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वीवी गिरी! मजदूर नेता से राष्ट्रपति बनने तक का महत्वपूर्ण सफर

बताया जाता है कि वीवी गिरि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काफी करीबी थे। गिरी को राष्ट्रपति बनाने में इंदिरा की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।

Updated on: 20 Jun 2017, 10:17 PM

नई दिल्ली:

भारत के चौथे राष्ट्रपति वीवी गिरी का नाम इस सूचि में जुड़ना अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है। 'भारत रत्न' गिरी को एक मजदूर नेता से राष्ट्रपति बनने तक का सफर काफी रोचक रहा है।

बताया जाता है कि वीवी गिरि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काफी करीबी थे। गिरी को राष्ट्रपति बनाने में इंदिरा की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। उनके राष्ट्रपति बनने की घटना भी काफी रोचक है। इससे पहले वे कुछ दिनों के लिए उप-राष्ट्रपति का पद भी संभाल चुके थे।

1969 में पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के बाद उपराष्ट्रपति वीवी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका में थे। राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। तब तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को अंतरिम कार्यभार सौंपा गया था।

वहीं राजनीतिक जानकारों की माने तो तब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी और पार्टी के अंदर सिंडिकेट का वर्चस्व चलता था। पार्टी (सिंडिकेट) ने बिना इंदिरा को भरोसे में लिए नीलम संजीवा रेड्डी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए घोषित कर दिया।

सिंडिकेट का यह फैसला इंदिरा पसंद नहीं आया। तभी चुनाव में इंदिरा गांधी ने पार्टी के सांसदों और विधायकों से अपनी 'अंतरात्मा' की आवाज पर वोट डालने की अपील कर दी थी।

तब वीवी गिरि निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे थे और इंदिरा के इमोशनल अपील के बाद वे कांटे के मुकाबले में नीलम संजीवी रेड्डी को हराने में कामयाब हो गए थे।

उस चुनाव में कुल 15 उम्मीदवार मैदान में थे। चुनाव में वीवी गिरि को 4,20,077 वोट मिले थे जबकि नीलम संजीवा रेड्डी को 4,05,427 मत मिला था।

इस दौरान न सिर्फ गिरि राष्ट्रपति बने बल्कि कांग्रेस पार्टी भी दो फाड़ हो गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इंडियन नेशनल कांग्रेस (आई) के नाम से पार्टी बनाई। जबकि दूसरी पार्टी इंडियन नेशनल कांग्रेस (ओ) बन गई थी। पार्टी में दो फाड़ होने के बाद इंदिरा चुनावी मैदान में उतरी और 1971 के लोकसभा चुनावों में जीतकर दोबार देश की प्रधानमंत्री बनी।

10 अगस्त, 1894 को बेहरामपुर, ओडिशा में जन्मे गिरी ने आयरलैंड में कानून की पढ़ाई पूरी की थी। जिसके बाद वे 1916 में भारत लौट आए और मजदूरों के आंदोलन का हिस्सा बन गए।

इस दौरान गिरि अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी संघ और अखिल भारतीय व्यापार संघ (कांग्रेस) के अध्यक्ष भी रहे। रेलवे कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने के लिए 'बंगाल-नागपुर रेलवे एसोसिएशन' की भी स्थापना की थी।

गिरी को भारत का सबसे बड़ा सम्मान 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया जा चुका है। गिरि उत्तर प्रदेश, केरल और कर्नाटक के राज्यपाल भी रह चुके थे।