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तीन तलाक इस्लाम का मौलिक हिस्सा नहीं, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के पांचवे दिन केंद्र सरकार ने दलील दी कि तीन तलाक इस्लाम का मौलिक हिस्सा नहीं है।

Updated on: 17 May 2017, 06:37 PM

नई दिल्ली:

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के पांचवे दिन केंद्र सरकार ने दलील दी कि तीन तलाक इस्लाम का मौलिक हिस्सा नहीं है। केंद्र ने कहा कि तीन तलाक मुस्लिम समुदाय में पुरुष और महिला के बीच का मामला है। केंद्र ने यह भी कहा कि इस समाज में पुरुष महिलाओं की तुलना में पढ़ा लिखा है।

सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करने से इस्लाम धर्म पर कोई असर नहीं होगा।

सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि एक समय सती प्रथा, देवदासी जैसी कुप्रथा हिंदू धर्म में थीं। रोहतगी के इस दलील पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि कोर्ट ने इनमें से किसे खत्म किया?

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केंद्र की तरफ से दलील पेश करते हुए अटॉर्नी जनरल रोहतगी कहा कि तीन तलाक को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। यह एक समुदाय के अंदर का मामला है और महिलाओं के अधिकार से संबंधित है।

सुनवाई के दौरान रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि अगर सऊदी अरब, ईरान, इराक जैसे देशों में ट्रिपल तलाक खत्म हो सकता है तो भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है।

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सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सीनियर एडवोकेट वी गिरी की दलीलों का जवाब दे रहे थे। जब वी गिरी ने कुरान की आयतों का हवाला देकर कहा कि कुरान शरीफ में तला ए बिद्दत का जिक्र हैं और सीजेआई को कुरान शरीफ की कॉपी दी।

जस्टिस जेएस खेहर ने कुरान को हाथ में लेकर इसकी आयतो को पढ़ा और कहा कि किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले आपको इससे संबंधित सभी पैराग्राफ को पढ़ना जरुरी है।

यहां तक कि कपिल सिब्बल ने भी महज कुछ बातों को कुछ उदाहरण दिया है। अगर आप यह कहते हैं कि हर बार तलाक बोले जाने के बाद इद्दत का वक्त जरूरी है और तीन बार इस तरीके से बोले जाने के बाद ही तलाक को वापस नहीं लिया जा सकता तो फिर तलाक ए बिद्दत की जगह कहां है।

जस्टिस नरीमन ने भी साथी जजों की टिप्पणी का समर्थन करते हुए कहा की तलाक ऐ बिद्दत का कुरान में कहीं कोई जिक्र नहीं है इस पर इस पर सीनियर एडवोकेट वी गिरी ने कहा कि मैं अपनी गलती को मानता हूं और यह सिर्फ मेरा निष्कर्ष भर था।

चीफ जस्टिस ने कहा कि हर जुमे की नमाज के वक्त आप कहते हैं कि बिद्दत बुरी परम्परा हैं और किसी भी रूप में इस पर अमल नही होना चाहिए और अब आप कह रहे हैं कि ये 1400 साल पुरानी परंपरा है।

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