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गुजरात में 'मोदी मैजिक' बरकरार, सत्ता में वापसी कर बीजेपी को हार से बचाया

गुजरात में लगातार छठी बार 'मोदी लहर' पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सवार है। जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विश्वास जताया और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दो दशक बाद जीत के मंसूबों पर पानी फेर दिया।

Updated on: 19 Dec 2017, 11:55 AM

नई दिल्ली:

गुजरात में लगातार छठी बार 'मोदी लहर' पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सवार है। जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विश्वास जताया और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दो दशक बाद जीत के मंसूबों पर पानी फेर दिया।

पिछले करीब दो सालों में 'जातिगत लड़ाई' से उभरे तीन युवा नेता हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी की तिकड़ी भी कांग्रेस को कुछ खास फायदा नहीं पहुंचा सकी। हालांकि अल्पेश और जिग्नेश अपनी-अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे।

चुनाव से पहले हार्दिक-अल्पेश-जिग्नेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ रहे और उन्होंने कांग्रेस से 'हाथ' मिलाया। जिसे गुजरात की जनता पिछले 4 चुनावों में खारिज करती रही है। राज्य में 1995 से बीजेपी की सरकार है।

हालांकि इस विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के वोट प्रतिशत में कोई खास अंतर नहीं आया है। कांग्रेस को 41.1 प्रतिशत मत मिला। वहीं बीजेपी को भी पिछले चुनावों के मुकाबले वोट प्रतिशत में एक प्रतिशत का इजाफा मिला। इस चुनाव में बीजेपी को 49.1 प्रतिशत वोट मिला।

साल 2012 में बीजेपी को विधानसभा चुनाव में 48.30 फीसदी वोटों के साथ 115 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि कांग्रेस 40.59 फीसदी वोट के साथ 61 सीटें हासिल कर पाई थी। 2007 में बीजेपी को 49 फीसदी वोट के साथ 117 सीटें मिली थीं और कांग्रेस 39.63 फीसदी वोट के साथ 59 विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल करने में कामयाब रही थी।

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2002 के चुनाव में बीजेपी को 44.81 फीसदी वोट के साथ 127 सीटें मिली थीं। जबकि कांग्रेस को 35.20 फीसदी वोट के साथ महज 53 सीटें हासिल हुई थीं।

नरेंद्र मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद यह गुजरात का पहला विधानसभा चुनाव था। उनके गुजरात से दिल्ली आने के बाद पार्टी को कई तरह की राजनीतिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अपनी-अपनी मांगों को लेकर राज्य को तीन बड़े आंदोलनों का सामना करना पड़ा।

राज्य की बीजेपी सरकार को जुलाई, 2015 में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के समय सबसे अधिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। युवा चेहरे हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आरक्षण की मांग के बहाने सड़कों पर थे, पुलिसिया लाठीचार्ज के बाद जगह-जगह आगजनी हो रही थी। राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल इस संभालने में विफल रही। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद दिल्ली से मोर्चा संभाला। एक भावुक वीडियो जारी कर उन्होंने सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की याद दिलाई और राज्य की जनता से शांति की अपील की।

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पाटीदार आंदोलन के ठीक एक साल बाद गुजरात में दलितों युवकों पर हुए अत्याचार का एक वीडियो सामने आया। जो बाद में ऊना कांड के नाम से जाना गया। दरअसल, गिर सोमनाथ जिले के ऊना में 11 जुलाई को कथित तौर पर मृत गाय की खाल उतार रहे कुछ दलित युवकों पर गाय की हत्या का आरोप लगाकर गौ-संरक्षकों ने उनकी पिटाई की थी। घटना के बाद गुजरात ही नहीं पूरे देश में इसे लेकर प्रदर्शन हुए। गुजरात में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व युवा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने किया और वह राष्ट्रीय पटल पर उभरे। इस दौरान ओबीसी के एक वर्ग में बीजेपी के खिलाफ नाराजगी देखी गई। जिसका नेतृत्व अल्पेश ठाकोर कर रहे थे।

विपक्षी दलों ने बीजेपी पर 'दलित विरोधी' होने का आरोप लगाया। ऊना कांड के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करीबी रही आनंदीबेन पटेल को राज्य की सत्ता से हाथ धोना पड़ा। आनंदीबेन के बाद बीजेपी ने अमित शाह के करीबी रहे विजय रुपाणी को राज्य की कमान सौंपी और राज्य में नाराज पटेल को देखते हुए नितिन पटेल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया।

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पाटीदार आंदोलन और ऊना कांड से राज्य की बीजेपी सरकार को किरकिरी का सामना करना पड़ा। यह शायद तब नहीं होता जब राज्य की कमान मोदी के पास होती। उन्हें एक कुशल प्रशासक माना जाता है। नरेंद्र मोदी 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। इन 13 सालों में 2002 गुजरात दंगों को छोड़ कभी उन्हें मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा। गुजरात दंगा इस चुनाव में कोई मुद्दा नहीं बना। कांग्रेस ने भी 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का रास्ता अपनाया। कांग्रेस ने राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर के दर्शन पर हुए विवाद के बाद राहुल को 'जनेऊधारी हिंदू' बता प्रचारित किया।

2014 के बाद पिछले तीन सालों में सरकार चलाने में आई खामी और लोगों की नाराजगी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जादुई चुनावी कैंपेन ने मात्र 30 दिनों में खत्म कर दिया।

मोदी ने वोटिंग से पहले 'गुजरात मॉडल' को छोड़ गुजराती अस्मिता और राष्ट्रवाद की धुन छेड़ी। मोदी ने अपने एक चुनावी भाषण के दौरान कहा, 'गुजरात ने मुझे बड़ा किया है। गुजरात मेरी मां है।' उन्होंने कहा, 'कांग्रेस को समझना चाहिए कि गुजराती कभी अपमान सहन नहीं करेगा। मेरे ऊपर कभी कोई दाग नहीं था। लेकिन कांग्रेस गुजरात में आकर मेरे ऊपर आरोप लगा रही है। मुझे भला-बुरा कह रही है। गुजरात की जनता कभी कांग्रेस को माफ नहीं करेगी। गुजरात के बेटे पर हमला, यहां के लोग माफ नहीं करेंगे।'

कांग्रेस के जातिगत समीकरण को मात देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के मसले को उभारा। साथ ही, कांग्रेस से निलंबित हुए नेता मणिशंकर अय्यर द्वारा प्रधानमंत्री के लिए 'नीच' शब्द का प्रयोग और पाकिस्तान के साथ कांग्रेस की सांठ-गांठ जैसे मसलों को बीजेपी ने चुनाव के दौरान जोरदार तरीके से उठाया।

वहीं कांग्रेस 37 साल पुरानी केएचएएम जैसे फॉर्मूले पर भरोसा जताती रही। आपको बता दें कि कांग्रेस ने 1980 में गुजरात में क्षत्रीय, हरिजन (दलित), आदिवासी और मुस्लिम को मिलाकर चुनावी दांव खेला था। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी की इस गणित की बदौलत तब कांग्रेस को गुजरात में 182 में से 149 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

इस बार पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पीएएसएस) के संयोजक हार्दिक पटेल, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नेता अल्पेश ठाकोर और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी का साथ कांग्रेस के पक्ष में गया। लेकिन उसे मोदी के हाथों एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा। अब एक बार फिर बीजेपी राज्य की गद्दी पर बैठेगी।

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