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खरबों की संपत्ति के मालिक भी ले रहे पूर्व सांसद पेंशन

देश में 30 से 35 वर्षो तक की शासकीय सेवा देने वालों की पेंशन सरकार ने बंद कर दी है, जबकि खरबों की संपत्ति के मालिक पूर्व सांसद के तौर पर मिलने वाली 20 हजार रुपये मासिक की पेंशन ले रहे हैं।

Updated on: 17 Apr 2018, 11:36 PM

भोपाल:

देश में 30 से 35 वर्षो तक की शासकीय सेवा देने वालों की पेंशन सरकार ने बंद कर दी है, जबकि खरबों की संपत्ति के मालिक पूर्व सांसद के तौर पर मिलने वाली 20 हजार रुपये मासिक की पेंशन ले रहे हैं।

देश में 'राजनीति' सामाजिक सम्मान पाने का एक अच्छा अस्त्र बन चुका है। एक बार विधायक, सांसद का चुनाव जीतिए या फिर राज्यसभा में किसी दल या सरकार की ओर से मनोनीत होकर संसद में पहुंच जाइए। फिर क्या, आपकी जिंदगी ही बदल जाती है। पहले तो जनता के सेवक के नाते खूब पगार पाइए और कार्यकाल खत्म होने के बाद पूरी जिंदगी पेंशन का लाभ हासिल करिए।

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एक बार सांसद बनने पर पूरी जिंदगी कम से कम हर माह 20 हजार रुपये की पेंशन का प्रावधान है, सूचना के अधिकार के तहत पेंशन पाने वालों में जिनके नाम सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। इनकी दौलत का जिक्र फोब्स मैगजीन भी कर चुका है।

मध्य प्रदेश के नीमच जिले के निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत पेंशन पाने वाले पूर्व सांसदों के संदर्भ में जो जानकारी लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय से मिली है, वह चौंकाती है। पेंशन के लिए आवेदन करने वालों में उद्योगपति राहुल बजाज, नवीन जिंदल, अभिनेता धर्मेद्र जैसे कई ऐसे लोगों के नाम हैं, जिनकी गिनती नामीगिरामी लोगों में होती है।

पिछले दिनों राज्यसभा सदस्य रहते हुए क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने 72 माह का वेतन लेने के बाद प्रधानमंत्री कोष में जमाकर खूब वाहवाही लूटी थी, जबकि लता मंगेश्कर ने वेतन का चेक तक स्वीकार नहीं किया था और पेंशन का आवेदन भी नहीं दिया, जिसकी किसी को खबर तक नहीं थी। वहीं अनिल अंबानी ने राज्यसभा सदस्य रहते वेतन और भत्ते तो लिए, मगर पेंशन के लिए उन्होंने आवेदन नहीं किया है।

सामाजिक कार्यकर्ता गौड़ का कहना है कि पेंशन लेना पूर्व सांसदों का अधिकार है, मगर उसके बावजूद यह हैरान करने वाली बात है कि संपति के शिखर पर बैठे हुए व्यक्ति भी तलहटी का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं और अकूत दौलत के होते हुए भी नाम मात्र की पेंशन के लिए आवेदन कर रहे हैं।

गौड़ सवाल उठाते हैं कि आखिर देश में पेंशन किसको मिलनी चाहिए पीड़ित को, जरूरतमंद को या सामथ्र्यवान को? और वह भी तब, जब सरकार वर्ष 2004 से ही सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए परंपरागत पेंशन के प्रावधान को ही खत्म कर चुकी है!

यह बताना लाजिमी होगा कि बीते रोज ही सर्वोच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया है, जो पूर्व सांसदों की पेंशन को लेकर दायर की गई थी।

देश में एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां आम लोगों से गैस की सब्सिडी छोड़ने की अपील कर रहे हैं और कई लाख लोगों ने उनका साथ देते हुए सब्सिडी छोड़ी भी है, इसके अलावा 10 लाख की वार्षिक आय वालों की सब्सिडी बंद करने पर जोर दिया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर सरकार पूर्व सांसदों की पेंशन बढ़ोतरी कर रही है। सवाल उठ रहा है कि क्या प्रधानमंत्री अब उन पूर्व सांसदों से भी पेंशन छोड़ने की अपील करेंगे जो सामथ्र्यवान हैं?

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