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सुप्रीम कोर्ट में लोकपाल की नियुक्ति को लेकर आज आएगा फ़ैसला

लोकपाल का चयन करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष समेत पांच सदस्य होते हैं।

Updated on: 27 Apr 2017, 08:56 AM

नई दिल्ली:

लोकपाल की नियुक्ति में हो रही देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को अपना फैसला सुना सकता है। बता दें कि लोकपाल की नियुक्ति में हो रही देरी के लेकर 7 जनहित याचिकाएं दायर की गई है। इसमें कोर्ट से मांग की गई है कि वो सरकार को जल्द से जल्द लोकपाल नियुक्त करने का निर्देश दे।

इससे पहले 28 मार्च को करीब दो घंटे तक चली सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता कॉमन कॉज की तरफ से वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार जान-बूझकर कर लोकपाल की नियुक्ति में देरी कर रही है।

वहीं केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि लोकपाल और लोकायुक्त कानून, 2013 के अनुसार लोकपाल की नियुक्ति के लिए नेता विपक्ष का होना जरूरी है और अभी लोकसभा में कोई नेता विपक्ष ही नहीं है।

रोहतगी ने कहा कि सरकार इस दिशा में काफी गंभीर है और सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को चयन समिति में जगह देने के लिए लोकपाल कानून में बदलाव करने की प्रक्रिया में जुटी है।

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शांति भूषण ने सरकार पर देरी का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी नीयत साफ नहीं है और वो नियुक्ति करना ही नहीं चाहती है। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में लंबित रखा जाए ताकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर नजर रख सके। इस देश में कानून का राज खत्म हो गया है।

भूषण ने कोर्ट से कहा कि अन्ना आंदोलन के दबाव में बनाए गए लोकपाल कानून को राष्ट्रपति ने 16 जनवरी 2014 को मंजूरी दी थी, लेकिन केंद्र सरकार के साथ ही कई राजनीतिक दल भी नहीं चाहते कि लोकपाल जैसी स्वायत्त संस्था बने।

एक याचिकाकर्ता ने कहा कि सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को नेता प्रतिपक्ष मान लिया जाए ताकि लोकपाल की नियुक्ति हो सकती है। लोकपाल एक ऐसा कानून है जो नागरिकों के हक को मजबूत करता है इसलिए लोकपाल की नियुक्ति जल्द से जल्द होनी चाहिए।

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उन्होंने कहा कि सरकार लोकसभा में नेता विपक्ष न होने का केवल बहाना बना रही है और कह रही है कि सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को लोकपाल चयन समिति का सदस्य बनाने के लिए कानून में संशोधन करना होगा। उनका तर्क था कि 1977 में बने एक कानून में ही स्पष्ट कर दिया गया था कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को स्वयं ही 'नेता विपक्ष' का दर्जा मिल जाएगा।

अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से कहा कि संसद के मौजूदा सत्र के दौरान लोकपाल की नियुक्ति संभव नहीं है क्योंकि ये बजट के लिए तय सत्र है। रोहतगी ने कहा कि केंद्र सरकार अगले सत्र में लोकपाल की नियुक्ति कर सकती है।

बता दें कि लोकपाल का चयन करने वाली समिति में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष, नेता विपक्ष और एक वरिष्ठ कानूनी विशेषज्ञ यानी कुल पांच सदस्य होते हैं।

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अटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ने नेता विपक्ष बनाने के कांग्रेस के आग्रह को ठुकरा दिया है, क्योंकि उसके पास पर्याप्त सांसद नहीं हैं। उन्होंने कहा कि देश के पहले लोकसभा अध्यक्ष ने ही तय कर दिया था कि नेता विपक्ष के लिए विपक्षी पार्टी के पास लोकसभा में न्यूनतम 10 फीसदी सांसद होने चाहिए।

रोहतगी ने कहा कि कानून में संशोधन की प्रक्रिया चल रही है और स्थायी समिति ने प्रस्तावित संशोधनों को मंजूर कर लिया है।

रोहतगी ने कहा कि कोर्ट संसद के काम में दखल न दें, अब यह मामला संसद के विचाराधीन है।

वहीं वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि वह सरकार को लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के नेता को चयन समिति में रखने का आदेश दे और एक वरिष्ठ कानूनी विशेषज्ञ का चुनाव करे। साथ ही, सरकार को समिति की जल्द से जल्द बैठक बुलाने का आदेश दे।

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