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पढ़िये, तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में अब तक क्या दी गई दलीलें

पीठ में न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित तथा न्यायमूर्ति एस.अब्दुल नजीर शामिल हैं।

Updated on: 19 May 2017, 10:12 AM

नई दिल्ली:

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने फैसला किया है कि वह काजियों के लिए एक दिशा-निर्देश जारी करेगा, जिसमें वे मुस्लिम महिलाओं द्वारा निकाह के लिए अपनी मंजूरी प्रदान करने से पहले उन्हें तीन तलाक प्रथा से बाहर निकलने का विकल्प देंगे।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ से कहा गया कि AIMPLB अपने फैसले के समर्थन में न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा दायर करेगा।

पीठ में न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित तथा न्यायमूर्ति एस.अब्दुल नजीर शामिल हैं।

सुनवाई के 5वें दिन सुप्रीम कोर्ट ने AIMPLB के वकील कपिल सिब्बल को सुझाव दिया है कि मुस्लिम महिलाओं को निकाहनामे के वक्त ही तीन तलाक के लिए इनकार करने का विकल्प दिया जा सकता है? आप ये प्रस्ताव पास क्यों नहीं करते कि निकाह के वक्त ही काजी महिला को ये विकल्प दे कि वह निकाहनामे में तीन तलाक को मना करने को कह सकती है।

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AIMPLB की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा, 'ये अच्छा सुझाव है। उनकी बोर्ड के सदस्यों के साथ एक बैठक हुई है, जिसमें उन्होंने देश भर के काजियों को एक दिशा-निर्देश जारी करने का फैसला लिया। AIMPLB इस मामले में काजियों को अडवाजरी जारी करने को तैयार है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को इस रीति की वैधता जानने में नहीं पड़ना चाहिए।'

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ अपना पक्ष मजबूत करते हुए केंद्र ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि तीन तलाक को अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि यह सदियों से अभ्यास में रहा है।

केंद्र के शीर्ष कानून अधिकारी मुकुल रोहतगी ने कहा कि तलाक निश्चित रूप से इस्लाम का एक जरूरी हिस्सा नहीं था और अदालत में इसे जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी, सिर्फ इसलिए कि वह 1,400 साल पुरानी परंपरा है।

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तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में AG मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह मामला बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का नहीं है। यह टकराव मुस्लिम समुदाय में ही है। जिसपर CJI खेहर ने कहा, लेकिन सिब्बल कह रहे हैं कोई टकराव ही नहीं है।

AG ने कहा कि यह टकराव समुदाय में ही महिलाओं और पुरुषों के बीच है। इसकी वजह यह है कि पुरुष कमाने वाले हैं और ज्यादा शिक्षित हैं। CJI ने कहा कि एक बार फिर आपसे पूछ रहे हैं कि तीन तलाक रद्द कर दिए जाएं तो क्या होगा ? AG ने कहा कि अगर कोर्ट ऐेसा फैसला देता है तो सरकार कानून लाने को तैयार है।

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CJI ने कहा यह काम आप पहले क्यों नहीं करते? हमारे आदेश का इंतजार क्यों ? AG ने कहा, यहां सवाल सरकार का नहीं बल्कि ये है कि कोर्ट इस मामले में क्या करता है?

AG ने कहा हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड खुद कह रहा है कि तीन तलाक पाप है, अवांछनीय है तो ऐसे में साफ है कि तीन तलाक इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। जो अनिवार्य नहीं है उसे संविधान द्वारा प्रोटेक्शन कैसे दिया जा सकता है?

जस्टिस कूरियन ने पूछा कपिल सिब्बल कह रहे हैं कि यह पर्सनल लॉ का मामला है इसे संवैधानिक अधिकारों की कसौटी पर टेस्ट नहीं जा सकता?

जिसपर AG ने कहा तीन तलाक का मामला भी संवैधानिक अधिकार के तहत ही देखा जाना चाहिए। पर्सनल लॉ भी संविधान की कसौटी पर टेस्ट होते हैं, क्योंकि ये धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इस मामले में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हवाला नहीं दिया जा सकता।

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यहां परंपराओं की बात है तो सती प्रथा, छूआछूत और विधवाओं के पुनर्विवाह जैसी परंपराएं खत्म की गईं। पंरपरा के नाम पर क्या कोई भी समुदाय यह कह सकता है कि नरबलि हमारी परंपरा है?

मंगलवार को AIMPLB बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा था कि तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है और यह स्वीकार की गई है। यह मामला आस्था से जुडा है, जो 1400 साल से चल रहा है तो ये गैर-इस्लामिक कैसे है।

सिब्बल ने कहा कि किसी समुदाय विशेष के रीति-रिवाजों की वैधता की जांच बेहद नाजुक मामला है और कोर्ट को इसमें नहीं पड़ना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से पूछा, 'एक रीति जो धर्मशास्त्र के हिसाब से पाप है, वह आखिर कैसे समुदाय के रीति-रिवाजों का हिस्सा हो सकता है?'

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मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए। अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुडा है। पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है। क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है।

जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से पूछा पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरूरत? जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो ये कहां से आया?

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इस पर कपिल सिब्बल ने कहा, 'कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो। अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई। ये आस्था का मामला है, कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता।

जस्टिस कूरियन ने कहा, 'कम से कम हम ये तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं?'

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इस मुद्दे पर समुदाय कुछ क्यों नहीं कर रहा।

इस पर कपिल सिब्बल ने कहा, 'हम ये नहीं कह रहे कि तीन तलाक सही है। ये तलाक का सबसे अवांछनीय तरीका है। हम सभी को समझा रहे हैं कि इसका इस्तेमाल ना करें। हम ये भी कह रहे हैं कि तीन तलाक परमानेंट नहीं है, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि कोई दूसरा हमें बताए कि तीन तलाक खराब है। समुदाय के लोग ही इससे बाहर निकलेंगे।'

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AIMPLB ने हालांकि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि तीन तलाक एक 'गुनाह और आपत्तिजनक' प्रथा है, फिर भी इसे जायज ठहराया गया है और इसके दुरुपयोग के खिलाफ समुदाय को जागरूक करने का प्रयास जारी है।

जिसके जवाब में तीन तलाक मामले की मुख्य याचिका कर्ता शायरा बानो के वकील अमित सिंह चढ्डा ने दलील रखी और कहा, 'AIMPLB कहता है कि तीन तलाक आस्था और धार्मिक विश्वास का मामला है। 1400 साल पुरानी परम्परा है। इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। सरकार कह रही है कि ट्रिपल तलाक बैड इन लॉ है, असमानता पर आधारित है। असंवैधानिक है। लेकिन इसके लिये कानून बनाने को राजी नहीं है।'

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अमित सिंह ने कहा, 'हमारा मानना है कि इस्लाम महिला और पुरुष में भेद नहीं करता। जब आप (AIMPLB) कहते हैं कि ये धार्मिक आस्था और विश्वास का मामला है। तो मेरा विश्वास है कि ट्रिपल तलाक एक पाप है और ये पाप मेरे और मेरे खुदा के बीच है।'

तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले एक याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट में पेश हुईं वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि कोर्ट मामले पर पिछले 67 वर्षो के संदर्भ में गौर कर रहा है, जब मौलिक अधिकार अस्तित्व में आया था न कि 1,400 साल पहले जब इस्लाम अस्तित्व में आया था।

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