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राष्ट्रपति चुनाव 2017: नेहरु के विरोध के बावजूद दो बार राष्ट्रपति बने राजेन्द्र बाबू, जानिए इनसे जुड़ी 10 बातें

डॉ प्रसाद अकेले ऐसे शख्स थे जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के विरोध के बावजूद दो कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति चुने गए थे।

Updated on: 09 Jun 2017, 11:54 PM

नई दिल्ली:

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। राष्ट्रपति होते हुए भी उनकी ज़िदगी काफी सादगी भरा था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद लोगों के बीच काफी लोकप्रिय थे और इसलिए उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार के सीवान जिले के एक छोटे से गांव जीरादेई में 3 दिसम्बर, 1884 को हुआ था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इकलौते राष्ट्रपति थे जिन्हें दो बार इस पद पर बने रहने का मौका मिला।

सवैधानिक रूप से पहली बार डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति बने। वहीं 1952 में पहली चुनी हुई संसद ने उन्हें विधिवत रुप से पहला राष्ट्रपति बनाया। 13 मई 1952 को उन्होंने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली।

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इससे पहले वे स्‍वाधीन भारत के केंद्रीय मंत्री भी रहे थे। दूसरी बार 1957 में उन्होंने इस पद के लिए शपथ लिया था।

1962 में भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जीतने वाले थे, लेकिन उन्होंने पद का त्याग कर दिया। डाक्‍टर राजेंद्र प्रसाद की शादी 13 वर्ष की उम्र में राजवंशी देवी से हुई। हालाकि उनकी जीवनशैली और शिक्षा दीक्षा पर इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा।

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आइए जानते हैं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से जुड़ी 10 ख़ास बातें

1. गांधी जी की विचारधारा से प्रभावित होकर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हुए और स्‍वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।

2. महात्‍मा गांधी के प्रभाव में आने पर 1921 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर के पद से त्‍यागपत्र दे दिया। 1934 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गये। बाद में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अध्यक्ष पद छोड़ने पर एक बार फिर 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला।

3. जब 1930 में महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन चलाया तो राजेंद्र प्रसाद को इसके लिए बिहार का मुख्य नेता बनाया गया। प्रसाद ने फंड जुटाने के लिए नमक बेचने का भी काम किया था।

4. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद में वैचारिक और व्यावहारिक मतभेद था। ये मतभेद 1950 से 1962 तक प्रसाद के राष्ट्रपति रहने के दौरान लगातार बने रहे। कहा जाता है कि प्रसाद के राष्ट्रपति बनने से पहले भी नेहरू से उनकी पटरी नहीं बैठती थी।

5. ऐसा कहा जाता है कि नेहरू सी राजगोपालाचारी को देश का पहला राष्ट्रपति बनाना चाहते थे, लेकिन सरदार पटेल और कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं की राय डॉ राजेंद्र प्रसाद के हक में थी। आखिर नेहरू को कांग्रेस की बात माननी पड़ी और राष्ट्रपति के तौर पर प्रसाद को ही अपना समर्थन देना पड़ा।

6. राजेंद्र बाबू बतौर राष्ट्रपति 150 दिन ट्रेन की यात्रा करते थे और छोटे-छोटे स्टेशनों पर रुककर लोगों से मुलाकात करते थे। राजेंद्र बाबू संविधान सभा के पहले अध्यक्ष भी रहे हैं।

7. भारत रत्न अवार्ड की शुरुआत राजेंद्र प्रसाद के द्वारा 2 जनवरी 1954 को हुई थी। उस समय तक केवल जीवित व्यक्ति को ही भारत रत्न दिया जाता था। बाद में इसे बदल दिया गया। 1962 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को देश का सर्वश्रेष्ण सम्मान भारत रत्न दिया गया।

8. राजेन्द्र बाबू के राष्ट्रपति रहते हुए आगर कोई विदेशी अतिथी भवन में आते थे तो स्वागत में उनकी आरती की जाती थी। जिससे मेहमानों को भारत की संस्कृति का पता चले।

9. राजेन्द्र बाबू एक लेखक भी थे उन्‍होंने 1946 में अपनी आत्मकथा के अलावा और भी कई पुस्तकें लिखी जिनमें बापू के कदमों में (1954), इण्डिया डिवाइडेड (1946), सत्याग्रह ऐट चम्पारण (1922), गान्धीजी की देन, भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र आदि कई रचनायें शामिल हैं।

10. सन 1962 में राष्‍ट्रपति पद से अवकाश प्राप्त करने पर राष्ट्र ने उन्हें 'भारत रत्‍न' की उपाधि से सम्मानित किया। अपने जीवन के आखिरी महीने बिताने के लिये उन्होंने पटना के सदाकत आश्रम को चुना। यहां पर ही 28 फ़रवरी 1963 में उनका निधन हुआ।

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