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मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास की ही नहीं, लोकसभा में सोनिया के 'विश्वास' की भी होगी परीक्षा

545 सदस्यों की लोकसभा में अभी 10 सीटें खाली हैं। इसलिए सरकार के लिए बहुमत का आंकड़ा 268 का हो जाता है।

Updated on: 19 Jul 2018, 01:11 PM

नई दिल्ली:

मोदी सरकार शुक्रवार को लोकसभा में चार साल के कार्यकाल के दौरान पहली बार अग्निपरीक्षा से गुजरेगी। हालांकि यह सिर्फ एनडीए सरकार की ही नहीं बल्कि 2019 के चुनावी रण को देखते हुए विपक्षी दलों की एकता की भी परीक्षा होगी।

मॉनसून सत्र के पहले ही दिन मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार को घेरने की कोशिश की और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसकी मंजूरी दे दी। महाजन की मंजूरी के बाद अब विपक्षी दलों को अपनी एकता का परिचय सदन में देना होगा। मोदी सरकार के कार्यकाल में पहली बार देखने को मिला है कि विपक्षी दल एकजुट होकर सरकार का विरोध कर रहे हैं।

विपक्ष का यह प्रस्ताव मानने को लेकर कयास ऐसे भी लगाए जा रहे हैं कि सरकार इस सत्र में ज्यादा से ज्यादा से ज्यादा बिल पास करवाना चाहती है, इस कारण उनकी मांग को मानते हुए अविश्वास प्रस्ताव को लेकर सदन में चर्चा को तैयार हो गई। अगर विपक्षी दल इस दौरान बिखरे हुए दिखाई देते हैं तो सरकार की कोशिश होगी आने वाले लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में इसका फायदा उठाया जा सके।

क्या है लोकसभा का गणित

अगर बात अंकगणित की करें तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बहुमत साबित करने को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त दिखाई दे रही है। 545 सदस्यों की लोकसभा में अभी 10 सीटें खाली हैं। इसलिए सरकार के लिए बहुमत का आंकड़ा 268 का हो जाता है।

बीजेपी के सांसदों की संख्या की बात करें तो लोकसभा अध्यक्ष को छोड़कर कुल 273 सांसद हैं। अगर इसमें सहयोगियों को मिला दिया जाए तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में 310 से ज्यादा सासंद हो जाते हैं।

वहीं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के पास मात्र 63 सांसद हैं। जबकि अन्य दल जो विपक्ष में तो हैं, लेकिन यूपीए के साथ नहीं जुड़े हुए हैं उन सभी का आंकड़ा 157 का है।

कयास इस बात को लेकर लगाया जा रहा है कि एआईएडीएमके के पास 37 और टीआरएस के 11 सांसद हैं, जोकि मतदान के समय सदन से अनुपस्थित रह सकते हैं। अगर ये दोनों दल वोटिंग के समय सदन में नहीं रहते हैं तो बहुमत का आंकड़ा 244 हो जाएगा, जिसे मोदी सरकार आसानी से क्रॉस कर लेगी।

नाराज सासंदों से क्या बीजेपी को फर्क पड़ेगा?

बीजेपी के कई सासंद अलग-अलग मुद्दों को लेकर पार्टी से नाराज हैं। अगर सभी को देखा जाए तो कुल छह सासंद हैं, जो अभी बागी तेवर अपनाए हुए हैं, जिनमें पटना साहिब संसदीय क्षेत्र से शत्रुघ्न सिन्हा, दरभंगा से सांसद कीर्ति आजाद, यूपी के बहराइच से सावित्री फुले, इटावा से अशोक दोहरे, रॉबर्ट्सगंज सीट से छोटेलाल और हरियाणा के कुरुकक्षेत्र लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर आए राजकुमार सैनी पार्टी से नाराज हैं।

