लोक सभा स्पीकर रहते पार्टी से निकाले गए थे सोमनाथ चटर्जी, जानिए उनके बारे में
लंबे समय तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के सदस्य रहे सोमनाथ चटर्जी यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में 2004-09 तक लोक सभा के अध्यक्ष रहे थे।
नई दिल्ली:
पूर्व लोक सभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी (89) का सोमवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। लंबे समय तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के सदस्य रहे सोमनाथ चटर्जी यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में 2004-09 तक लोक सभा के अध्यक्ष रहे थे। सोमनाथ चटर्जी का जन्म 25 जुलाई 1929 को असम के तेजपुर में हुआ था। सोमनाथ चटर्जी ने प्रेसिडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाई की थी।
1968 से 2008 तक सीपीएम के सदस्य रहे सोमनाथ चटर्जी पहली बार 1971 में लोक सभा सांसद बने थे। इसके बाद वह 10 बार लोक सभा के सदस्य बने। हालांकि 1984 में जाधवपुर लोक सभा सीट से ममता बनर्जी ने उन्हें मात दी थी और वह पहली बार ममता लोक सभा सांसद बनी थी।
2004 में बोलपुर लोक सभा से जीतकर आए सोमनाथ चटर्जी लोक सभा में प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किए गए थे फिर बाद में जून 2004 से वे आम सहमति से अध्यक्ष पद पर बने रहे।1996 में सोमनाथ चटर्जी को उत्कृष्ठ सांसद का पुरस्कार मिला था।
सीपीएम से निष्कासित
साल 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर यूपीए से सीपीएम द्वारा समर्थन वापस लेने के दौरान सोमनाथ चटर्जी ने स्पीकर पद से इस्तीफा देने से इंकार दिया था। जिसके बाद उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था।
सीपीएम चाहती थी कि वे स्पीकर पद से इस्तीफा दें और विश्वास प्रस्ताव में सरकार के खिलाफ वोट करें लेकिन सोमनाथ चटर्जी ने इससे इंकार कर दिया था और कहा था कि स्पीकर पार्टी से अलग होता है।
सीपीएम से निष्कासन के बाद उन्होंने अगस्त 2008 में घोषणा की थी कि वह अगले लोक सभा चुनाव (2009) में राजनीति से सन्यास ले लेंगे।
बंगाल में राष्ट्रपति शासन की बात
पश्चिम बंगाल में लोगों के मतदान के अधिकार और पंचायत चुनाव लड़ने से 'रोके' जाने पर 'गंभीर चिंता' व्यक्त करते हुए सोमनाथ चटर्जी ने कहा था कि राज्य में कोई लोकतंत्र नहीं रह गया है और राज्य उस स्थिति की तरफ बढ़ रहा है, जहां संविधान के अनुच्छेद 356 को लागू करने की मांग की जा सकती है।
और पढ़ें: जब ममता बनर्जी ने सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर सीट पर दी थी करारी शिकस्त
चटर्जी ने कहा था, 'यह अवश्विसनीय है। यहां तक कि लोगों को उनके न्यूनतम अधिकारों से भी जबरन वंचित किया जा रहा है। यहां लोकतंत्र नाममात्र भी नहीं बचा है। यह न केवल खेदजनक है, बल्कि गहरी चिंता का विषय है।'
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