे दिन ऐसे करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
नवरात्रि के दूसरे दिन माता 'ब्रह्मचारिणी' का आवाहन ध्यान और पूजा की जाती है। ब्रह्म में लीन होकर तप करने के कारण इस महाशक्ति को ब्रह्मचारिणी की संज्ञा दी गई है।
नई दिल्ली:
साल में दो बार नौ दिनों तक मां दुर्गा के स्वरुपों की पूजा की जाती है, जिसे नवरात्रि कहा जाता है पहला चैत्र मास नवरात्रि, जबकि दूसरा शारदीय नवरात्रि। इस बार चैत्र मास नवरात्रि की शुरुआत 18 मार्च से हुई है।
नवरात्रि के दूसरे दिन माता 'ब्रह्मचारिणी' का आवाहन ध्यान और पूजा की जाती है। ब्रह्म में लीन होकर तप करने के कारण इस महाशक्ति को ब्रह्मचारिणी की संज्ञा दी गई है।
हिन्दू धर्म ग्रंथों में इन्हें मठ की देवी के रूप में दर्शाया गया है, सफेद साड़ी पहने हुए एक हाथ में रूद्राक्ष माला और एक में पवित्र कमंडल धारण करें देवी का यह रूप अत्यन्त धार्मिकता और भक्ति का है।
ब्रह्म शब्द का तात्पर्य (तपस्या)। ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तप का आचरण करने वाली ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप ज्योतिर्मय एवं महान है। मां के दाहिने हाथ में जपमाला एवं बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित रहता है।
यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोप तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं।
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देवी ब्रह्मचारिणी, माँ पार्वती के जीवन काल का वो समय था जब वे भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थी। तपस्या के प्रथम चरण में उन्होंने केवल फलों का सेवन किया फिर बेल पत्र और अंत में निराहार रहकर कई वर्षो तक तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया।
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनोरथ की प्राप्ति होती है। भगवती को नवरात्र के दूसरे दिन चीनी का भोग लगाना चाहिए और ब्राह्मण को दान में भी चीनी ही देनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है। इनकी उपासना करने से मनुष्य में तप, त्याग, सदाचार आदि की वृद्धि होती है।
देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है, और जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है।
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