इसके अलावा बीजेपी के सांसद भोला सिंह समेत दो सदस्य बीमार हैं, जबकि कीर्ति वर्धन सिंह भारत से बाहर हैं। नाराज सासंद सदन में बगावती तेवर न अपनाएं इसलिए बीजेपी ने तीन लाइन का व्हिप जारी कर दिया है। ऐसे में इस बात की संभावना बहुत ही कम दिखाई देती है कि ये लोग पार्टी लाइन अलग हटकर वोटिंग करेंगे।

हालांकि विपक्ष मान रहा है कि चुनावी साल में कई बीजेपी सांसद व्हिप जारी होने के बाद भी या तो गैरहाजिर या फिर सरकार के खिलाफ वोट डालकर बीजेपी को झटका दे सकते हैं। हालांकि राजनीतिक विषलेशक यह मान रहे हैं कि बागी सांसदों की नाराजगी के बाद भी मोदी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला और जरूरी आंकड़े हासिल कर लेगी।

क्या सरकार के खिलाफ सोनिया जुटा पाएंगी सांसद?

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के दावे ने उस समय खलबली मचा दी, जब उन्होंने सवालिया लहजे में पूछा कि किसने कहा कि उनके पास नंबर नहीं हैं? सोनिया के इस दावे को हवा में उड़ाने के लिए बीजेपी ने साल 1999 की घटना का जिक्र करना शुरू कर दिया है।

बता दें कि जब साल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, तब उनकी सरकार एक वोट से गिर गई थी। वाजपेयी की सरकार को सदन में बहुमत साबित करने के लिए 270 वोट चाहिए थे, लेकिन उन्हें 269 सदस्यों का ही समर्थन मिल पाया था।

सरकार गिरने के बाद सोनिया गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन के समक्ष सरकार बनाने का दावा पेश किया। लेकिन उस समय भी सोनिया जरूरी सांसदों का समर्थन नहीं जुटा पाई और यूपीए का आंकड़ा 233 पर ही अटक गया था। तब समाजवादी पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रयी अध्यक्ष मुलायम सिंह ने अपना दांव चलकर कांग्रेस और सोनिया को सत्ता से काफी दूर कर दिया था। 

जिसके बाद मंत्रिमंडल की अनुसंशा पर राष्ट्रपति ने लोकसभा भंग कर दी थी और देश को मध्यावधि चुनाव का सामना करना पड़ा था। चुनाव के बाद एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी मजबूत बनकर उभरे और प्रधानमंत्री बने।

विपक्षियों की परीक्षा में सरकार पहले ही हो चुकी है पास

विपक्षी दल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रहे हैं, लेकिन उन्हें यह बात पहले से ही पता है कि सरकार के पास जरूरी सासंद संख्या मौजूद हैं। यानि कि सरकार सदन में बहुमत साबित कर लेगी। अब सवाल उठता है कि आखिर विपक्ष ऐसा क्यों कर रहा है? राजनीतिक विषलेशक मानते हैं कि लोकसभा चुनाव नजदीक है। ऐसे में अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा करने के लिए सभी दल कोई न कोई ऐसा काम करना चाहती है, जिससे कि उसके कार्यकर्ताओं में जोश बरकरार रहे।

अगर बीजेपी विपक्षी दलों की एकता में सेंध लगाती है तो वह साल 2019 में होने वाले आम चुनाव से पहले देश की जनता को बता सकती है कि विपक्ष भानुमति का कुनबा है, जोकि कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा जोड़कर महल खड़ा करना चाहती है जो बहुत मुश्किल है।

यानि विपक्षी दल मोदी सरकार के सामने ऐसी परीक्षा ले रही है, जिसका परिणाम पहले से ही पता है। फिर भी ऊंट किस करवट बैठता है, किसी के लिए भी अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। बाकी तो शुक्रवार शाम तक साफ हो जाएगा कि परिणाम किसके पक्ष में हैं और कौन इसे कितना भुना पाता है।