सरकार कोई भी हो सबने किसान को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल : रामपाल जाट
किसान नेता रामपाल जाट ने कहा कि सरकारें कोई भी रही हों, किसी ने किसानों को महत्व नहीं दिया है, किसानों को हमेशा वोटबैंक के तौर पर उपयोग किया गया।
जयपुर:
किसानी, पानी और जवानी पर तीन दिनों तक खुलकर संवाद करने के लिए यहां जुटे 19 राज्यों के किसान नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में हुए अन्ना हजारे के आंदोलन को खत्म कराने के पीछे 'राजनीतिक साजिश' का आरोप लगाते हुए हुए केंद्र सरकार जमकर हमला बोला।
उन्होंने संकल्प लिया कि वे किसानों के आंदोलन को कमजोर नहीं पड़ने देंगे, किसान अपना हक लेकर रहेगा।
राजस्थान के अलवर जिले के भीकमपुरा स्थित तरुण भारत संघ के आश्रम में शनिवार से शुरू हुए तीन दिवसीय चिंतन शिविर के पहले दिन के संवाद सत्र में किसान नेतने कहा कि सरकारें कोई भी रही हों, किसी ने किसानों को महत्व नहीं दिया है, किसानों को हमेशा वोटबैंक के तौर पर उपयोग किया गया।
उन्होंने कहा कि कोई भी दल जब विपक्ष में होता है, तब किसानों के हित की बात करता है, मगर सत्ता मिलते ही किसान को भूल जाता है। एक तरफ कर्मचारियों के लिए सातवां वेतनमान आ गया है, मगर किसानों के लिए बने आयोग की सिफारिशों को अब तक लागू नहीं किया गया। सत्ता में बैठे लोग किसानों के साथ बार-बार छल कर रहे हैं।
अन्ना के करीबी विनायक राव पाटिल ने कहा कि अन्ना की मांगें सरकार द्वारा मान लिए जाने का जोर-शोर से प्रचार किया गया, जबकि हकीकत यह है कि अन्ना ने जो डाफ्ट बनाकर पीएमओ को भेजा था, उसे बदल दिया गया और उसमें सिर्फ एक वाक्य जोड़ा गया कि 'अन्ना की सभी मांगें मानते हैं।'
उन्होंने आगे कहा, 'अन्ना मेरे आदरणीय हैं, मगर आंदोलन खत्म किए जाने के तरीके से मैं भी सहमत नहीं था.. लेकिन क्या करें, अगर पिता कुछ गलत करे तो उसका साथ नहीं छोड़ा जा सकता। यही हमारी संस्कृति है।'
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वहीं, जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री पर आरोप लगाते हुए कहा, 'इस सरकार ने अन्ना जैसे सीधे-सादे और सहृदयी व्यक्ति को अपनी साजिश के जाल में फंसा लिया। अन्ना को धोखा देकर पूरे देश को यह जताने की कोशिश की, कि सरकार ने किसानों की सभी मांगें मान ली हैं, जबकि सरकार के पत्र में ऐसा कुछ नहीं है।'
सिंह ने आगे कहा कि सरकार किसान आंदोलनों को कमजोर करना चाहती है और उसने यही कुछ अन्ना आंदोलन के साथ किया। आने वाले समय में सरकार कहेगी कि उसने किसानों की मांगें अन्ना के आंदोलन में मान ली थी, लिहाजा अब किसी से चर्चा नहीं होगी। सरकार को यह जान लेना चाहिए कि, देश का किसान अपने हक को लेकर रहेगा।
देश में 193 किसान संगठनों के संयुक्त किसान संगठन के संयोजक वी.एम. सिंह ने कहा कि प्रकृति से जुड़कर काम करने वाला हर व्यक्ति किसान है, चाहे वह खेती करने वाला मजदूर हो, मछुआरा हो, पशुपालक हो। सभी के लिए न्यूनतम सुविधाएं दिलाने के प्रयास होंगे, उसकी लड़ाई लड़ी जाएगी।आने वाले दिनों में इस दिशा में बड़े कदम उठाने की तैयारी है। किसान अपने हक को किसी भी सूरत में छोड़ नहीं सकता, यह सरकार को जान लेना चाहिए।
तीन दिवसीय चिंतन शिविर एकता परिषद के संस्थापक पी.वी. राजगोपाल के निर्देशन में शुरू हुआ है। इस शिविर में एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रण सिंह, जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह, सवरेदय मित्र मंडल के सचिव मंत्री मनीष राजपूत, महाराष्ट्र से प्रतिभा शिंदे, रमाकांत बापू, निशिकांत भालेराव, विनोद बोदनकर, मध्य प्रदेश से पवन राजावत, उत्तम सिंह, पर्यावरणविद मार्क एवर्ड सहित बड़ी संख्या में किसान नेता व सामाजिक कार्यकर्ता पहुंचे हैं।
इस शिविर में हिस्सा लेने मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा, तामिलनाडु, तेलंगाना, पंजाब सहित कुल 19 राज्यों के किसान नेता और सामाजिक कार्यकर्ता यहां पहुंच चुके हैं।
तीन दिन (7 से 9 अप्रैल) चलने वाले इस शिविर में किसानी, पानी और जवानी पर खुलकर संवाद होगा। किसान आंदोलनों में बिखराव की वजह, आगामी आंदोलन की रणनीति सहित प्रमुख मुद्दों पर चर्चा होगी। यहां आ रहे संगठनों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं का किसानों के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने पर विशेष जोर रहेगा।
इस शिविर में हिस्सा ले रहे प्रतिनिधियों का मानना है कि देश में इस समय किसान बंटे हुए हैं और वे अलग-अलग आंदोलन करते हैं, जिसे सरकारें आसानी से तोड़ देती हैं, लिहाजा एक साझा आंदोलन जरूरी है।
उन्होंने कहा कि गन्ना किसानों का आंदोलन अलग होता है, दलहन-तिलहन किसानों का आंदोलन अलग और दूध उत्पादक, कपास उत्पादक, मछुआरों आदि का भी आंदोलन अलग, लेकिन अब कोशिश होगी कि सभी किसान संगठनों को एकजुट किया जाए और सरकार से मार्चा लेने के लिए साझा आंदोलन की रूपरेखा बनाई जाए।
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