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SC/ST एक्ट पर बीजेपी रख रही फूंक-फूंक कर कदम, 9 अगस्त को दलितों ने बुलाया भारत बंद, कहा- बातचीत के सभी विकल्प खुले

एससी/एसटी एक्ट को सख्त बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद न सिर्फ दलित संगठन बल्कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अपनी सहयोगी पार्टियां भी सरकार पर लगातार दबाव बना रही हैं।

Updated on: 29 Jul 2018, 11:20 PM

नई दिल्ली:

एससी/एसटी एक्ट को सख्त बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद न सिर्फ दलित संगठन बल्कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अपनी सहयोगी पार्टियां भी सरकार पर लगातार दबाव बना रही हैं।

वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी भी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और इसी रणनीति के तहत पार्टी ने इस मामले पर लगातार चुप्पी साधी हुई है। हालांकि बीजेपी की चुप्पी पर अब उसकी सहयोगी पार्टियां ही सवाल उठा रही हैं।

गौरतलब है कि देश भर में 2 अप्रैल का भारत बंद का आयोजन करने वाली ऑल इंडिया अंबेडकर महासभा (AIAM) ने इस मुद्दे पर सरकार को नया अल्टीमेटम दिया है और 9 अगस्त को एक बार फिर भारत बंद करने की धमकी दी हैं।

केंद्र सरकार अंबेडकर महासभा की मांगों पर जवाब देने की तैयारी कर रही है। साथ ही सरकार ने बंद आयोजकों से बातचीत के सभी विकल्प भी खुले रखे हैं।

बता दें कि 9 अगस्त को बुलाए गए बंद के लिए 20 मांगें सामने रखी गई हैं। सबसे महत्वपूर्ण मांग यह है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से एससी/एसटी ऐक्ट में किए गए बदलावों को निरस्त करने के लिए अध्यादेश लाया जाए।

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इससे पहले एनडीए की सहयोगी पार्टी एलजेपी के नेता राम विलास पासवान सहित अन्य दलित सांसद सरकार से सकारात्मक जवाब मांग रहे हैं। साथ ही इन सांसदों ने एनजीटी अध्यक्ष एके गोयल को हटाने की मांग भी तेज कर दी है।

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी का एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस एके गोयल को हटाने की मांग पर चुप्पी साधना एक रणनीति है, क्योंकि खुले तौर पर इसका समर्थन और विरोध करना खतरे को बुलावा देना होगा।

जस्टिस गोयल को सेवानिवृति के बाद नैशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (NGT) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।

बता दें कि जस्टिस गोयल सुप्रीम कोर्ट के उन दो जजों में शामिल थे जिन्होंने अनुसूचित जाति एवं जनजाति उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के संबंध में आदेश दिया था।

वहीं, इस मुद्दे पर बीजेपी के दूसरे नेता सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अति-उत्साह में पार्टी को अपने मुख्य वोट बैंक से हाथ धोना पड़ सकता है।

यूपी के एक बीजेपी सांसद ने कहा, 'हम चाहते हैं कि पार्टी दलितों के हितों पर निष्पक्षता से जवाब दे लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दलितों की सारी मांगें मान ली जाएं क्योंकि बीजेपी को हिंदुओं के ज्यादातर वर्गों से समर्थन मिला है और उनकी चिंताओं पर ध्यान देना भी जरूरी है।'

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बीजेपी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका में विपक्ष का समर्थन मिला है जिसमें दलितों के खिलाफ अत्याचार कानून को 'कमजोर' करने का दावा किया गया है।

सरकार ने दलित एवं जनजातीय अधिकारियों के प्रमोशन में आरक्षण को फिर से बहाल करने के लिए भी कोर्ट में याचिका दाखिल की है।

हालांकि, कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए ताजा बिल, अध्यादेश लाने या पहले वाले कानून को बहाल करने को लेकर कुछ नहीं कहा गया है।

पार्टी के एक नेता ने कहा, 'यह मोदी सरकार है जिसने ऐक्ट में संशोधन किया है और इसे ज्यादा कठोर बनाया है। हमारे पास छुपाने के लिए कुछ नहीं है, हम अपने विरोधियों के बिछाए जाल में नहीं फंसेंगे।'

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एलजेपी ने भी अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिशों के तहत एससी-एसटी ऐक्ट को लेकर बीजेपी को अल्टिमेटम दे दिया है। एलजेपी ने कहा है कि बीजेपी को समर्थन मुद्दों पर आधारित है।

पार्टी ने दलितों के उत्पीड़न के खिलाफ कानून में सख्त प्रावधान करने तथा 9 अगस्त तक एनजीटी के अध्यक्ष को पद से हटाने की मांग की है।

इससे पहले 2 अप्रैल को भारत बंद पर सरकार को संज्ञान लेना पड़ा था। इस दौरान हिंसा में 11 लोगों की मौत हो गई थी। यह माना जाता है कि बंद और हिंसा 2019 लोकसभा चुनाव से पहले दलितों को लुभाने के बीजेपी के प्रयासों को बड़ा झटका है।

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