राष्ट्रपति चुनाव 2017: भारत के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, जानिए इनके बारे में दिलचस्प बातें
प्रणब दा और तब केंद्र में मंत्री पी चिंदबरम के बीच मनमुटाव की खबरें लगातार मीडिया में सुर्खियां बटोर रहीं थीं। 2014 के आम चुनाव को लेकर हवा बनने लगी थी और कहा तो यह भी जाता है कि मनमोहन सिंह की आलोचना के बीच प्रणब प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर कांग्रेस की ओर से पेश किए जा सकते थे।
नई दिल्ली:
पांच साल पहले 2012 की गर्मियों में जब प्रणब मुखर्जी को तब की मनमोहन सरकार ने बतौर राष्ट्रपति उम्मीदवार नामित किया तो यह अटकले लगाई गई कि यह प्रणब दा को साइडलाइन करने की कोशिश तो नहीं।
यह वो दौर था जब प्रणब दा और तब केंद्र में मंत्री पी चिंदबरम के बीच मनमुटाव की खबरें लगातार मीडिया में सुर्खियां बटोर रहीं थीं। 2014 के आम चुनाव को लेकर हवा बनने लगी थी और कहा तो यह भी जाता है कि मनमोहन सिंह की आलोचना के बीच प्रणब प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर कांग्रेस की ओर से पेश किए जा सकते थे।
हालांकि, यह उसी तरह मुश्किल था जिस तरह 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ दिनों बाद राजीव गांधी ने प्रणब मुखर्जी से पूछ लिया था कि अब नया प्रधानमंत्री कौन होगा। कुछ रिपोर्ट और सूत्रों के मुताबिक तब प्रणब दा ने बड़ी साफगोई से कहा था, 'सबसे सीनियर मंत्री'।
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उस जवाब का ये असर हुआ कि राजीव प्रधानमंत्री बने और प्रणब मुखर्जी को उनके कैबिनेट में जगह नहीं मिली। फिर क्या, प्रणब मुखर्जी ने कांग्रस छोड़ने का फैसला कर लिया। पार्टी छोड़ने के बाद प्रणब ने अपनी खुद की 'राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस' नाम से पार्टी बनाई। हालांकि तीन साल बाद 1991 में पीवी नरसिंहा राव की सरकार बनने के बाद वह दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए।
प्रणब मुखर्जी का नाम 2004 में भी प्रधानमंत्री के रूप में उभरा था लेकिन सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को तरजीह दी।
आईए जानते हैं प्रणब मुखर्जी से जुडी कुछ बेहद रोचक बातें
1. प्रणब मुखर्जी को 2007 में ही राष्ट्रपति भवन भेजने की तैयारी चल रही थी। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने जरूरतों को देखते हुए अपने कदम वापस खींच लिए।
2. प्रणब मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के मिराटी में हुआ था। राजनीति विज्ञान, इतिहास और कानून की पढ़ाई के बाद प्रणब मुखर्जी ने शिक्षक, पत्रकार और वकील के तौर पर भी काम किया। उनकी शादी 13 जुलाई 1957 को सुब्रा मुखर्जी से हुई।
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3. प्रणब मुखर्जी को राजनीति में ले आना का श्रेय इंदिरा गांधी को जाता है। प्रणब मुखर्जी ने 1969 में राज्य सभा सांसद के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और फिर 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी राज्य सभा के लिए चुने गए। उन्होंने पहली बार 1980 में लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गए। 24 साल बाद वह जंगीपुर लोकसभा क्षेत्र से चुने गए। इसके बाद 2009 में भी उन्होंने इस क्षेत्र से चुनाव जीता।
4. भारत के सबसे युवा वित्त मंत्री के तौर पर प्रणब मुखर्जी ने 1982-83 में अपना पहला बजट पेश किया।
5. कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले प्रणब मुखर्जी ने 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। इंदिरा के बाद राजीव प्रधानमंत्री बने थे और उन्होंने अपनी कैबिनेट में प्रणब को जगह नहीं दी। बहरहाल, पार्टी छोड़ने के बाद प्रणब ने अपनी खुद की 'राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस' नाम से पार्टी बनाई। हालांकि तीन साल बाद 1991 में पीवी नरसिंहा राव की सरकार बनने के बाद वह दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए।
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6. केंद्र में रहते हुए प्रणब ने वित्त मंत्री से लेकर विदेश विभाग और रक्षा मंत्री तक का पदभार संभाला। 1991 से लेकर 15 मई 1996 तक प्रणब मुखर्जी ने योजना आयोग (अब नीति आयोग) के डिप्टी चेयरपर्सन भी रहे।
7. प्रणब मुखर्जी एकमात्र ऐसे वित्तमंत्री हैं जिन्होंने ग्लोब्लाइजेशन के पहले और उसके बाद भी इस पद को संभाला है।
8. प्रणब मुखर्जी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अभी तक अपनी जिंदगी में केवल दो फिल्में ही देखी हैं। साल 2011 में एक कार्यक्रम में सदाबहार अभिनेता देवानंद को सम्मानित किया था और फिर बाद में ममता बनर्जी से पूछा, 'एई, देवानंद की कौन-कौन सी फिल्में हैं?'
यहां तक कि विनोद खन्ना एक बार उनसे संसद भवन में मिले और अपना परिचय देते हुए कहा, 'सर मैं विनोद खन्ना हूं।' तब प्रणब मुखर्जी की प्रतिक्रिया बहुत सामान्य रही। इसके बाद विनोद खन्ना से दोबारा अपना परिचय कराया और कहा, 'सर मैं विनोद खन्ना हूं, एक सांसद।'
इस पर प्रणब की मुस्कुराते हुए प्रतिक्रिया थी...'ओह..आईए मेरे साथ, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं।'
9. प्रणब मुखर्जी ने अपने कार्यकाल में 30 क्षमादान याचिकाएं खारिज की। इसमें 2008 में हुए मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब और 2001 में संसद भवन पर हुए अटैक के दोषी अफजल गुरु का भी नाम शामिल है।
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