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केरल बाढ़:विदेशी मदद पर रार, मनमोहन सरकार ने ही बनाया था नियम फिर आज पैसे लेने पर क्यों अड़ी है कांग्रेस?

केरल में आई भयानक बाढ़ में विदेश से मिलने वाली मदद को लेकर केंद्र सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में ठनी हुई है।

Updated on: 23 Aug 2018, 01:53 PM

नई दिल्ली:

केरल में आई भयानक बाढ़ में विदेश से मिलने वाली मदद को लेकर केंद्र सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में ठनी हुई है। एक तरफ जहां केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि हम अपने देश के भीतर किसी भी समस्या से निपटने में सक्षम है और इसमें विदेशी मदद नहीं चाहिए वहीं कांग्रेस ने सरकार से विदेश मदद के नियम में नरमी लाने की मांग की है।

दरअसल केरल में बाढ़ की विभीषिका को देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने राज्य के पुनर्निर्माण के लिए 10 करोड़ डॉलर की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की थी। इस पर केंद्र सरकार की तरफ से नियमों का हवाला देते हुए कहा गया कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के 700 करोड़ रुपये की वित्तीय मदद को भारत सरकार स्वीकार नहीं करेगी।

विदेश मंत्रालय ने कहा, 'मौजूदा नीति के तहत, सरकार घरेलू प्रयासों के जरिये राहत और पुनर्सुधार की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। एनआरआई, पीआईओ और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से पीएम राहत कोष और सीएम राहत कोष में योगदान का स्वागत किया जाएगा।' विदेश मंत्रालय ने कहा, 'भारत सरकार केरल बाढ़ त्रासदी के बाद राहत और पुनर्सुधार प्रयास के लिए विदेशी सरकारों सहित दूसरे देशों की मदद की काफी प्रशंसा करती है।'

हालांकि यूएई समेत दूसरे देशों से मिल रही मदद को लेकर कांग्रेस सरकार पर दबाव बना रही है कि नियमों में ढील देकर विदेशी मदद को स्वीकार किया जाना चाहिए। इसके लिए कांग्रेस नेता और पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने केंद्र से नियम में नरमी ला कर सहायता को स्वीकार करने की अपील की थी।

एंटनी की केंद्र से गुजारिश

कांग्रेस नेता ए के एंटनी ने बुधवार को मोदी सरकार से नियमों को सरल करने को कहा ताकि बाढ़ प्रभावित केरल के लिए विदेशों से वित्तीय सहायता आ सके। एंटनी ने मीडिया से कहा, 'अगर पिछली सरकार ने नियमों में बदलाव कर दिया, तो भी मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि मोदी सरकार को इसे फिर से बदलना चाहिए।'

एंटनी ने कहा, 'मौजूदा नियम के मुताबिक, यूएई सरकार द्वारा केरल की सहायता के लिए घोषित 10 करोड़ डॉलर की राशि स्वीकार करना संभव नहीं है। इसलिए नियम को बदलें।'

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विदेशी मदद नहीं लेने का फैसला तत्कालीन यूपीए सरकार का फिर अभी विवाद क्यों

गौरतलब है कि साल 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने फैसला लिया था कि देश में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं और ऐसे किसी आपातकालीन स्थिति में अब विदेशी मदद नहीं ली जाएगी।

इसके पीछे सरकार का ऐसा मानना था कि अब भारत अपने बल-बूते ऐसी समस्याओं से सफलतापूर्वक निपट सकता है और इसके लिए दूसरे देशों के वित्तीय मदद की जरूरत नहीं है। सरकार अपने पैसों से पुनर्वास और पुनर्निमाण करने में सक्षम है। साल 2013 के उत्तराखंड त्रासदी और साल 2014 में जम्मू-कश्मीर में आए भयानक बाढ़ में भी तत्कालीन यूपीए सरकार ने विदेशी वित्तीय मदद लेने से इनकार कर दिया था।

2004 से पहले विदेशी मदद को स्वीकार कर चुकी है भारत सरकार

हालांकि इससे पहले साल 2004 में बिहार में आए भयानक बाढ़, 2001 में बंगाल में चक्रवात तूफान, 2001 के गुजरात भूकंप, 1993 में लातूर भूकंप जैसे बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में विदेशी मदद को स्वीकार कर चुकी है।

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प्राकृतिक आपदाओं में विदेशी वित्तीय मदद नियम को बदलने के बाद बीते 14 सालों में भारत सरकार ऐसे किसी संकट में रूस, अमेरिका, जापान जैसे देशों के वित्तीय मदद को ठुकरा चुकी है। साल 2013 में उत्तराखंड त्रासदी और साल 2014 में जम्मू-कश्मीर बाढ़ में भी भारत ने इन देशों से मदद लेने से इनकार कर दिया था।