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राष्ट्रपति चुनाव 2017: कैसे चुना जाता है भारत का राष्ट्रपति, जाने पूरी प्रक्रिया?

राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मंडल या इलेक्टोरल कॉलेज करता है। इसमें संसद के दोनों सदनों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।

Updated on: 09 Jun 2017, 03:38 PM

नई दिल्ली:

मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 25 जुलाई को खत्म हो रहा है। बुधवार को चुनाव आयोग ने प्रेस कांफ्रेंस जारी कर इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 17 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव होगा और 20 जुलाई को वोट की गिनती होगी। 

देश की सभी विधानसभाओं, विधान परिषदों और संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के आंकड़े को देखते हुए सत्ताधारी बीजेपी के पास राष्ट्रपति के अपने उम्मीदवार को जीताने के लिए पर्याप्त वोट हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये चुनाव प्रक्रिया कैसी होती है, आईए इस बारे में विस्तार से समझाते हैं।

राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मंडल या इलेक्टोरल कॉलेज करता है। इसमें संसद के दोनों सदनों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 54 में इसका वर्णन है। यानी जनता अपने राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके वोट से चुने गए प्रतिनिधि करते हैं।

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कौन करेगा वोट

  • भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने गए सदस्य और लोकसभा तथा राज्यसभा में चुनकर आए सांसद अपने वोट के माध्यम से करते हैं। यानी राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए गए सांसद सदस्य वोट नहीं डाल सकते हैं।
  • भारत में 9 राज्यों में विधानपरिषद है लेकिन वो भी राष्ट्रपति चुनाव में मत का प्रयोग नहीं कर सकते। क्योंकि वो जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि नहीं हैं।
  • सभी केंद्रशासित प्रदेश इस चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते, लेकिन दिल्ली और पुद्दुचेरी के विधायक हिस्सा लेते हैं। क्योंकि इनकी अपनी विधानसभाएं हैं।

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राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया और वोटों का कैलकुलेशन

  • राष्ट्रपति चुनाव की वर्तमान व्यवस्था 1971 की जनसंख्या को आधार मानते हुए 1974 से चल रही है और ये 2026 तक लागू रहेगी।
  • चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा होती है और इस विधि से प्रत्येक वोट का अपना मूल्य होता है।
  • सिंगल वोट यानी वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकी से वोट देता है।
  • वह बैलेट पेपर पर यह बताता है कि उसकी पहली दूसरी और तीसरी पसंद कौन है।
  • यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इसलिए इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है।
  • सांसदों के वोट का मूल्य (708) निश्चित है मगर विधायकों के वोट का मूल्य राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर करता है। इसके साथ ही उस प्रदेश के विधानसभा सदस्यों की संख्या को भी देखा जाता है। जैसे सबसे अधिक जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश के एक विधायक के वोट का मूल्य 208 है वहीं सबसे कम जनसंख्या वाले प्रदेश सिक्किम के वोट का मूल्य सात है।
  • वेटेज निकालने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को चुने गए विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है। इस तरह जो अंक मिलता है, उसे फिर 1000 से भाग दिया जाता है। अब जो अंक आता है, वही उस राज्य के एक विधायक के वोट का वेटेज होता है। जबकि 1000 से भाग देने पर अगर शेष 500 से ज्यादा हो तो वेटेज में 1 जुड़ जाता है।

मतों की गिनती प्रक्रिया

  • भारत में कुल 776 सांसद हैं, जिसमे 543 लोकसभा सांसद और 233 राज्य सभा सांसद। चूकि प्रत्येक सांसद के वोट का मूल्य 708 है, इसलिए 776 सांसदों के वोट का कुल मूल्य हुआ 5,49,408 (लगभग साढ़े पाँच लाख)
  • भारत में कुल विधायकों की संख्या है 4120। इन सभी विधायकों का सामूहिक वोट है 5,49,474 (लगभग साढ़े पाँच लाख)। इस प्रकार राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट हैं 10,98,882 (लगभग 11 लाख)।
  • जीत के लिए प्रत्याशी को 5,49,442 वोट हासिल करने होंगे। जो प्रत्याशी सबसे पहले यह वोट हासिल करता है, वह राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा।
  • भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती है। राष्ट्रपति वही बनता है, जो वोटरों यानी सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करे।

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ऐसे तय होता है राष्ट्रपति

  • जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिलता है उस कैंडिडेट को रेस से बाहर कर दिया जाता है। लेकिन उस उम्मीदवार को मिले वोटों में से यह देखा जाता है कि वोटरों की दूसरी पसंद के कितने वोट किस उम्मीदवार को मिले हैं। फिर सिर्फ दूसरी पसंद वाले वोट बचे हुए उम्मीदवारों के खाते में ट्रांसफर होते हैं।
  • यदि इस वोट से किसी उम्मीदवार के कुल वोट तय संख्या तक पहुंच गया तो वह उम्मीदवार विजयी माना जाता है। नहीं तो दूसरे दौर में सबसे कम वोट पाने वाला भी रेस से बाहर हो जाएगा और यह प्रक्रिया फिर से दोहराई जाएगी।
  • यानी वोटर का सिंगल वोट ही ट्रांसफर होता है। यानी इस वोटिंग सिस्टम में कोई बहुमत समूह अपने दम पर जीत का फैसला नहीं कर सकता। लोकसभा और राज्यसभा के अलावा राज्यों के विधायकों का वोट भी राष्ट्रपति चुनाव में काफी अहम हो जाता है।