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24 हफ्ते की गर्भवती महिला का हो सकता है गर्भपात, सुप्रीम कोर्ट ने दी इजाजत

मेडिकल टेर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक 20 हफ्ते से ज्यादा गर्भवती महिला का गर्भपात नहीं करवाया जा सकता है।

Updated on: 16 Jan 2017, 02:56 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने 24 हफ्ते की गर्भवती महिला के गर्भपात की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने कहा, 'मेडिकल बोर्ड के 7 एक्सपर्ट की राय हैं कि गर्भ में पल रहे भ्रूण में विकृतियां हैं, उसकी सिर की हड्डी विकसित नही है।'

सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने आदेश दिया, 'बच्चे के जीवित रहने की कोई उम्मीद नही हैं, बल्कि गर्भ के जारी रहने पर महिला की जान को खतरा हो सकता हैं। मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद कोर्ट महिला के गर्भपात की इजाजत देता है।'

कानूनन 20 हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण का गर्भपात तभी हो सकता है जब ऐसा न करने पर महिला की जान को खतरा हो।

क्या कहा था महिला ने याचिका में

23 साल की मुंबई की विवाहित महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि उसे दिसंबर में तब भ्रूण के अंदर विकृति का पता चला, जब गर्भ 21 हफ्ते और दो दिन का था।

20 दिसम्बर को मुम्बई के उसके डाक्टरों ने उसके अनुरोध पर गर्भपात करने से मना कर दिया क्योंकि भ्रूण 20 हफ्ते की समयसीमा को पूरा कर चुका था।

महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि  20 हफ्ते की समयसीमा गैरवाजिब हैं क्योंकि कई मामलों में भ्रूण में विकृति का पता सिर्फ 20 हफ्ते के बाद ही चलता हैं।

ऐसे में 20 हफ्ते की ये समयसीमा मनमानी और संविधान के आर्टिकल 14 के तहत समानता और आर्टिकल 21 के तहत जीने के अधिकार का हनन हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने एक्सपर्ट और सरकार की राय मांगी थी

सुप्रीम कोर्ट ने युवती की याचिका पर सबसे पहले के ई एम हॉस्पिटल को मेडिकल टेस्ट करने और रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। इस मेडीकल बोर्ड में वो एक्सपर्ट  शामिल थे, जिन्होंने जुलाई में , सुप्रीम कोर्ट में इस तरह की याचिका दायर करने वाली महिला का मेडिकल परीक्षण किया था।

अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में भ्रूण की हालात को देखते हुए महिला को गर्भपात की इजाजत दिए जाने की मांग का समर्थन किया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर केंद्र सरकार से राय मांगी थी।

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने महिला की याचिका का समर्थन किया।

क्या कहता हैं कानून

दरअसल ,मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेसी एक्ट के तहत 20 हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण के गर्भपात करने पर किसी भी डॉक्टर को 7 साल तक की सजा हो सकती हैं।

हालांकि महिला की जान को खतरा होने पर इसकी इजाजत दी जा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट इस तरह के कई मामलों में इससे पहले भी कई महिलाओं को गर्भपात की इजाजत दे चुका है।