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जानें कौन हैं अयोध्या विवाद सुलझाने की पहल करने वाले श्री श्री रविशंकर

अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का सालों पुराना विवाद एक बार फिर चर्चा में है। श्री श्री रविशंकर ने उस अयोध्या विवाद को सुलझाने का बीड़ा उठाया है, जो 1986 से लेकर अब तक 11 बार बातचीत के रास्ते पर तो आया लेकिन मुकाम तक नहीं पहुंच सका।

Updated on: 14 Nov 2017, 03:13 PM

नई दिल्ली:

अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का सालों पुराना विवाद एक बार फिर चर्चा में है। दरअसल, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने उस अयोध्या विवाद को सुलझाने का बीड़ा उठाया है, जो 1986 से लेकर अब तक 11 बार बातचीत के रास्ते पर तो आया लेकिन मुकाम तक नहीं पहुंच सका।

आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने समझौते से रास्ता निकालने के लिए गृहमंत्री राजनाथ सिंह से लेकर मंदिर-मस्जिद विवाद से जुड़े सभी पक्षों से बातचीत शुरू कर दी है।

21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने आपसी रजामंदी से अयोध्या विवाद हल करने का सुझाव दिया था। इसके बाद से ही श्रीश्री पहल कर रहे हैं।

विरोध शुरू 

पिछले दिनों अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए संकट मोचन हनुमानगढ़ी मंदिर के बंद कमरे में वार्ता शुरू हुई। इस वार्ता में हिंदू पक्षकार महंत धर्मदास, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि, शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी और बाबरी मस्जिद के मुद्दई इकबाल अंसारी समेत तमाम विवाद से जुड़े लोग शामिल हुए।

हालांकि अंसारी ने कहा कि मामला कोर्ट में वही फैसला करे। वहीं सुन्‍नी सेंट्रल वक्‍फ बोर्ड के सदस्य और वकील जफरयाब जिलानी ने भी समझौते के प्रयास पर कहा कि इसकी कोई 'कानूनी हैसियत नहीं' है।

वहीं अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरि ने भी समझौते के प्रयास पर कहा कि श्रीश्री कोई संत नहीं हैं। वो गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) चलाते हैं। 

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आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक और शिया वक्फ बोर्ड की कोशिश है कि 6 दिसंबर से पहले समझौते का फॉर्मूला तैयार करें। 6 दिंसबर 1992 के दिन ही बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने ध्वस्त कर दिया था।

ऐसे देखना दिलचस्प होगा कि श्रीश्री अपनी कोशिशों में सफल होते हैं या समझौते की कोशिश फॉर्मूला बनने से पहले विफल हो जाती है। रविशंकर पाकिस्तान, ईराक समेत कई देशों में शांति के लिए प्रयास कर चुके हैं।

पाकिस्तान

आर्ट ऑफ लिविंग प्रमुख रविशंकर 2004 में 'गुडविल मिशन' के तहत पाकिस्तान गए और उन्होंने अपनी संस्था का इस्लामाबाद और कराची में उद्घाटन किया। हालांकि मार्च 2014 में हथियारबंद लोगों ने इस्लामाबाद के सेंटर को जला दिया।

इराक

रविशंकर ने 2003 में युद्ध ग्रस्त इराक में शांति के लिए प्रयास शुरू किया। उन्होंने युद्ध ग्रस्त लोगों को आर्ट ऑफ लिविंग के तहत मदद की। उनके प्रयासों को देखते हुए पहली बार 2007 में आध्यात्मिक गुरु को इराक के प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी ने आधिकारिक तौर पर आमंत्रित किया। वह 2008 में भी इराक गये।

उन्होंने 2014 में इरबिल में राहत कैंपों का दौरा किया। उन्होंने कांफ्रेंस को संबोधित किया और उस इलाके के यजीदियों और दूसरे गैर-मुस्लिमों के हालात पर बात की

क्यूबा में प्रयास

रविशंकर ने जून 2015 में क्यूबा का दौरा किया। उनके प्रयासों से कोलंबिया सरकार और गोरिल्ला मूवमेंट (एफएआरसी) के बीच शांति समझौता टूटा। नतीजा यह हुआ कि गोरिल्ला मूवमेंट गांधी के अहिंसावादी विचारों को अपना राजनैतिक उद्देश्य बनाने को तैयार हो गया।

कश्मीर

हाल ही में कश्मीर में शांति के लिए रविशंकर ने 'पैगाम-ए-मोहब्बत' नाम से एक कार्यक्रम आयोजिक किया था। इससे पहले भी वह शांति के लिए प्रयास कर चुके हैं। पद्म विभूषण रविशंकर ने नवंबर 2016 में कश्मीर समस्या के हल के लिए साउथ एशिया फोरम फॉर पीस का गठन किया।

इसके तहत आयोजित कार्यक्रम 'कश्मीर बैक टू पैराडाइज' में बोलेते हुए श्री श्री ने कहा, 'कश्मीर समस्या का हल बंदूक, पत्थरबाजी तथा गलियों में प्रदर्शन से नहीं निकलेगा बल्कि इसके लिए सभी को बातचीत के लिए आगे आना होगा। कश्मीर का हल कश्मीरियों से होगा न कि बाहर के लोगों से।'

साउथ एशिया फोरम फॉर पीस आठ देशों में अध्यात्म, स्कील डेवलेपमेंट, सांस्कृतिक कार्यक्रम, महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में काम कर रहा है।

नॉर्थ-ईस्ट में पहल

71 स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर मणिपुर में 11 उग्रवादी संगठनों के 68 उग्रवादियों ने सरकार के सामने आत्मसमर्पण किया। इसमें आर्ट ऑफ लिविंग ने बड़ी भूमिका निभाई थी। रविशंकर की संस्था पिछले 15 सालों से मणिपुर में शांति बहाल करने के प्रयास में जुटी है।

सितंबर 2017 में नॉर्थ ईस्ट इंडिजनस पीपुल्स कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए रविशंकर ने दावा किया था कि 500 से अधिक उग्रवादी जल्द ही हथियार छोड़ शांति प्रक्रिया में शामिल होंगे।

कैदी को जेल से बाहर लाने के लिए प्रयास

साल 1992 में श्री श्री रविशंकर ने प्रिजन प्रोग्राम शुरू किया। इसका मकसद लंबे समय से जेल में बंद कैदियों को बाहर लाना था। ताकि वह सामान्य जिंदगी जी सकें।

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