logo-image

सेंटोसा द्वीप: काले इतिहास वाले इस बीच पर सुनहरे भविष्य की तलाश करेंगे ट्रंप और किम जोंग

सेंटोसा का अर्थ होता है 'शांति' लेकिन यह जगह जितनी खूबसूरत है इसका इतिहास उतना ही भयावह है। यह द्वीप भयानक तबाही का जीता-जागता दस्तावेज है।

Updated on: 09 Jun 2018, 08:32 AM

नई दिल्ली:

अगर आपसे पूछा जाए कि दुनिया के दो सबसे शक्तिशाली नेता कौन है तो बेझिझक आपका उत्तर होगा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के तानाशाह शासक किम जोंग उन।

दोनों का मिजाज गरम है। कई बार एक-दूसरे को धमकी दे चुके किम और ट्रंप की मुलाकात की खबरें जब आई तो दुनिया ने चैन की सांस ली और इस मुलाकात के लिए लोग बेसब्री से इंतजार करने लगे।

दोनों के बीच मुलाकात की तारीख 12 जून तय की गई और जगह मुकर्रर हुई सेंटोसा द्वीप। दो खास लोग अगर मिल रहे हों तो जगह का खास होना भी लाजमी है। सेंटोसा द्वीप की खूबसूरती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां हर साल लगभग 2 करोड़ सैलानी आते हैं।

यूनिवर्सल स्टूडियो, एक्वेरियम, वंडरलैंड पोर्ट, टाइगर स्काई टॉवर और बीच की वजह से पर्यटकों के लिए यह बेहद खास और पसंदीदा जगह है।

सेंटोसा का अर्थ होता है 'शांति' लेकिन यह जगह जितनी खूबसूरत है इसका इतिहास उतना ही भयावह है। यह द्वीप भयानक तबाही का जीता-जागता दस्तावेज है।

इस द्वीप का इतिहास लगभग वैसा ही है जैसा भारत के अंडमान द्वीप के काला पानी की कहानी है। यहां भी कई कैदियों की कराह, दर्द और खून के निशां है।

सिंगापुर के कुल 63 द्वीपों में से एक सेंटोसा द्वीप को ‘मौत का द्वीप’भी कहा जाता था। बात लगभग 1830 की है जब मलय ग्रामीण इसे ‘पुलाऊ ब्लैकंग माती’ कहते थे जिसका अर्थ मलय भाषा में 'मौत का द्वीप' होता है।

और पढ़ें:  बढ़ रही है BCCI और COA की बीच दूरियां, अमिताभ चौधरी ने उठाए सवाल

अब सवाल है कि इसे मौत का द्वीप क्यों कहते हैं तो इसका जवाब भी जान लीजिए। इस द्वीप को मौत का द्वीप कहने के पीछे कई कहानियां है। कुछ लोगों का कहना है कि 1840 के अंत में इस द्वीप पर बीमारी के फैलने के कारण बहुत से लोगों की मौत हो गई। जिसके बाद इस जगह को मनहूस माना जाने लगा।

इसके अलावा सेंटोसा द्वीप पर समुद्री लुटेरों का भी आतंक रहा है। इस द्वीप से समुद्री डाकुओं के कब्जे से लेकर रक्तपात और युद्ध का एक काला इतिहास भी जुड़ा है।

इतना ही नहीं द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के खूनी खेल का काला इतिहास भी इसी द्वीप से जुड़ा है। दरअसल 1942 में सेंटोसा द्वीप पर जापानियों का कब्ज़ा हो गया।

जापान ने अपने विरोधियों के खिलाफ एक अभियान चलाया जिसमें कई चीनी लोगों को सामने खड़ा करके गोलियों से भून दिया जाता था। सभी चीनी सैनिकों की लाशें समुद्र में फेंक दी गई। जहां बड़ी बेरहमी से चीनी सैनिकों को मारा गया था वहां आज ‘कैपेला होटल’ बना हुआ है। इसी होटल में किम और ट्रंप की मुलाकात होगी।

यहां जापान ने करीब 400 कैदियों को कैद कर के रखा था।

कहते हैं वक्त एक सा नहीं रहता और सिंगापुर का भी वक्त बदला। जापान ने इस द्वीप का नाम 1942 में 'सोयोनन' (दक्षिण की रोशनी) रखा था जिसे 1970 में सिंगापुर सरकार ने बदलकर ‘सेंटोसा द्वीप’ कर दिया।

धीरे-धीरे इसे एक पर्यटक स्थल में बदला गया और इसका नतीजा रहा कि आज दुनियाभर से करोड़ों की संख्या में पर्यटक यहां मनोरंजन करने आते हैं।

सेंटोसा द्वीप का इतिहास जरूर भयावह रहा है लेकिन इस द्वीप पर दो सबसे ताकतवर लोगों के मुलाकात से इस द्वीप के इतिहास के बदलने की पूरी उम्मीद है।

और पढ़ें: SCO समिट में हिस्सा लेने पीएम मोदी चीन के किंगडाओ के लिए रवाना