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राजनीतिक दलों के घोषणापत्र महज कागजी दस्तावेज, कानून बनाकर जवाबदेही तय करने की जरूरत: CJI

सेमिनार मे विषय पर बात करते हुए जे एस खेहर ने कहा कि चुनाव के समय राजनीतिक पार्टियां जिस मॅनिफेस्टो को जारी करती हैं वो चुनाव के बाद नियमित रूप से अपूर्ण ही रहता है और घोषणा पत्र सिर्फ़ पेपर के टुकड़ा बन के रह जाता है। जस्टिस खेहर ने कहा राजनीतिक दलों को इसके प्रति जवाबदेह होना चाहिए।

Updated on: 08 Apr 2017, 09:13 PM

नई दिल्ली:

भारत के मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर चुनावी घोषणापत्र को लेकर राजनीतिक दलों को आगाह किया। 'निर्वाचन मुद्दों के साथ आर्थिक सुधार' पर हो रहे एक सेमिनार में बोलते हुए खेहर ने कहा कि चुनाव के समय राजनीतिक दलों की तरफ से जारी किया जाने वाला घोषणापत्र महज कागजी दस्तावेज बनकर रह जाता है। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी शामिल थे।

खेहर ने कहा, 'चुनाव के समय राजनीतिक पार्टियां जिस मैनिफेस्टो को जारी करती हैं वो चुनाव के बाद वैसी ही पड़ी रह जाती है। घोषणा पत्र सिर्फ़ कागज का टुकड़ा बन कर रह जाता है।' जस्टिस खेहर ने कहा कि राजनीतिक दलों को चुनावी घोषणापत्र के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।

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खेहर ने कहा कि आजकल राजनीतिक दलों के लिए घोषणापत्र एक मात्र कागज का टुकड़ा बन कर रह गया है। उन्होंने कहा कि अब क़ानून बनाकर पार्टियों को इसके प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की मौजूदगी में बोलते हुए जस्टिस खेहर ने कहा, 'राजनीतिक दल अपनी इन कमियों को छिपाने के लिए बहुत ही बचकाने बहानों का इस्तेमाल करते हैं जैसे पार्टी में सर्वसम्मति का न होना, जो कि किसी भी रूप में उचित नही है।'

2014 के आम चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा जारी घोषणापत्र पर सीजेआई ने कहा कि ऐसा कोई भी वादा नही है जो हाशिए पर रह रहे लोगों को संवैधानिक रूप से आर्थिक-सामाजिक न्याय की मुख्य धारा से जोड़ता हो।

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