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हाईटेक हुआ केजरीवाल का धरना, सड़क से उठकर सोफे तक पहुंचा!

एक बार फिर अपनी मांग को मनवाने के लिए मुख्यमंत्री अपने मंत्रीमंडल समेत उप-राज्यपाल अनिल बैजल के ऑफिस के सोफे पर धरना देने में जुट गए हैं।

Updated on: 16 Jun 2018, 09:29 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली की सल्तनत जब से केजरीवाल के हाथ में आई है तब से केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच खींचतान देखने को मिल रही है। लोगों के बीच पहुंचकर और मुहल्ला सभा के जरिए लोगों से संपर्क करते हुए सत्ता की कुर्सी तक पहुंचे केजरीवाल ने पहले ही कार्यकाल में दिखा दिया था कि अगर उन्हें काम करने में थोड़ी भी पेरशानी हुई तो वह किसी को भी नहीं बख्शेंगे।

इसी का एक नमूना साल 2014 में केजरीवाल और उनके मंत्रीमंडल ने पेश किया था। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद हाड़ कंपा देने वाली ठंड और धारा 144 के बीच अपनी मांग को लेकर रेल भवन के सामने सड़कों पर केंद्र सरकार के खिलाफ अड़ गए थे।

एक बार फिर अपनी मांग को मनवाने के लिए मुख्यमंत्री अपने मंत्रीमंडल समेत उप-राज्यपाल अनिल बैजल के ऑफिस के सोफे पर धरना देने में जुट गए हैं। इस बार भी उनके मंत्री साथ हैं। अगर कोई साथ नहीं है तो अनगिनत कार्यकर्ता।

साल 2014 में जब वह धरना देने के लिए सड़क पर उतरे थे तो दिल्ली की जनता ने उनका भरपूर साथ दिया था। उन्हें ट्वीट कर अपील करना पड़ा था कि जनता सड़क पर न उतरें। हालांकि बाद में उन्होंने अपने आप को 'अराजक' भी कहा था।

रेल भवन के पास रोके जाने के बाद केजरीवाल ने कहा था, 'वो मुझे अराजक कहते हैं। हां आज मैं अराजक हूं, और गृह मंत्री के लिए अराजक हो जाउंगा।' अपने समर्थकों को धरने में शामिल होने से मना करने वाले केजरीवाल ने अपने कार्यकर्ताओं को धरने में शामिल होने का आह्वान किया और लोग शामिल हुए।

उनके धरने को लेकर अब दिल्ली की जनता महज दिखावा करार देती है तो कुछ लोग यह भी मानते हैं कि केंद्र सरकार उन्हें अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी मानती है और केजरीवाल की सरकार को परेशान किया जा रहा है।

इसके पीछे कुछ लोग तीसरा तर्क भी देते हैं और कहते हैं कि जरूरी नहीं कि केंद्र से लड़कर ही काम किया जा सकता है कभी कभी मिलकर भी काम करना होता है जैसा कि पिछली सरकार ने किया।

पांडव नगर निवासी अशोक के मुताबिक, 'तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने न सिर्फ सड़कों को रफ्तार दिया बल्कि नलों के जरिए लोगों के घर में पानी भी पहुंचाया।' एक सवाल के जवाब में वह पूछते हैं कि आखिर शीला के रहते दिल्ली ने कैसे विकास किया वह भी तब जब केंद्र में अटल बिहारी की सरकार थी? क्या जब वह मुख्यमंत्री थी तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला हुआ था?

उन्होंने कहा, 'केजरीवाल के करामात बताते हैं कि वह अपने आप को राजनीति के केंद्र में रखना चाहते हैं और मीडिया की सुर्खियों के जरिए लोगों के बीच अपनी छवि साफ रखना चाहते हैं।'

वहीं लक्ष्मी नगर के रहने वाले चितरंजन कहते हैं, 'जिस केजरीवाल को हमने वोट किया था उनसे राजनीति के मायने बदलने की उम्मीद थी लेकिन आम आदमी पार्टी भी उसी दलदल में शामिल हो गई।'

