लोकपाल नियुक्ति को लेकर केंद्र के हलफनामें से सुप्रीम कोर्ट असंतुष्ट, 4 हफ्तों के भीतर दूसरा हलफनामा दाखिल करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र की ओर से लोकपाल नियुक्ति को लेकर दाखिल हलफनामें पर असंतोष जाहिर किया।
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र की ओर से लोकपाल नियुक्ति को लेकर दाखिल हलफनामें पर असंतोष जाहिर किया। जस्टिस रंजन गोगोई, आर भानुमति और नवीन सिन्हा की तीन सदस्यीय बेंच ने केंद्र को 4 हफ्ते के अंदर विस्तृत जानकारी के साथ हलफनामा दायर करने का आदेश दिया।
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने हलफनामा दाखिल करते हुए कहा कि चयन समिति की एक बैठक आयोजित की गई थी लेकिन समिति के सदस्यों के नामों की खोज करते हुए अंतिम रूप नहीं दिया जा सका।
उन्होंने कहा कि ऐसी नियुक्तियों के लिए कानून के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, खोज समिति के सदस्यों की नियुक्ति के लिए जल्द ही एक और बैठक आयोजित की जाएगी।
याचिकाकर्ता एनजीओ कॉमन कॉज़ की ओर से अदालत में पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि केंद्र ने अगली बैठक की तारीख की जानकारी नहीं दी है। पांच साल पहले इस कानून के पारित हो जाने के बावजूद केंद्र लोकपाल की नियुक्ति में देरी कर रहा हैं।
उन्होंने कहा कि संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट के आदेश की अवमानना के लिए कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए या अदालत को संविधान के अनुच्छेद 142 (सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और आदेशों के प्रवर्तन) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करके लोकपाल की नियुक्ति करनी चाहिए।
बेंच ने अपने आदेश में कहा कि वह केंद्र के जवाब से असंतुष्ट है और सभी आवश्यक विवरण के साथ चार हफ्ते में एक नया हलफनामा दाखिल करे।
और पढ़ें: लोकपाल नियुक्ति मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, 10 दिन के भीतर हलफनामा दायर करने का दिया आदेश
इससे पहले केंद्र ने 15 मई को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी को लोकपाल नियुक्ति के लिए गठित चयन समिति का प्रख्यात विधिवेत्ता चुना है।
जिसके बाद दो जुलाई को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को फटकार लगाते हुए 10 दिनों के भीतर एक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया था जिसमें लोकपाल नियुक्ति और उसमें लगने वाली समय सीमा के साथ उठाए जाने वाले कदमों का उल्लेख शामिल हो।
गौरतलब है कि पिछले साल 11 सितंबर को वरिष्ठ अधिवक्ता पी पी राव की मृत्यु के बाद चयन समिति में यह पद खाली था।
इस समिति में प्रख्यात विधिवेत्ता समेत प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, लोकसभा स्पीकर और विपक्ष के नेता शामिल होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिेए अपने फैसले में कहा था कि लोकसभा अधिनियम को तब तक लागू करने का कोई फायदा नहीं है जब तक कि लोकसभा में विपक्ष के नेता के मुद्दे पर प्रस्तावित संशोधन को संसद से मंजूरी नहीं मिल जाती।
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