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दिल्ली के सीएम केजरीवाल को राहत, SC ने कहा चुनी हुई सरकार सर्वोच्च, कैबिनेट की सलाह से काम करें LG

अगस्त 2016 में दिये गए फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है, इसलिए, यहां राष्ट्रपति के प्रतिनिधि यानी उपराज्यपाल की मंजूरी से ही फैसले लिए जा सकते हैं।

Updated on: 04 Jul 2018, 12:57 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली के प्रशासनिक बॉस को लेकर सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण फैसला पढ़ा जा रहा है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली इस बेंच में जस्टिस ए के सिकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल है।

अगस्त 2016 में दिये गए फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है, इसलिए, यहां राष्ट्रपति के प्रतिनिधि यानी उपराज्यपाल की मंजूरी से ही फैसले लिए जा सकते हैं।

जिसके बाद दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। दिल्ली सरकार का कहना है कि हाई कोर्ट ने संविधान की गलत व्याख्या की। इस व्याख्या से दिल्ली सरकार पूरी तरह अधिकारहीन हो गयी है।

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आप नेता राघव चड्ढा ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था सरकार के अधीन नहीं आएंगे, इन तीन विषयों को छोड़ कर चाहे वो बाबुओं के ट्रांसफर का मसला या अन्य शक्तियां हों, वो सारी शक्तियां अब दिल्ली सरकार के अधीन आ जाएगी।'

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने काफी साफ कहा है। संविधान के अनुच्छेद 239 एए के अनुसार, दिल्ली एक राज्य नहीं है, यह एक केंद्रशासित प्रदेश है। अगर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल साथ काम नहीं करते हैं तो  दिल्ली को समस्या होगी। कांग्रेस ने 15 सालों तक दिल्ली में शासन किया लेकिन तब कोई टकराव नहीं था।'

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। उसके लिए मैं दिल्ली की जनता के तरफ से सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद करता हूं।'

# दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा, 'दिल्ली की जनता के लिए एक बड़ी जीत... लोकतंत्र के लिए एक बड़ी जीत...'

# सुप्रीम कोर्ट ने कहा, उपराज्यपाल सभी मामलों को राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकता है।

# जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एलजी को यह बात समझनी चाहिए कि मंत्रिमंडल जनता के प्रति जवाबदेह है और एलजी सरकार के हर काम में बाधा नहीं डाल सकते।

# चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता।

# जस्टिस चंद्रचूड़ अपना फैसला अलग पढ़ेंगे। हालांकि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा जो भी फैसला पढ़ रहे हैं उसमें जस्टिस ए के सिकरी, और जस्टिस ए एम खानविलकर की भी सहमति है। यानि सुप्रीम कोर्ट में तीन दो के बहुमत से यही फ़ैसला अंतिम माना जाएगा। 

# एलजी अकेले ही फैसला नहीं ले सकते, कुछ मामलों में केंद्र के पास जा सकती है।- सीजेआई

# सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जनमत के साथ अगर सरकार का गठन हुआ है, तो उसका अपना महत्व है। तीन जजों ने कहा कि एलजी को दिल्ली सरकार की सलाह से काम करना चाहिए।

# चुनी हुई सरकार के फ़ैसले में एलजी बाधा नहीं डाल सकते।- सीजेआई

# संसद का क़ानून ही सर्वोच्च है, दिल्ली में अराजकता के लिए कोई जगह नहीं है।- सीजेआई

# एलजी कैबिनेट की सलाह से काम करें और उसके काम में बाधा न डालें।- सीजेआई

# दिल्ली के प्रशासक उपराज्यपाल हैं। अगर किसी मुद्दे को लेकर सीएम और एलजी के बीच सहमति नहीं है तो उसे सीधे राष्ट्रपति के पास भेजा जाए।- सीजेआई

# संघीय ढांचे में राज्यों को स्वतंत्रता, शक्ति एक जगह केंद्रित नहीं हो सकता।- सीजेआई

# तीन अलग-अलग फैसले हैं, एक सीजेआई (मुख्य न्यायाधीश) दीपक मिश्रा का दूसरा डी वाई चंद्रचूड़ और तीसरा जस्टिस अशोक भूषण का। 

# पांच जजों की संविधान पीठ का फैसला पढ़ा जा रहा है।

# चीफ जस्टिस ने फैसला पढ़ना शुरू किया।

क्या है दिल्ली सरकार की दलील

दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकीलों की टीम ने जिरह की इसमें पी चिंदबरम, इंदिरा जयसिंह, गोपाल सुब्रमण्यम ,राजीव धवन जैसे बड़े नाम शामिल थे। दिल्ली सरकार ने दलील दी कि दिल्ली का दर्जा दूसरे केंद्रशासित क्षेत्रों से अलग है। संविधान के अनुच्छेद 239 AA के तहत दिल्ली में विधानसभा का प्रावधान किया है। विधानसभा को फैसला लेने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

गोपाल सुब्रमण्यम ने जिरह करते हुए कहा कि एलजी के जरिए केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार की तमाम कार्यकारी शक्तियों को पंगु बना दिया है। सरकार के हर फैसले में एलजी रोड़ा अटका रहे हैं। एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार (दिल्ली सरकार) जनादेश के मुताबिक काम कर सके, इसके लिए जरूरी है कि आर्टिकल 239AA की समग्र व्याख्या हो। एलजी के रवैये के चलते राजधानी में कोई भी अधिकारी मुख्यमंत्री और मंत्रियों के निर्देश का पालन नहीं कर रहा है

केंद्र सरकार की दलील

केंद्र की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने जिरह की।उन्होंने कहा कि संविधान में ये स्पष्ट है कि दिल्ली एक केंद्र शासित क्षेत्र है। इसे राज्य की तरह नहीं देखा जा सकता।

दिल्ली को अलग से कार्यपालिका की शक्ति नहीं दी गई है। राष्ट्रपति के प्रतिनिधि उपराज्यपाल की भूमिका यहां सबसे अहम है। ऐसा सोचना गलत है कि दिल्ली में केंद्र के पास सिर्फ जिम्मेदारियां हैं, अधिकार नहीं। दिल्ली और पुदुच्चेरी में विधानसभा है, जो राष्ट्रपति के चुनाव में हिस्सा लेती है। लेकिन यहां मंत्रिमंडल के निर्णय ही नहीं, उसकी चर्चा के एजेंडे की भी जानकारी एलजी को दी जानी ज़रूरी है।

तुषार मेहता ने दिल्ली सरकार की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि ये गलत छवि बनाई जा रही है कि दिल्ली सरकार को एलजी काम नहीं करने दे रहे। पिछले 3 साल में आई 600 से ज़्यादा फाइलों में से एलजी ने सिर्फ 3 को राष्ट्रपति के पास भेजा। वो भी इसलिए क्योंकि वो पुलिस से जुड़ी थीं और पुलिस केंद्र के तहत हैं। बाकी फाइलों का निपटारा एलजी सचिवालय में ही हो गया।

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