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सुप्रीम कोर्ट का फैसला- नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध 'रेप' के दायरे में, जानें क्या कहा कोर्ट ने आज

सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला देते हुए नाबालिग पत्नी के साथ पति का संबंध भी रेप के दायरे में माना है।

Updated on: 12 Oct 2017, 12:10 AM

highlights

  • सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग पत्नी से यौन संबंध को रेप ही माना है। 
  • अदालत ने IPS 375 में दिए अपवाद को असंवैधानिक करार कर दिया है।
  • कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से कहा कि बाल विवाह पर रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाए। 

 

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में साफ किया है कि नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध अब रेप के दायरे में आएंगे। कोर्ट ने आईपीसी  375 में दिए गए अपवाद को असंवैधानिक करार दिया है।

कोर्ट ने कहा कि ये अपवाद  संविधान  के अनुच्छेद 14, 15, 21 के तहत दिए गये समानता और जीने के  अधिकार का उल्लंघन है और पॉक्सो कानून के अनुसार नहीं है।

दरअसल रेप की परिभाषा वाले आईपीसी 375 में 15 से ऊपर की पत्नी के साथ पति के संबंध को रेप की परिभाषा से बाहर रखा गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने आज इस अपवाद को हटा दिया है यानि अब 15 से 18 साल की पत्नी के साथ बनाये गए यौन संबंध रेप के दायरे में आएंगे, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि वो वैवाहिक सम्बन्धों को रेप के दायरे में लाने वाले (मेरिटल रेप )जैसे बड़े मुद्दे को लेकर इस फैसले में कोई टिप्पणी नहीं कर रहा।

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यह सवाल फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के सामने नहीं है। कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से कहा कि  बाल विवाह पर रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाए। 

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की क्या मांग थी

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक सम्बन्ध को रेप ना मानने वाली ,आईपीसी की धारा 375(2) को रद्द करने की मांग की गई थी। 

यह याचिका इंडिपेंडेंट थॉट नाम की संस्था ने दायर की थी। याचिका में कहा गया था 15 साल  से 18 साल नाबालिग लडकी की शिकायत पर  पति पर रेप केस का केस दर्ज होनाा चाहिये।

दलील दी गई है कि जब भारतीय कानून के मुताबिक18 से कम की लड़की के साथ उसकी मर्जी से बने संबंध को भी बलात्कार माना जाता है, तो कानून ये मानकर चलता है 18 साल से कम उम्र की लड़की शारीरिक और मानसिक तौर पर संबंध बनाने की सहमति देने के लिए परिपक्व नहीं है, तब कैसे 15 से 18 साल की शादीशुदा लडकी के साथ उसके पति के बनाये फिजिकल रिलेशन को रेप के दायरे से बाहर रखा जा सकता है।

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याचिका कर्ता के मुताबिक बच्चों के यौन शोषण के लिए पॉक्सो जैसा कानून बना है लेकिन रेप की परिभाषा में दिए गए इस अपवाद के चलते नाबालिग पत्नी के साथ सेक्सुअल रिलेशन के ऐसे मामलों को भी पॉक्सो के तहत दर्ज नहीं किया जाता। 

केंद्र सरकार का इस मसले को लेकर अदालत में क्या कहना था

केंद्र सरकार का कहना था कि भारत की सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए ही ये  कानून बनाया गया है. बाल विवाह अब काफी कम हो गए हैं।

फिर भी समाज के कुछ हिस्सों में बाल विवाह का चलन है. इसलिए, संसद ने काफी सोच विचार कर 15 से 18 साल की पत्नी के साथ यौन संबंध को अपराध के दायरे से बाहर रखा है। 

सरकार का ये भी कहना था कि इस कानून में अगर कोई संशोधन कर सकता है, तो ये सिर्फ संसद ही कर सकती है, .सुप्रीम कोर्ट को  इसमे दख़ल देने से बचना चाहिये यानि सरकार ने एक तरह से आईपीसी की धारा 375 में दिए गए इस अपवाद को बनाये रखने की पैरवी की थी

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का  क्या रुख रहा

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और याचिकाकर्ता से सवाल पूछे थे..कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि जब संसद ने खुद सेक्सुअल रिलेशन की सहमति से लेकर,  तमाम दूसरी चीजों के लिए उम्रसीमा 18 साल रखी है, तो फिर ये अपवाद ( 375 में सेक्शन 2 के तहत) क्यों रखा गया है, जो 15 से 18 साल की लड़की के साथ सेक्सुअल रिलेशन को रेप की कैटेगरी में नही रखता।

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कोर्ट ने यह भी कहा कि आजादी के सत्तर साल बाद भी बाल विवाह जैसी परम्परा प्रचलन में है और ये कड़वी सच्चाई है कि हम इसे खत्म नही कर पाए है।

इसी तरह सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने  याचिकाकर्ता से कई अहम सवाल पूछे। कोर्ट ने सवाल किया था कि अगर 18 साल से कम उम्र की लड़की अपनी शादी से खुश है,और ऐसी सूरत में कोई पड़ोसी नाबालिग के साथ पति के रहने की शिकायत पुलिस में कर दे तो क्या होगा? क्या ऐसे मामलों में किसी को भी शिकायत करने की छूट दी जा सकती हूं।

इस पर याचिकाकर्ता के वकील गौरव अग्रवाल ने कहा था कि उनका मकसद पारिवारिक ढांचे को नुकसान पहुचाना नही है, लेकिन कम से कम लड़की को शिकायत का मौका मिलना चाहिये।

इसलिए बेहतर होगा कि कोर्ट आईपीसी के सेक्शन 375 की नए सिरे से व्याख्या कर दे। साथ ही यह भी साफ कर दे कि पॉक्सो के तहत भी मामला दर्ज हो सकता है। 

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