अटल बिहारी वाजपेयी को खोकर ग़मगीन है नवाबों का शहर लखनऊ
उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 में वाजपेयी प्रधानमंत्री के रूप में जब लखनऊ आये तो उन्होंने रॉयल फैमिली के प्रतिनिधिमण्डल से मुलाकात की थी।
नई दिल्ली:
देश में समावेशी राजनीति के पर्याय, ‘अजातशत्रु‘ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के देहांत पर उनका प्यारा लखनऊ बेहद ग़मगीन है। उनकी बहुत सी स्मृतियों को सहेजे, नवाबों के इस शहर के लिये ‘अटल‘ इरादों वाले वाजपेयी एक अमिट याद बन गये हैं। लखनऊ से 5 बार सांसद रहे वाजपेयी ने मौत से लम्बी जद्दोजहद के बाद कल (गुरुवार) शाम इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन से ग़मज़दा लखनवियों के पास अब सिर्फ उनकी यादें हैं, और एक ख्वाहिश भी कि वाजपेयी ने जिस तरह की सियासत को पोसा, काश! कातिब-ए-तक़दीर उसे हिन्दुस्तान की किस्मत में हमेशा के लिये उतार दे।
संगठन के महासचिव शिकोह आजाद ने उन्हें याद करते हुए कहा कि नज़ाक़त, नफ़ासत और भाईचारे का शहर लखनऊ यूं ही किसी को नहीं अपनाता। यहां के लोगों ने वाजपेयी को 5 बार चुनकर संसद में भेजा। निश्चित रूप से वाजपेयी में वो सारी खूबियां थीं, जो सच्चे लखनवी में होनी चाहिये। वाजपेयी का जाना खासकर ‘रॉयल फैमिली ऑफ़ अवध’ के लिये बेहद अफसोस की बात है।
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उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 में वाजपेयी प्रधानमंत्री के रूप में जब लखनऊ आये तो उन्होंने रॉयल फैमिली के प्रतिनिधिमण्डल से मुलाकात की थी। वह चाहते थे कि लखनऊ हवाई अड्डे का नाम अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह के नाम पर हो जाए।
रॉयल फैमिली ने जब उनसे इसकी गुजारिश की तो उन्होंने कहा था कि अगर राज्य सरकार ऐसा प्रस्ताव दे दे तो वह हवाई अड्डे का नाम बदल देंगे, मगर अफसोस, ऐसा नहीं हो सका। आजाद ने कहा कि नवाबीन और अल्पसंख्यकों के बीच वाजपेयी की छवि बेहद सेक्युलर थी। उनको लखनऊ से बेहद प्यार था।
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‘लखनऊविद्’ के नाम से मशहूर साहित्यकार योगेश प्रवीन ने वाजपेयी के निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए कहा ‘ हमने वाजपेयी को बहुत करीब से देखा है। मैंने उनके अनेक भाषण सुने हैं और उनकी हर तकरीर ‘मास्टर पीस‘ है। स्वतंत्र विचार और व्यवहार एक ही पंक्ति में ले आना बड़ी बात होती है। वाजपेयी इस फ़न के माहिर थे।’
उन्होंने कहा कि वाजपेयी के इरादे भी ‘अटल‘ होते थे। वह जो कहते थे, उसे जीते भी थे। इसी चीज ने उन्हें सबसे अलग लाकर खड़ा किया था। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वह ‘अजातशत्रु’ थे। दूसरी पार्टियों के लोग भी उन्हें बेहद सम्मान देते थे। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ उनके जीवन का आधार था। उनका जाना किसी अभिभावक के रुख्सत होने जैसा है।
उन्होंने कहा कि ‘वह बहुत याद आएंगे। उनका मनोबल पूरे देश के काम आये, यही मेरी प्रार्थना है।’
नवाब इब्राहीम अली खां, नवाब प्रोफेसर एमएम आबिद अली खां और नवाब फैयाज अली खां ने भी वाजपेयी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
ऑल इण्डिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास की नजर में वाजपेयी समावेशी राजनीति और धर्मनिरपेक्षता की प्रतिमूर्ति थे। उनके परिवार से उनका बहुत करीबी रिश्ता था।
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अब्बास ने बताया कि वाजपेयी की रवादारी का आलम यह था कि उनके बड़े भाई मौलाना एजाज अतहर की शादी में उन्होंने ना सिर्फ शिरकत की, बल्कि करीब डेढ़ घंटा वक्त भी दिया। उस वक्त वह प्रधानमंत्री थे। शादी समारोह का आयोजन लखनऊ स्थित शाहनजफ इमामबाड़े में किया गया था।
उन्होंने बताया कि वाजपेयी से जुड़ा एक अहम किस्सा उन्हें अक्सर याद आता है। दिल्ली में पार्क बनवाने के लिये दरगाह शाहे मरदा कर्बला की दीवार ढहा दी गयी थी।
यह मामला जब वाजपेयी के पास पहुंचा तो उन्होंने दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना को दो बार लखनऊ में हमारे घर बैठक करने के लिये भेजा था। उसके बाद मैंने वाजपेयी से बात की। बाद में उनकी कोशिशों से दरगाह की ढहायी गयी दीवार फिर से बनवायी गयी।
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