मयूर विहार में रहने वाले रमेश कहते हैं, 'केजरीवाल को तो हमने इसलिए चुना था कि वह दिल्ली को एक नई ऊंचाई देंगे लेकिन वह कभी मोदी सरकार से लड़ते हैं तो कभी उप-राज्यपाल से। और जब कुछ नहीं मिलता है तो यहां के अधिकारियों से।'

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साल 2014 का धरना और आज के धरने में कई समानताएं हैं तो कई फर्क भी दिख रहे हैं। फर्क की बात करें तो पहले उन्होंने सड़क पर धरना दिया था लेकिन आज वह सोफे तक पहुंच गए हैं। समानता यह है कि उस समय वह दिल्ली पुलिस के खिलाफ धरना दे रहे थे तो आज दिल्ली के अधिकारियों के खिलाफ।

दरअसल मामला यह है कि केजरीवाल के दो विधायकों पर आरोप लगा था कि उन्होंने दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट की थी। मुख्य सचिव ने अपने साथ बदसलूकी का भी इल्जाम लगाया था और कहा था कि केजरीवाल के सामने आप विधायकों ने थप्पड़ मारा और अपशब्द कहा। इसके बाद आइएएस एसोसिएशन हड़ताल पर चली गई।

घटना को लेकर आइएएस एसोसिएशन की पहली मांग है कि 19 फरवरी की घटना के लिए मुख्यमंत्री माफी मांगें और दूसरी मांग सरकार अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें ताकि भविष्य में ऐसी घटना दोबारा न हो।

अधिकारी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि जहां तक प्रोजेक्ट, प्लानिंग, फाइलों पर जवाब देना और योजनाओं पर काम करने की बात है, वो सब जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

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आईएएस ऑफिसर सहयोग नहीं कर रहे हैं। मुख्यमंत्री के इस दावे को खारिज करने के लिए दिल्ली सरकार के अधिकारी तथ्य भी पेश कर रहे हैं। अधिकारियों के मुताबिक दिल्ली सरकार ने बजट सत्र का आयोजन किया और बजट भी पेश किया। ये साफ बताता है कि हम काम पर हैं।

वहीं दिल्ली सरकार की मांग है कि इस मामले में उप-राज्यपाल हस्तक्षेप करें और अधिकारियों की हड़ताल को खत्म करवाएं। उप-राज्यपाल दफ्तर ने एक सूचना जारी कर कहा कि 'उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने धमकी भरे अंदाज में एलजी से अफसरों को बुला कर अफसरों की हड़ताल खत्म करवाने को कहा।'

यह सवाल अब जनता पूछती है कि लोगों के बीच जाकर मोहल्ला सभा के जरिए एक-एक व्यक्ति से मिलने वाले केजरीवाल अचानक मनमानी क्यों  करने लगे हैं? 

हालांकि लोग इस बात को भी खुलकर कह रहे हैं कि आखिर क्या मजबूरी है कि इस मामले में एलजी हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं? कुछ लोगों का कहना है कि उनके रिश्ते एलजी से ठीक नहीं है।

वहीं कुछ लोग यह भी मानते हैं कि जो भी हो इस मामले में पिस रही है तो वह है दिल्ली की जनता, जिसने वोट देकर बता दिया था कि आखिर वह किसे मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। 

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बातचीत करने पर पता चलता है और लोग बताते हैं कि केजरीवाल हमेशा अपने आप को राजनीति की केंद्र में ही रखना चाहते हैं। तभी वह कभी राहुल गांधी पर हमला करते हैं तो कभी नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार पर तो कभी आरएसएस पर।

सत्ता में आने के बाद केजरीवाल अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि पूर्ण राज्य का दर्जा न मिलने के कारण दिल्ली विकास नहीं कर रहा है। लेकिन काफी दिनों से यहां रह रहे लोगों का मानना है कि शीला दीक्षित ने दिल्ली को एक नई दिशा दी।

अब सवाल यह है कि क्या केजरीवाल के पूरे कार्यकाल में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच ठनी रहेगी या कुछ मु्द्दों पर दोनों सहमत भी होंगे? कुछ लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि सड़कों पर कार्यकर्ताओं के साथ प्रदर्शन करने के लिए जाने जाने वाले केजरीवाल आखिर सोफे पर क्यों धरना दे रहे हैं?

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