जानें अपने अधिकार: महिलाओं के मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के खिलाफ हैं ये कानून
कई बार कार्यालय, बाहर और घरों में लोगों को न सिर्फ सेक्सुअल हैरसमेंट ही नहीं बल्कि मेंटली हैरेसमेंट (मानसिक उत्पीड़न) का सामना करना पड़ता है।
नई दिल्ली:
कई बार कार्यालय, बाहर और घरों में लोगों को न सिर्फ सेक्सुअल हैरसमेंट ही नहीं बल्कि मेंटली हैरेसमेंट (मानसिक उत्पीड़न ) का सामना करना पड़ता है। क्षमता से अधिक काम कराना, गाली-गलौज और मारपीट करना, शारीरिक संबंध बनाने के लिए किसी को मजबूर करना जैसा अप्रत्यक्ष शारीरिक शोषण भी मानसिक उत्पीड़न की श्रेणी में आता है।
ऐसे में किसी भी कंपनी की जिम्मेदारी है कि वह कार्यस्थल पर सेक्सुअल और मेंटल हैरेसमेंट को रोकने के लिए व्यवस्था करे और ऐसी किसी घटना की स्थिति में इसके लिए कार्रवाई और निपटान की प्रक्रिया उपलब्ध कराए।
क्या होता है यौन मानसिक उत्पीडन?
सिर्फ शारीरिक उत्पीड़न ही नहीं बल्कि मानसिक उत्पीड़न का भी व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। किसी भी तरह का यौन उत्पीड़न जब किसी के साथ बार-बार दोहराया जाता है तो उस घटना का सीधा असर व्यक्ति के दिमाग पर पड़ता है।
और पढ़ें: हर व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना सरकार की है ज़िम्मेदारी
किसी के साथ यौन संबंध बनाने के लिए जब किसी को मजबूर किया जाता है तो वह भी मानसिक उत्पीड़न की श्रेणी में आता है। अप्रत्यक्ष रूप से शारीरिक शोषण को भी मानसिक शोषण की श्रेणी में रखा जाता है।
सेक्सुअल और मेंटल हैरेसमेंट में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में की गई निम्नलिखित गतिविधियां शामिल हैं:
> शारीरिक संपर्क और लाभ उठाना।
> महिलाओं को जबरन परेशान करना।
> महिलाओं से अश्लील बातें करना।
> पोर्नोग्राफी दिखाना या दिखाने का प्रयास करना।
> किसी दूसरे प्रकार का ऐसा व्यवहार , जो प्रत्यक्ष या संकेतों के माध्यम से मानसिक तनाव देने वाला हो।
और पढ़ें: भारत में किसे है बच्चों को गोद लेने का हक़, क्या कहता है क़ानून
किसी भी सरकारी या निजी संस्थान में कार्यरत स्थायी या अस्थाई सभी महिला कर्मचारियों के लिए यह कानून लागू होता है। इस प्रकार का व्यवहार महिला कर्मचारी के रोजगार से लेकर स्वास्थ्य तक उसे प्रभावित करता है और सुरक्षा संबंधी समस्याएं पैदा करता है।
क्या करें संस्थान?
> किसी भी संस्थान को कार्यस्थल पर सेक्सुअल औ मेंटल हैरेसमेंट से संबंधित सभी नियमों को उचित तरीके से प्रदर्शित और प्रसारित करना चाहिए।
> संस्थान को एक आंतरिक शिकायत समिति गठित करनी होगी, जिसमें कम से कम एक महिला सदस्य होना आवश्यक है।
> समिति को जल्द से जल्द कार्यवाही पूरी करनी होगी और कारण सहित महिला कर्मचारी को इसका संज्ञान देना होगा।
> समिति की कार्यवाही से संतुष्ट नहीं होने पर महिला आगे शिकायत कर सकती है।
और पढ़ें: न्यूनतम मज़दूरी और सप्ताह में एक दिन अवकाश हर कर्मचारी का हक़
कानून और सरकारी प्रयास
> कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 इस बारे में उचित प्रावधान करता है।
> यह अधिनियम, कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न को व्यापक तरीके से परिभाषित करता है और यदि किसी संस्थान में सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायतें मिलने पर आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के गठन पर जोर देता है।
> यौन उत्पीड़न की शिकायत को घटना के तीन महीने के भीतर निपटाना चाहिए लेकिन विभिन्न परिस्थितियों में यह समयसीमा बढ़ाई भी जा सकती है।
> अधिनियम की धारा 26 (1) में कहा गया है कि इस अधिनियम के तहत कंपनी द्वारा अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करने की स्थिति में उसे 50,000 रुपये का जुर्माना भरना होगा।
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Akshaya Tritiya 2024: 10 मई को चरम पर होंगे सोने-चांदी के रेट, ये है बड़ी वजह
-
Abrahamic Religion: दुनिया का सबसे नया धर्म अब्राहमी, जानें इसकी विशेषताएं और विवाद
-
Peeli Sarso Ke Totke: पीली सरसों के ये 5 टोटके आपको बनाएंगे मालामाल, आर्थिक तंगी होगी दूर
-
Maa Lakshmi Mantra: ये हैं मां लक्ष्मी के 5 चमत्कारी मंत्र, जपते ही सिद्ध हो जाते हैं सारे कार्य