अयोध्या विवाद मामला: सुप्रीम कोर्ट में आठ फरवरी तक टली सुनवाई, मांगे सारे दस्तावेज
अयोध्या मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में आठ फरवरी तक के लिए टाल दी गई है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि सभी दस्तावेज जमा कराए जाएं।
नई दिल्ली:
अयोध्या मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में आठ फरवरी तक के लिए टाल दी गई है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि सभी दस्तावेज जमा कराए जाएं।
इस मामले की सुनवाई तीन सदस्यीय पीठ कर रही है। इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा उनके साथ जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।
सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर कपिल सिब्बल ने दलील दी, 'सुप्रीम कोर्ट के सामने वह सारे दस्तावेज नहीं लाए गए हैं जो इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के सामने रखे गए थे। इसके अलावा अयोध्या में हुई खुदाई पर एएसआई की पूरी रिपोर्ट भी अभी रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं बनी है।'
कपिल सिब्बल और राजीव धवन की दलील
सिब्बल का कहना था, 'सभी पक्षों की तरफ से अनुवाद करवाए गए कुल 19950 पन्नों के दस्तावेज कोर्ट में औपचारिक तरीके से जमा होने चाहिए।'
इस पर यूपी सरकार की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सिब्बल की दलील का विरोध किया। तुषार मेहता ने कहा, 'सभी सबंधित दस्तावेज कोर्ट के रिकॉर्ड में हैं लिहाजा यह कहना कि दस्तावेज अधूरे हैं, सही नहीं है।'
इस पर सिब्बल ने तर्क दिया कि 9000 से ज़्यादा पन्नों के दस्तावेज इतने कम समय मे कैसे जमा करवाए गए। अगर ऐसा हुआ भी है तो मामले से जुड़े पक्षों के पास अभी ये दस्तावेज नहीं पहुंचे हैं।
सिब्बल ने ये भी कहा कि कोर्ट में चल रहे मामले का असर बाहर भी होता है। 'राम मंदिर बीजेपी के चुनावी एजेंडे का हिस्सा है। लिहाजा इसकी सुनवाई जुलाई 2019 के बाद किया जाए।'
सिब्बल की दलीलों का वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने समर्थन किया। सुनवाई में राजीव धवन ने कहा कि चीफ जस्टिस अक्टूबर में रिटायर होंगे। तब तक सुनवाई पूरी नहीं होगी।
हालांकि बाद में दोनों ने इन दलील को कोर्ट से रिकॉर्ड पर ना लेने का आग्रह भी किया। इसके साथ ही सिब्बल ने सुब्रमण्यम स्वामी की अर्जी पर मामले को जल्द सुनने पर सवाल उठाए।
सिब्बल ने दलील दी, 'पहले कोर्ट ने उन्हें मुख्य पक्ष न मानते हुए जल्द सुनवाई की मांग ठुकराई थी। ये एक राजनीतिक मामला है।
सिब्बल और राजीव धवन दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि आखिर मामले की इतनी जल्दी सुनवाई की क्या जरूरत है और मामले को विचार के लिए सात जजों की बेंच के सामने भेजा जाना चाहिए।'
हरीश साल्वे और एसएसजी तुषार मेहता की दलील
हरीश साल्वे और यूपी सरकार की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने कहा, 'ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोर्ट को इस मामले के राजनीतिक प्रभाव को ध्यान में रखने के लिए कहा जा रहा है। कोर्ट को तुरंत सुनवाई करनी चाहिए ताकि कोई गलत संदेश न जाए।'
साल्वे ने मौजूदा 3 जजों की बेंच में सुनवाई की पैरवी की। उन्होंने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत कोर्ट को सुनवाई की प्रक्रिया तय करने का अधिकार है। यहां मामला निचली अदालत जैसा नही है। यहां अपीलों पर सुनवाई हो रही है, जो तीन महीनों में पुरी हो सकती है।'
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6 दिसंबर को विवादित ढांचा ढहाए जाने के 25 साल पूरे हो रहे हैं। रामलला विराजमान की ओर से पक्षकार महंत धर्मदास ने दावा किया है कि सभी सबूत, रिपोर्ट और भावनाएं मंदिर के पक्ष में हैं।
महंत धर्मदास ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले में जमीन का बंटवारा किया गया है जो हमारे साथ उचित न्याय नहीं है।
इससे पहले 11 अगस्त को तीन जजों की स्पेशल बेंच ने इस मामले की सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट में 7 साल बाद अयोध्या मामले की सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने कहा था कि 7 भाषा वाले दस्तावेज का पहले का अनुवाद किया जाए। कोर्ट से साथ ही कहा कि वह इस मामले में आगे कोई तारीख नहीं देगा।
गौरतलब है कि इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित कई भाषाओं में हैं, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेजों को अनुवाद कराने की मांग की थी।
आपको बता दें कि राम मंदिर के आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था। फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए। इसमें कहा गया कि जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए।
सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपी जाए।
इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी।
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