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सुप्रीम कोर्ट ने 'इच्छा मृत्यु' पर सुरक्षित रखा फैसला, केन्द्र सरकार ने किया था विरोध

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इच्छा मृत्यु भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए 'जीने के अधिकार' के हिस्से में ही आता है।

Updated on: 11 Oct 2017, 05:59 PM

highlights

  • केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि अगर इस बात की मंजूरी दे दी जाती है तो इसका दुरुपयोग होगा
  • याचिकाकर्ता ने कहा कि इच्छा मृत्यु भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए 'जीने के अधिकार' के हिस्से में ही आता है

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने बुधवार को इच्छा मृत्यु (लीविंग विल) पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है। दो दिन की सुनवाई में मंगलवार को सरकार ने इच्छा मृत्यु का विरोध किया था।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इच्छा मृत्यु भी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए 'जीने के अधिकार' के हिस्से में ही आता है।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 5 जजों की संवैधानिक बेंच कर रहा है। बेंच में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भवन शामिल हैं।

एनजीओ 'कॉमन कॉज़' ने 2014 में इस मसले पर याचिका दाखिल की थी। कॉमन कॉज़ के वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में दलील दी कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों को 'लिविंग विल' का हक होना चाहिए।

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प्रशांत भूषण ने कहा कि 'लिविंग विल' के जरिये एक शख्स ये कह सकेगा कि जब वो ऐसी स्थिति में पहुँच जाए, जहां उसके ठीक होने की उम्मीद न हो, तब उसे जबरन लाइफ सपोर्ट पर न रखा जाए।

मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि अगर इस बात की मंजूरी दे दी जाती है तो इसका दुरुपयोग होगा।

सुप्रीम कोर्ट ये तय करेगा कि क्या किसी शख्स को ये अधिकार दिया जा सकता है कि वो ये कह सके कि कोमा जैसी स्थिति में पहुँचने पर उसे जबरन जिंदा न रखा जाए और उसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटा कर मरने दिया जाए?

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